मेरे हमसफ़र – आरती झा आद्या : Moral Stories in Hindi

लंच ऑवर में शिक्षिका दीया अपना लंच खोलकर बैठी ही थी कि सासु माँ का कॉल आ गया क़ि ससुर जी के सीने में दर्द हो रहा है। दीया सासु माँ को सांत्वना देती डब्बा बंद क़र प्रधानाध्यापक को वस्तुस्थिति से अवगत कराती मौखिक छुट्टी लेकर आनन-फानन में स्कूटी स्टार्ट क़र घर की ओर दौड़ी और साथ ही साथ एम्बुलेंस को भी कॉल करना नहीं भूली।

सुबह नाश्ता के बाद सिर्फ एक कप चाय पर टिकी दीया को उस समय तेज भूख का अहसास हुआ जब डॉक्टर ने बताया क़ि ससुर जी को माइनॉर अटैक था और कुछ जाँच प्रक्रिया के बाद अगले दिन घर जा सकते हैं। सासु माँ की ससुर जी के पास बैठने की इच्छा जानकर दीया कैंटीन में आकर बैठ गई। पराठा और कॉफ़ी के साथ कैंटीन में आते-जाते लोगों को देखती दीया अतीत में खोने लगी थी।

बीस साल की दीया गाँव के बड़े ठाकुर साहब की बेटी सुहाग सेज पर बैठी अपने दूल्हे अनिरुद्ध की प्रतीक्षा क़र रही थी। अनिरुद्ध पच्चीस साल का दीया के बगल वाले गाँव में रहने वाला साधारण से परिवार रामदीन ठाकुर का बेटा था, जिसकी इंजीनियरिंग की पढ़ाई का मात्र एक साल और बचा था। दीया के पिता ठाकुर शिवचरण सिंह को रामदीन ठाकुर का बेटा अनिरुद्ध बेटी के लिए जँच गया और ठाकुर शिवचरण सिंह के कर्जे में डूबे रामदीन ठाकुर को विवश होकर इस विवाह के लिए राजी होना पड़ा और विवाह वेदी पर रस्मों को निभाते अनिरुद्ध को देखकर कोई भी कह सकता था कि वह इस शादी से प्रसन्न नहीं है। हँसी-ठिठोली के मध्य भी उसके चेहरे पर पल भर के लिए भी स्मित रेखा नहीं दिखी। किसी कठपुतली की भाँति जिसने जो भी कहा, वो करता गया। 

अनिरुद्ध तो छुट्टियाँ व्यतीत करने गाँव आया हुए था और ठाकुर साहब यह अवसर हाथ से जाने नहीं देना चाहते थे। आनन फानन में छुट्टियों की समाप्ति से पहले तिथि निकलवा क़र बेटी के हाथ पीले करने हेतु आतुर हो उठे। उस छोटी सी समायावधि में भी उन्होंने तैयारी में कोई कसर नहीं रखी थी। स्वयं के परिवार और गाँव से लेकर रामदीन के परिवार और गाँव तक की सजावट का सारा भार वहन किया।

धूमधाम से विवाह की सभी रस्मों के साथ विवाह संपन्न होने की पंडित जी की घोषणा के साथ वर-वधु बड़े-बुजुर्गों का चरण स्पर्श करने लगे।। ठाकुर साहब अनिरुद्ध के उतरे हुए चेहरे को गौर से देखते हुए बेटी को ताकीद करते हैं कि कोई भी दिक्कत होने पर उन्हें तुरंत खबर मिलनी चाहिए। 

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सुहाग सेज पर बैठी दीया के कानों में उसकी सासु माँ की आवाज़ आ रही थी, जो बेटे को समझा रही थी कि जोड़ी ऊपर वाला ही बना क़र भेजता है। अपनी पत्नी के साथ ख़राब व्यवहार ना करें, नहीं तो इसका खामियाजा पूरे परिवार को भुगतना होगा। आखिर दीया के पिता भी विदाई के समय दीया को शेरनी बनने की नसीहत देते दिखाई पड़े थे। सुहाग सेज पर बैठी दीया सासु माँ के डर से रुबरु होती अपने पिता की बातों को याद क़र मुस्कुरा रही थी और अनिरुद्ध माँ की बात पर नाराजगी दिखाता हुआ कमरे में आ गया था।

