अब आये हो गोपाल,जीवन के पूरे तीन वर्ष छीनकर।क्या मिला तुम्हें?मेरा सम्मान मेरा अभिमान मेरा विश्वास सब कुछ तुमने ध्वस्त किया है।गोपाल तुम्हारे साथ चलूं भी तो क्या यह पहले वाली सीमा होगी,वो तो कभी की मर चुकी?
ऐसा मत कहो सीमा,सब मेरी ही गलती थी,आज मैं पूरी तरह स्वीकार करता हूं।मैं तुम बिन नही रह सकता।तुम्हे अपने घर चलना ही होगा।
तुम बिन—अपने घर ,कैसी फिल्मी बात कर रहे हो गोपाल।बताओ तो मेरा घर होता तो मैं तीन वर्ष से अपने घर से बाहर क्यूँ थी,तुम बिन नही रह सकता आज तीन वर्ष बाद कह रहे हो गोपाल तीन वर्ष से मेरे बिन ही तो रह रहे थे।
पूरे शान शौकत के साथ गोपाल और सीमा का विवाह हुआ था।आखिर गोपाल अपने करोड़पति पिता का इकलौता बेटा था। नगर में शादी के चर्चे कई दिनों तक तैरते रहे थे।दोनो की खूबसूरती और पेअर की धूम थी।असीम सुंदरी थी सीमा, साथ ही पूर्ण संस्कार युक्त।आते ही अपने सास ससुर का दिल जीत लिया था,सीमा ने।उनकी पूरी देखभाल का जिम्मा अपने ऊपर स्वेच्छा से ले लिया था।सबकुछ ठीक चल रहा था,पूरा परिवार खुश था।
गोपाल की माता जी को डायबिटीज थी,कभी कभी इन्सुलिन तक लेनी पड़ती।उनका काफी ध्यान रखना पड़ता था।सबसे बड़ी समस्या थी कि वे परहेज से परहेज करती थी।चोरी छिपे कुछ भी खा लेना वह भी मीठा, यह उनके स्वभाव में आ गया था।उनके कारण घर मे मिठाई,आइस क्रीम आदि मंगाना ही बंद कर दिया गया था।
एक दिन तो उनकी शुगर की मात्रा हद से अधिक बढ़ गयी तो उन्हें हॉस्पिटल में ही दाखिल कराना पड़ा,तब जाकर स्थिति नियंत्रण में आयी।उस घटना के तीन चार दिन बाद घर मे दूर के रिश्तेदार मिलने आये, वे शिष्टाचारवश एक मिठाई का डिब्बा लेकर आये थे,जिसे किचन में रख दिया गया।रिश्तेदार तो चले गये मिठाई के डिब्बे के रूप में वे एक बड़ी विडंबना छोड़ गये थे।उस दिन गोपाल को देर से घर वापस आना था,
सीमा अपने कमरे में थी कि तभी सीमा को किचन में से कुछ गिरने की आवाज आयी।सीमा तेजी से वहां गयी तो देख आश्चर्य में पड़ गयी।सीमा ने देखा उसकी सासु माँ मिठाई के डिब्बे से मिठाई निकाल मुँह में रखने जा रही थी।सीमा एक दम जोर से चिल्लायी मां जी ये क्या कर रही हैं आप?आप क्या बच्ची है,
जो ऐसे चोरी छिपे मिठाई खा रही है।ठीक इसी समय गोपाल ने घर मे कदम रखा,उसे लगा सीमा ने अपनी सीमा लांघ दी है,उसकी इतनी हिम्मत जो उसकी माँ से ऐसे और जोर से बोले।इसी उत्तेजक भाव मे वह सीमा से उलझ पड़ा।सीमा हक्की बक्की सी गोपाल को देखती रह गयी,यह रूप उसने पहले कभी देखा ही नही था।
उसने गोपाल को समझाने का प्रयास भी किया,पर गोपाल पर आज भूत सवार था।उसने सीमा से कह दिया कि मेरे घर मे मेरी तरह से रहना होगा,अन्यथा वह स्वतंत्र है।सीमा अंदर तक हिल गयी क्या यह घर मेरा नही है?शादी से पहले उसकी मां ने उसे समझाया था कि बेटी अब जहां तेरी शादी हो रही है,वही तेरा घर है,अब ये घर पराया हो जायेगा बेटी।सीमा सोच रही थी कि उसका अब अस्तित्व अब कहाँ है?जहां जन्म लिया उसे मां ने पराया बता दिया था और जहां शादी हुई वहां पति उस घर को अपना बता रहा है।सीमा खड़ी की खड़ी रह गयी।
अगले दिन सीमा ने एक पत्र लिखकर टेबल पर रख दिया और घर छोड़ दिया।उसने समझ लिया था कि उसकी डगर आसान नही है।माँ के घर जाना नही था,उसे तो पहले ही पराया बताया जा चुका था।फिर भी अपने भविष्य निर्धारण के लिये कुछ समय के लिये आश्रय की आवश्यकता तो थी ही सो सीमा माँ के घर ही गयी। वहां जाकर अगले दिन से ही जॉब ढूढने का प्रयास करने लगी।एक अध्यापिका के रूप में उसे जॉब मिल गया।इतना वेतन मिलना था जो उसके लिये पर्याप्त था।पहले वेतन मिलने के साथ ही सीमा ने माँ का घर छोड़ एक कमरा किराये पर ले लिया।
पूरे तीन वर्ष बाद अचानक गोपाल को अपने यहां देख उसके पुराने जख्म हरे हो गये।उसका एक ही प्रश्न था उसका कुसूर क्या था,क्यो उसके आत्मसम्मान को कुचल दिया गया?गोपाल स्वीकार कर रहा था कि उसके पुरुषत्व अहंकार ने ही हमारे रिश्ते को बिखेर दिया है, उसे गलती सुधारने का अवसर गोपाल मांग रहा था।
सीमा अंदर से इतनी टूट चुकी थी वह गोपाल की याचना को स्वीकार नही कर पा रही थी।तभी गोपाल की माँ भी आ गयी,आते ही मां बोली बेटी असली गुनहगार मैं हूँ ,हमे माफ कर दे मेरी बच्ची,चल घर चल,हम पापी है बेटी,प्रायश्चित करने का अवसर दे दे सीमा।
मां का अंतर्नाद और गोपाल की गुहार ने उसे वापस जाने को विवश कर ही दिया,आखिर थी तो नारी ही कोमलता की प्रतीक।
बालेश्वर गुप्ता,नोयडा
मौलिक एवम अप्रकाशित