उम्मीद परिवार के सदस्य से होती है –  कनार शर्मा 

सुबह का वक्त सुहाना के लिए बहुत ही मुश्किल होता क्यों??? क्योंकि चाय नाश्ते की तैयारी के साथ बच्चों और ऑफिस जाने वालों के टिफिन तैयार करने होते हैं। कहने को उसकी दो देवरानी और भी है मगर जब जेठानी सीधी सच्ची,सबकी उम्मीदें पूरी हो ऐसी सोच रखने वाली और परिवार को बांधने में यकीन करने वाली हो तो उसका फायदा कौन नहीं उठाएगा????

बस इसी के चलते दोनों देवरानियां चिकनी चुपड़ी बात कर जेठानी को पटाकर रखती और उससे अपने बच्चे पलवाती और रसोई संभलवाती…!!

और सुहाना को भी इससे कोई परेशानी नहीं थी वह तो खुद चाहती थी कि जहां उसने गृहणी बनकर अपनी पढ़ाई लिखाई बर्बाद कर दी… वहां उसकी दोनों देवरानी है नौकरी करें और आत्मनिर्भर बने…ऐसा हुआ भी सुरभि एक प्राइवेट टीचर है और रुचि सीए है। सभी को जल्दी निकलना होता था इसीलिए सुबह के सबके टिफिन सुहाना अकेले ही बनाती थी।

सुरभि तैयार होकर पर्स संभालते हुए बोली “सुहाना भाभी टीनू मीनू के लंच में मटर पनीर देना मैंने शाम को फ्रिज में लाकर रखा है..!!

मगर सुरभि मैंने तो पराठा और आलू की सूखी सब्जी बना दी है।

प्लीज भाभी अगर मटर पनीर नहीं रखा तो दोनों मेरी जान खा जाएंगे और फिर सफल मटर, पनीर में कितना समय लगता है बना दीजिए ना… आप तो वैसे कितनी एक्सपर्ट है और मैं तो यही ले जाऊंगी बोल टिफिन को अपने पर्स में डाल स्कूल निकल गई।

सुहाना ने मटर पनीर बना चारों बच्चों को तैयार किया टिफिन थमा सबको बस स्टॉप तक छोड़कर आई… सोचा चाय पी लूं तभी छोटी देवरानी रुचि अंगड़ाई लेते हुए बोली “भाभी एक कप चाय मुझे भी बना दीजिए और सोनू को पिज़्ज़ा पराठा बनाकर रख दीजिए”!!




 मगर रुचि आलू की सूखी सब्जी है, मटर पनीर है इनमें से कुछ भी रख देती हूं कल सबके लिए एक जैसा खाना बना दूंगी!!

 अरे नहीं भाभी आपको पता है ना सोनू प्ले स्कूल में लांच देखते ही रोने लगेगा आप उसकी पसंद आलू पराठा बनाकर रख दीजिए और मैं तो सिर्फ बनाना शेक ही पियूंगी देखिए मैंने फल लाकर शाम को ही रख दिए थे सब बच्चों को खिलाना गोलू और प्रिया को बहुत पसंद है उनके लिए एप्पल भी लाई थी। अच्छा आप सोनू को तैयार कर दीजिएगा तब तक मैं थोड़ा फाइल देख लूं फिर उसे रास्ते में छोड़ ऑफिस निकल जाऊंगी… बोल अपने कमरे में चली गई…!!

चाय बनाकर उसने आलू के पराठे बना सोनू का टिफिन तैयार कर दिया… 9:00 बज गए थे सोचा शांति से बैठ कर चाय पीती हूं और कामवाली मुन्नी दीदी का इंतजार करती हूं…!!

तभी सौरव गुस्से से बोले तुम्हें पूरे घर की फिक्र होती है कभी सोचा है पति को भी किसी चीज की जरूरत पड़ती होगी परेशानी होती होगी तुम तो सामान जमा देती हो ढूंढना तो मुझे ही पड़ता है आओ आकर बताओ मेरा रुमाल और बेल्ट कहां रखा है…!!

चाय छोड़ सुहाना कमरे में जाकर सौरव का सामान निकाल कर देती है तभी देवर गौरव बोले भाभी मेरा नाश्ता लगा दो मुझे ऑफिस निकलना है।

 जी भैया बोल पराठे आलू की सब्जी, मटर पनीर की सब्जी सामने परस जाती है।

 अरे क्या भाभी आलू के पराठे नहीं बनाए ???

भैया वो तो मैंने सिर्फ सोनू के लिए बनाए थे।

 क्या यार भाभी चार-पांच बना लेती आपको पता है ना मुझे भी कितने पसंद है उनकी खुशबू से ही मुझे लगा था कि आप आज आपके हाथ के स्वादिष्ट आलू के पराठे खाने को मिलेंगे कोई बात नहीं देवरजी कल मैं सभी के लिए आलू के पराठे बना लूंगी आज आप यह खा जाइए।

 




इतने में छोटे देवर विशेष बोले “भाभी मेरा सर बहुत दर्द कर रहा है एक कॉफी बना दीजिए और साथ में दो ब्रेड जैम दीजिएगा मेरा ये हैवी नाश्ता करने का मन नहीं है”।

फिर रसोई में फरमाइश पूरी करने पहुंच गई यह कोई एक दिन नहीं था रोज की यही कहानी थी मगर उसने खुद यह रास्ता चुना था फिर वह पीछे कैसे हट सकती थी।

16 साल पहले सुहाना वर्मा परिवार में की बड़ी बहू बनकर आई थी सासु मां ने बहुत अच्छे से घर गृहस्ती के काम सिखाए सौरव के दोनों छोटे भाइयों को भाई अपना बेटा ही मानना यही समझाया कभी इन्हें इस घर से अलग मत करना… सासु मां को गंभीर बीमारी थी जिसके चलते शादी के एक साल बाद ही वे चल बसी फिर सौरभ और सुहाना ने मिलकर ही दोनों की शादी की और सुहाना बन गई सुरभि और रुचि की बन गई भाभी मां… तभी से बच्चे हो या बड़े सभी का एक समान ही ख्याल रखती है… देवरानियों को रसोई में आने के लिए बाध्य नहीं करती…!!

