माफ करना तुम्हारी उम्मीद पर मैं खरा नहीं उतरा  – के कामेश्वरी 

अविनाश एक बहुत बड़े ऑर्गनाइज़ेशन के लीडर थे । उन्हें आए दिन टूर पर जाना पड़ता था ।इसलिएघर की सारी ज़िम्मेदारियों को पत्नी सुचित्रा ही सँभालती थी । उनके दो बच्चे थे ।मनोरमा और मनीषदोनों छोटे थे । मनीष तो तीन साल का ही था । अविनाश अपने कार्य कलापों में इतने व्यस्त रहते थेकि घर और बच्चों के बारे में ध्यान नहीं दे पाते थे । तीन चार दिनों की बात थी कि उन्हें किसी मीटिंग केसिलसिले में बाहर जाना था ।हमेशा की तरह उन्होंने अपना बैग पेक किया और सुचित्रा तथा बच्चों कोबॉय बोलकर निकल गए । उनके जाने के बाद दो दिन तक तो ठीक ठाक था । तीसरे दिन सुबह हमेशाकी तरह मनीष माँ के पीछे पीछे नहीं उठा ।उसने सोचा कोई बात नहीं है सो रहा है सोने देती हूँ ।जल्दीसे मेरे सारे काम निपटा कर उसे उठा दूँगी ।वैसे भी आजकल वह बहुत बदमाश हो गया है । इतने प्रश्नपूछता है कि उत्तर देते देते मैं थकती हूँ पर प्रश्न पूछते पूछते वह नहीं थकता है । ऐसा सोचकर सुचित्राने जल्दी जल्दी अपना काम निपटा दिया और तब भी मनीष नहीं उठा तो उसे उठाने गई जैसे ही मनीषकहते हुए उसको छुआ !! यह क्या उसका शरीर तो बुख़ार से तप रहा था ।समझ में नहीं आया कि क्याकरूँ ? जल्दी से पड़ोस में रहने वाली राधा को बताया ।उसने कहा आप मनीष को डॉक्टर के पास लेजाइए मैं आपके घर और मनोरमा को देख लूँगी । सुचित्रा घर के अंदर आती है और देखती है किअविनाश आए हुए हैं ।उसे सुकून मिलता है कि चलो ये मेरे साथ डॉक्टर के पास चलेंगे पर यह क्याअविनाश ने तो सुचित्रा की बात भी नहीं सुनी और कहा तुम मुझसे कोई उम्मीद नहीं रखना प्लीज़ तुमख़ुद देख लो मैं कुछ ज़रूरी काग़ज़ात भूल गया था इसलिए उन्हें लेने आया हूँ और बिना पीछे मुड़े भागतेहुए सामने खड़ी गाड़ी में बैठकर चले गए । 




सुचित्रा को ऐसे लगा जैसे उसके शरीर में कमजोरी आ गई है उसने सोचा यह तो हमेशा की बात है मैंही उन पर ज़्यादा उम्मीदें बढ़ा लेती हूँ तभी मनीष ने आवाज़ दी माँ कहाँ हैं । सुचित्रा जैसे सदमे से बाहरआई थी वह भागकर मनीष को गोद में लेकर डॉक्टर के पास गई थी डॉक्टर ने उसका चेकअप कियाऔर कुछ दवाइयाँ  दे दी । सुचित्रा खुद दवाइयों को ख़रीद कर लाई । उन्हें खाने के बाद मनीष ठीकहुआ और बाहर भी खेलने जाने लगा । जिस दिन वह आराम से खेलने लगा था उसी दिन अविनाश घरभी आ गए थे । पति पत्नी दोनों ने इस बारे में कोई बात नहीं की थी । सुचित्रा के जीवन में इस तरह कीघटनाएँ बहुत घटी थी । अब सुचित्रा को आदत सी हो गई थी और उसने अपने पति से उम्मीद रखनाबंद कर दिया था क्योंकि उसे मालूम था कि अविनाश अपने कामों में इतने व्यस्त रहते हैं कि उन्हें अपनेपरिवार की तरफ़ ध्यान देने का समय नहीं मिलता है । वे हमेशा कहते हैं कि सुचित्रा तुम घर और बच्चोंको इतने अच्छे से सँभाल लेती हो इसलिए मैं अपने काम में बिना किसी चिंता के कर लेता हूँ । इनसबको गुजरे हुए कई साल हो गए थे । बेटी और बेटे दोनों की शादियाँ भी हो गई थी ।कई सालों बादआज जब अविनाश रिटायर हो रहे थे तो ऑफिस की तरफ़ से बहुत बड़ा फ़ंक्शन किया गया था ।ऑफिस से बहुत सारे लोग आए थे । उन सब लोगों के सामने उन्होंने अपनी पत्नी से माफ़ी माँगी किमुझे माफ़ कर दो सुचित्रा मैं तुम्हारा गुनहगार हूँ । मैं तुम्हारी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा हूँ । मैं उस दिनको कभी नहीं भूलता हूँ जब तुम मनीष को लेकर परेशान थी कि उसको तेज बुख़ार था । मुझे देखते हीतुम्हें लगा कि मैं तुम्हारी मदद कर दूँगा परंतु मेरा काम भी ऐसा था कि मैं उसे बीच में नहीं छोड़ सकताथा ।इसलिए मैंने सोचा तुम ज़रूर सँभाल लोगी और मैं तुम्हें अकेले छोड़कर चला गया था । 

आज मनीष नौकरी करता है और उसकी शादी हो गई है । मनोरमा की भी शादी हो गई है । अब हमारीसारी ज़िम्मेदारियाँ ख़त्म हो गई हैं । 

सुचित्रा ने सोचा अब पीछे मुड़कर देखना या पुरानी बातों को याद कर खून जलाने से कोई फ़ायदा नहींहै । आगे की ज़िंदगी को सुकून से बिताना है तो पुरानी कड़वी यादों को दफ़नाने से ही फ़ायदा होगा ।यह सुचित्रा की सोच थी । इसलिए अविनाश की बातों को सुनकर सिर्फ़ उसके होंठों पर हँसी आई । 

उम्मीद 

के कामेश्वरी 

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