अलगाव -डॉ संगीता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

रोते रोते नन्हीं खुशी सो गई थी,उसके गोरे गाल पर आंसू सूख गए थे और निशान बना रहे थे,बीच बीच में अभी भी सुबक उठती वो,उसे देखकर आस्था की सिसकी निकल गई,बुदबुदा उठी वो,कितनी मासूम है ये,बिना बात मैंने इसे चांटा मार दिया।

आस्था अपने पति रोहन से अलग रह रही थी कुछ महीनों से और नन्हीं खुशी को अपनी मम्मी के साथ पापा का भी प्यार चाहिए था बस वो पापा से मिलने की जिद कर रही थी।

वो क्या जाने कि ये बडे लोगों की लड़ाई क्या होती है,उसने शुरू से जितना मम्मी को चाहा था उतना ही पापा को, जब शुरू से दोनों के बीच में सोई थी तो अचानक पापा से दूर कैसे रह लेती।

जब भी घर में उसके  पापा  का जिक्र होता,वो मचल उठती,शुरू में आस्था ने उसे घुमाया,फिराया,खिलौने खरीदवाए पर अब उसका मन इन सबसे भर गया था और उसे अपने पापा चाहिए थे।

वो तोतली आवाज में पूछती, मॉम!पापा पास तब  दायेंगे?

चलेंगे,चलेंगे…कुछ दिन बाद,आस्था टालती हुई कहती।

झूठी हो आप…दंदी!!उसने कहा और आस्था का हाथ घूम गया,बाप की तरह जुबान चलाने लगी है ये।

उसकी बड़ी बहन दौड़ती हुई आई,अपना गुस्सा इस मासूम पर क्यों उतार रही है?

इसे वहीं छोड़ दूंगी इसके पापा के पास…चल अभी…फिर यहां मत आना कभी…समझी!!

सॉरी मॉम!खुशी सहम गई थी।फिर जिद नहीं करूंगी, मैं आपको पार कलती हूं।

तभी तो पापा की माला जपते रहती है सारा दिन…वो गुस्से से बोली।चल अब वहीं रहना मेरे पास नहीं आना है फिर।

उसके गुस्से से नन्हीं खुशी सहम गई,गाल पर पड़े चांटे से बिलबिला रही थी और रोते रोते सो गई।

ये क्या बचपना है आस्था?उसकी बहन दिव्या ने कहा।कल तक  तुम भी रोहन के लिए ऐसे ही पागल थीं,याद है पापा ने कितना मना किया था कि हम लोगों का स्टेटस बहुत अलग है,तुम खुश नहीं रह पाओगी उसके साथ पर तुमने एक न सुनी।

तब वो ऐसा नहीं था दी…अब तो बात बात पर मुझसे लड़ाई करता है।

मुझे तो लगता है लड़ाई तुम ज्यादा करती हो,उसका तो कई बार फोन आ चुका है पर तुम उठाती ही नहीं तो बेचारा क्या करे?फिर उसने कुछ छिपाया तो नहीं था तुमसे उस वक्त।दिव्या ने रोहन का पक्ष लेते कहा।

तो आपको भी यही लगता है कि गलती मेरी है?आस्था सोच में पड़ गई।

ये नहीं कह रही मै,लेकिन खुद ही सोचो,तुम दोनो की इस लड़ाई में पिस तो ये मासूम खुशी रही है,इसकी क्या गलती इसमें?फिर हुआ क्या था ऐसा तुम दोनो के बीच जो तुम इतना गुस्सा हो उससे?कुछ तो बताओ,जब से आई हो बस गुस्से में रहती हो।

आस्था ,कुछ देर में बोली,दी!आप तो जानती हो मुझे मंहगे गिफ्ट्स का कितना शौक है,रोहन ने मेरी बर्थडे पर मुझे जो नेकलेस दिया था वो नकली था और जब मेरी सारी फ्रेंड्स के सामने ये बात खुली तो उन्होंने मेरी कितनी मजाक उड़ाई,बस मै गुस्से से घर छोड़ आई,जब हिम्मत नहीं तो मंहगे उपहार देने का दिखावा क्या करना?

लेकिन तू सच सच ये बता,तूने कोई शर्त तो नहीं रखी थी उस बेचारे के सामने जिससे मजबूर होकर उसे ये करना पड़ा हो क्योंकि जहां तक मै जानती हूं उसे वो ऐसा बिल्कुल नहीं है। दिव्या बोली।

मैंने…आस्था सोचते हुए बोली,नहीं तो…शायद ये कहा था कि कम से कम डायमंड नेकलेस तो दोगे ही तुम मुझे?

तो वो बोला,अच्छा मजाक कर लेती हो तुम,इतनी सी सैलरी मेरी और डायमंड नेकलेस!!

तो तुमने क्या कहा?दिव्या बोली।

मुझे लगा कि वो मुझसे मजाक कर रहा है,आखिर इतने साल से कमा रहा है,कुछ तो जोड़ा ही होगा,फिर आजकल तो लोन भी आसानी से मिल जाते हैं।

पागल हुई हो तुम,कोई ज्यूलरी के लिए लाइन लेता है?वो पापा की तरह अमीर नहीं जिसे कोई फर्क न पड़ता हो।एक एक पैसे की वैल्यू है उसके लिए।

ओह!और मेरे बेवकूफी भरे  गुस्से से हमारा प्यारा सा रिश्ता मिनटों में बिखर गया।

वही तो…आस्था! तू मुझसे छोटी है,तुझे ज्यादा दुनिया देखी है मैंने,सच्चा प्यार करने वाला अगर मिल जाए तो इन हीरों जवाहरात की कोई कीमत नहीं,ये तो पत्थर के टुकड़े हैं।तेरा रोहन तुझे बहुत प्यार करता है,आज उसकी इनकम कम है तो क्या हुआ,कल ज्यादा भी हो सकती है पर ये प्यार कहीं नहीं मिलेगा।देख!तेरी बच्ची को भी मम्मी पापा दोनो का प्यार चाहिए।

जब तक तुम दोनो ही थे तुमने अपने मन की कर ली लेकिन अब तुम्हारे बीच ये मासूम भी है,जिंदगी का कोई भी निर्णय लेने से पहले हजार बार इसकी भलाई सोचना,समझी!!

ओह थैंक्यू दी!आपने मेरी आंखे खोल दी, मैं अभी रोहन को फोन करती हूं कि कल वो हमें लेने आ जाए।

समाप्त

डॉक्टर संगीता अग्रवाल

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