सपना वीर्य बिंदु का” – भावना ठाकर ‘भावु’

रिश्तेदारों की गपशप मेरे कानों में गर्म शीशा घोल गई! अरे ये क्या, बेटी हुई? काश मालती ने किसी खानगी डाॅक्टर को रिश्वत देकर लिंग परिक्षण करवा लिया होता, समय रहते निकाल कर पाती। आजकल बेटियों का बोझ कौन सह पाता है। दूसरे ने कहा, “सही बात है किसी और परिवार के लिए बच्चियों को … Read more

धरा की उम्मीद – कमलेश राणा

चुपके से सुन इस दिल की धुन इस पल में जीवन सारा गाना बज रहा था धरा अपने ही ख्यालों में गुम बैठी हुई थी और साथ ही साथ गुनगुना भी रही थी। अतीत के पन्ने एक एक कर उसके सामने खुलते जा रहे थे। कैसे उसका जन्म हुआ, कितनी सुंदर थी वह उसके रूप … Read more

माफ करना तुम्हारी उम्मीद पर मैं खरा नहीं उतरा  – के कामेश्वरी 

अविनाश एक बहुत बड़े ऑर्गनाइज़ेशन के लीडर थे । उन्हें आए दिन टूर पर जाना पड़ता था ।इसलिएघर की सारी ज़िम्मेदारियों को पत्नी सुचित्रा ही सँभालती थी । उनके दो बच्चे थे ।मनोरमा और मनीषदोनों छोटे थे । मनीष तो तीन साल का ही था । अविनाश अपने कार्य कलापों में इतने व्यस्त रहते थेकि … Read more

उम्मीद परिवार के सदस्य से होती है –  कनार शर्मा 

सुबह का वक्त सुहाना के लिए बहुत ही मुश्किल होता क्यों??? क्योंकि चाय नाश्ते की तैयारी के साथ बच्चों और ऑफिस जाने वालों के टिफिन तैयार करने होते हैं। कहने को उसकी दो देवरानी और भी है मगर जब जेठानी सीधी सच्ची,सबकी उम्मीदें पूरी हो ऐसी सोच रखने वाली और परिवार को बांधने में यकीन … Read more

अपनों के बीच कैसी मेहमाननवाजी ? – भाविनी केतन उपाध्याय 

” क्या हुआ गरिमा ? उदास और विचलित क्यों है ? ” अपनी पत्नी को मायूस और उदास देखकर अमर ने कहा।   ” आप ने देखा,जब से हम आए हैं शादी में शरीक होने पर एक भी बार भाभी या भैया ने हमारे बारे में कुछ नहीं पूछा और तो और आज सुबह का … Read more

फिर से – सुधा शर्मा 

  आज अपने को बार बार बहला रही थी वसुधा ,’ठीक किया मैने , यह कोई समय है प्यार मुहब्बत में पडने का ?कितनी पागल हूँ न मै ? कैसे इतनी जल्दी भावनाओं में बह जाती हूँ ।       बस खूबसूरत शब्दों के मोह जाल में भूल जाती हूँ कि जीवन के इस मोड पर क्या हक … Read more

उम्मीद आख़िर कितनी और कब तक…? – रश्मि प्रकाश 

  ‘‘आज पहली बार मैंने अपनी दिल की बात सबके सामने रखी तो सबको बुरा लग रहा…. सबकी उम्मीद बस आपसे ही क्यों …. क्या हमआपके कुछ नहीं लगते…. ऐसा है तो रहिए ना इन लोगों के ही साथ जो आपका भला सोचे बैठे है….. वो आपसे उम्मीद करते रहे औरआप उनको पूरा करने की … Read more

एक मुट्ठी उम्मीद के सहारे जिंदा हूं। – सुषमा यादव

  मैं नवासी साल में चल रहा हूं, अपने बेटी के साथ ही रहता हूं, बेटे बहू ने बहुत साल पहले ही हमसे पल्ला झाड़ लिया था, मुझे और मेरी पत्नी को दस दिन रखने के बाद गाड़ी करके गांव भिजवा दिया था कि मेरे घर में आप लोगों के लिए जगह नहीं है,, मैं … Read more

 सुखद बयार – डाॅ उर्मिला सिन्हा

  पहाड़ के तलहटी में बसा हुआ गांव.. आस-पास छोटी -छोटी  बस्तियां.. चारों ओर हरियाली प्राकृतिक संपदा बिखरी हुई  ..सीधे सच्चे  लोग,रीति-रिवाजों  ,परम्पराओं से जुड़े हुए ..अभाव में भी  कुछ अच्छा खान-पान की  बलवती आशा ..।        सब कुछ भगवान भरोसे.. स्वतंत्रता के इतने  बर्षों के  पश्चात भी न कोई सरकारी सहायता और  न कोई जागरूकता इस … Read more

ह्रदय से सींचा है – नीरजा कृष्णा

विभा इधर काफ़ी दिनों से महसूस कर रही थीं…उनका सात वर्षीय पुत्र अनुपम बहुत उदास और सुस्त सा हो गया है। खाना पीना भी कम हो गया है। आज तो हद ही हो गई। स्कूल से आकर सीधे अपने कमरे में जाकर रोने लगा था। वो व्याकुल होकर उसके पास गई और उसे गोद में … Read more

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