धरा की उम्मीद – कमलेश राणा

चुपके से सुन इस दिल की धुन

इस पल में जीवन सारा

गाना बज रहा था धरा अपने ही ख्यालों में गुम बैठी हुई थी और साथ ही साथ गुनगुना भी रही थी। अतीत के पन्ने एक एक कर उसके सामने खुलते जा रहे थे। कैसे उसका जन्म हुआ, कितनी सुंदर थी वह उसके रूप पर देवता भी रीझ जाते। उसके पास जो संपदा थी वह स्वर्ग में भी दुर्लभ थी क्योंकि स्वर्ग मात्र एक कल्पना है और धरा एक सत्य। 

पहले वह बर्फ सी श्वेत थी एकदम ठंडी जब सूर्य की सुनहरी किरणें बर्फ पर पड़ती तो उसका बदन सोने सा दमक उठता । 

फिर धीरे धीरे सूर्य की गर्मी से बर्फ पिघलने लगी और उसके दामन में कल कल ध्वनि करती नदियाँ बहने लगीं और उसके सौंदर्य में चार चाँद लग गए। 

कुछ दिनों बाद जब बर्फ पूरी तरह पिघल गई तो धरा के आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब उसने देखा कि बहुत सारे नन्हें नन्हें पौधे उसके गर्भ से बाहर निकल कर दुनियां की रंगीनियों को देखने के लिए बेताब थे। उन्हें देखकर धरा निहाल हो गई और अब वह धरा से धरती माता जो बन गई थी। कुछ पौधे युवा होकर वृक्ष बन गए उनके फूलों और फलों की खुशबू उसके तन मन को आल्हादित कर रही थी। हरियाली की चूनर में अब रंग बिरंगे फूलों की छटा देखने लायक थी। 




फिर धीरे से ऐसा लगा उसे जैसे उसके अंतस में कुछ कुलबुला रहा है। अरे !! यह तो कोई जीव है और फिर धीरे धीरे अनेक जीव उसके सीने पर विचरण करने लगे पर एक जीव बड़ा ही अनोखा था वह अपने जीवन को अधिक सुविधाजनक बनाने के लिए नित नये प्रयोग कर रहा था। 

वह सुपर ब्रेन लेकर पैदा हुआ था। उसने अपने खाने की व्यवस्था करने के लिए मेरे पेड़ों को काटना शुरु कर दिया, कंक्रीट के मकान बनाने लगा और आवागमन के लिए पेट्रोल डीजल से चलने वाली गाड़ियों का इस्तेमाल करने लगा। यह अन्य जीवों से बिल्कुल अलग था क्योंकि अभी तक किसी भी जीव अथवा वनस्पति ने मुझे नुकसान नहीं पहुंचाया था पर यह बड़ा उद्दंड निकला इसने अपना स्वार्थ पूरा करने के लिए अपनी माँ के कलेजे को ही बेध दिया। 

यह क्यों नहीं समझता कि माँ को नुकसान पहुंचाने वाला कभी सुखी नहीं रह सकता। माँ हूँ , श्राप भी नहीं दे सकती पर सहनशक्ति की भी कोई सीमा होती है। इसके अत्याचार बढ़ते ही जा रहे हैं अब तो मेरे लिए सांस लेना भी मुश्किल होता जा रहा है। 

सरिता, पवन, बादल, पर्वत, कानन सभी त्रस्त होकर मुझसे शिकायत करते हैं पर वह सुनता ही नहीं। 

कभी कभी तो लगता है इसे सुधारने के लिए दण्ड देना ही पड़ेगा पर अब जब उसके स्वास्थ्य पर इसका असर पड़ने लगा है तो एक उम्मीद जगी है मन में कि अभी भी शायद यह संभल जाये और मेरे दिल की धुन को समझ पाये। हे प्रभु!! इस माँ की ममता की लाज रख लो और इसे सद्बुद्धि दे दो अभी भी देर नहीं हुई है। 

#उम्मीद

कमलेश राणा

ग्वालियर

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