अनिरुद्ध कमरे में आ तो गया था, लेकिन उसके अंदर कोई उमंग, कोई उत्साह नहीं था। एक नजर घूँघट में बैठी दीया पर डाल बिना लागलपेट के उसने बता दिया कि यह शादी उसकी सहमति के बिना हुई है, उसे पढ़ी लिखी लड़की, समय के साथ कदम मिलाकर चलने वाली लड़की की दरकार थी। दीया जिसने अपने आगे सबों को हाथ जोड़े ही देखा था, अनिरुद्ध की बात सुनते ही दहाड़ उठी थी और अनिरुद्ध को धमकाते हुए ख़बरदार क़र रही थी कि सपने में भी उसे छोड़ने की नहीं सोचे। दीया की बात पर अनिरुद्ध ठठा क़र हँस पड़ा। दीया उसे हँसते देख़ गुस्से में खड़ी हो गई और कमरे से बाहर जाने के लिए उतावली हो गई थी। अनिरुद्ध उसे अनदेखा क़र कमरे में रखी आलमीरा की ओर बढ़ गया। दीया ने दरवाजे की चिटकनी पर हाथ रखा और अनिरुद्ध आलमीरा खोल कुछ निकालने के लिए उद्दत हुआ, जिसे देखने की उत्सुकता में दीया चिटकनी पर से हाथ हटा क़र खड़ी हो गई थी। अनिरुद्ध आलमीरा से किताबें निकाल क़र बिस्तर पर रखने लगा और दीया की ओर बिना देखे, बिना किसी भाव के अनिरुद्ध ने बताया कि ये किताबें हमेशा से उसकी साथी रही हैं और वो चाहता है कि दीया भी आगे पढ़े और इन पुस्तकों से दोस्ती करे। अग्नि के समक्ष दीया का हाथ थामने वाला अनिरुद्ध दीया का हाथ कभी नहीं छोड़ेगा, लेकिन उसे स्वाबलम्बी बनते जरूर देखना चाहेगा। दीया दरवाजे से हटकर अनिरुद्ध तक आई और किताबों को उलट पुलट क़र देखने के बाद उसने जता दिया क़ि उसे स्वाबलम्बी बनने की जरुरत नहीं है क्यूंकि वो अमीर पिता की इकलौती बेटी है।

अनिरुद्ध दीया की बातों से बिना निराश हुए उसका हाथ मजबूती से पकड़ क़र खिड़की के पास ले गय। सामने के पेड़ पर चढ़ती लता को दिखाने के लिए दीया को लिए हुए खिड़की खोल खड़ा हो गया। जब खिड़की खुली, ठंडी हवा ने उनके तन-मन को छू लिया। खिड़की से आती ठंडी हवा दोनों के तन-मन को सिहरा क़र मुस्कुराती हुई उनके बीच से चली गई मानो कह रही हो एक-दूसरे के साथ अनुभव की गहराई में डूबने से ही सम्बन्ध फलता-फूलता है। एक पल को अनिरुद्ध यह भूल गया कि वह खिड़की के पास क्यों खड़ा था, लेकिन दीया की आँखों में उभरते सवाल को पढ़कर सचेत होकर पेड़ पर चढ़ती लता की ओर इशारा क़र अनिरुद्ध ने दिखाया था कि पेड़ की ऊँचाई पर, उसकी शाखाओं पर चढ़ती हुई लताएँ सौंदर्य का प्रतीक बनकर अपनी सुंदर रूपरेखा को प्रकट कर सकती हैं, यदि उस पेड़ को काट क़र हटा दिया जाए या शाखाएँ टूट क़र गिर जाएँ तो उन लताओं का कोई अस्तित्व नहीं रह जाएगा। 

 

पहली बार दीया ने अनिरुद्ध से जाना था कि शिक्षित होना या स्वाबलम्बी होने का मात्र यह अर्थ नहीं है कि धन कमाया जाए बल्कि खाली दिमाग़, शैतान का घर की कहावत से लड़ने का भी साधन है, अपने आचार, विचार और व्यवहार में आत्मविश्वास के साथ बढ़ने की प्रक्रिया है और वह यह भी चाहता है कि उसकी हमसफ़र पूरे आत्मविश्वास से इस दुनिया का सामना करे, उसकी खुद क़ी सोच हो, हर निर्णय के लिए दूसरों क़ी ओर ना देखे बल्कि दूसरों को निर्णय लेने में सहायता करे। अभी तक जो दीया पढ़ाई और किताबों को मनोरंजन का साधन समझती थी, अनिरुद्ध की बातों से अभिभूत हो गई थी। उसने कभी जीवन को इस तरीके से सोचा ही नहीं था। अनिरुद्ध की बातों से दीया के माथे पर पड़ा बल ढीला होक़र उसके अधर की लाली और नैनों के काजल में मुस्कुराहट और चमक बरबस ही समा गई।

दीया अतीत में खोई अनिरुद्ध जैसा हमसफर पाकर गर्व से मुस्कुरा रही थी। उसकी तंन्द्र तब टूटी जब कैंटीन का लड़का उसके सामने से प्लेट हटाने लगा और दीया मुस्कुराती हुई ट्रेनिंग के लिए विदेश गए हुए अनिरुद्ध को हालात की जानकारी देने हेतु पर्स से मोबाइल निकालने लगी और उरतल में गुनने लगी,

“लाली मेरे लाल की, जित देखूँ तित लाल।

 लाली देखन मैं गई, मैं भी हो गई लाल।।”

आरती झा आद्या

दिल्ली

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