इधर सुरभि और रुचि दोनों की सोच का पहलू थोड़ा अलग था माना भाभी हमें रसोई के काम में नहीं अटकाती है मगर हम भी तो बर्तन, झाड़ू पोंछा वाली के पेमेंट करते हैं साथ में सब्जी भाजी लाकर रखते हैं खाने पीने की हर चीज बाजार से लाकर एडवांस में रखते हैं भाभी को किसी बात के लिए परेशान नहीं होना पड़ता तो जब हम इतना कुछ करते हैं तो वे हमारे बच्चों और खाने-पीने की व्यवस्थाएं कर देती हैं सीधा सा मतलब दोनों के लिए सुहाना जो भी कर रही थी वह कोई बड़ी बात नहीं थी क्योंकि जब वो नौकरी कर ही नहीं रही हैं तो फिर उन्हें घर तो संभालना ही है।

एक दिन अचानक सुहाना के भाई का फोन आया दीदी पापा को अस्पताल में भर्ती करवा दिया है हालत गंभीर है आप जल्द से जल्द आगरा आ जाओ…!!

सुहाना की मां बहुत पहले चल बसी थी पिताजी थे वो भी हर समय बीमार रहते…भाभी बहुत तेज थी इसलिए वह मायके भी ज्यादा नहीं जा पाती थी जिसका फायदा सभी को मिलता था सभी को पता था भाभी अपने मायके नहीं जाती तो उनका भरपूर फायदा उठाया जाता।

उसने तुरंत यह बात सुरभि और रुचि दोनों को बताई और बड़ी उम्मीद से कहा तुम गोलू, प्रिया दोनों बच्चों का ख्याल रखना सुबह दोनों को जबरदस्ती उठाना पड़ता है गोलू को ब्रश करा देना वरना बिना करे ही चला जाएगा साथ में उनकी परीक्षाएं हैं रोज समय पर उन्हें पढ़ने बिठा देना, ट्यूशन से आने पर उनके खाने पीने का ध्यान रखना, रात में दोनों दूध पीकर सोते हैं उन्हें दे देना और भाई साहब का भी टिफिन समय पर लगा देना वरना वो बहुत गुस्सा जाते हैं और शाम को आते ही गर्म चाय देना हो सके तो कुछ सूखा नाश्ता रख देना… और हां खाने के बाद कुछ मीठा जरूर रखना…!!

सौरभ ने बात की गंभीरता को समझते हुए उसका टिकट कराने के लिए मोबाइल उठाया ही था कि…

छोटी देवरानी रुचि बोली “भाभी मां कैसी बातें कर रही हैं??? मैं इतना सब कैसे करूंगी मेरे तो ऑफिस में ऑडिट चल रही है सुबह जो निकलती हूं शाम तक आती हूं एक काम कीजिए सुरभि भाभी को बोल दीजिए वही अपने स्कूल से छुट्टी ले लेंगे और सारा दिन घर संभालेंगी… घर के कामों से बचने के लिए पैंतरा फेंका!!




मंझली देवरानी सुरभि कहां पीछे रहने वाली थी छोटी की सब चालाकियां जानती थी तो मासूम बनाते हुए बोली “भाभी मां आप तो जानती हैं सुबह 7 बजे स्कूल निकल जाती हूं 4:00 बजे तक आती हूं। छुट्टी महीने में एक से ज्यादा छुट्टी पर मेरी तनख्वाह कट जाती है और मेरा माइग्रेन साथ में दोनों बच्चे आखिर में कैसे संभाल लूंगी पांचों बच्चों को आप तो अच्छे से जानती हैं और फिर ठंडे आ रही हैं मुझे तो बहुत ठंड लगती है कैसे रसोई में इतना काम करूंगी… एक काम कीजिए जरूरी ना हो तो मत जाइए या फिर सौरभ भाई साहब को भेज दीजिए वह सब कुछ अच्छे से संभाल लेंगे आप कहां अस्पतालों के चक्कर काटेंगी ऊपर से रुपया पैसा की जरूरत हो तो हम आपको हर तरीके से सपोर्ट करेंगे…!!

इतना ही नहीं अपनी बीवियों की बात सुनकर दोनों लाडले देवरों ने हां में हां मिलाई आखिर वह भी अपनी बीवियों को चूल्हा चौका में घिसते हुए कैसे देखते हैं और फिर भाभी चली गई तो फरमाए से कौन पूरी करता…समय पर काम कैसे पूरे होते????

सबकी बात सुन सुहाना ज्वालामुखी की तरह फूट पड़ा चुप करो तुम लोग वहां मेरे पिताजी वेंटिलेटर पर पड़े हैं और तुम लोगों को अपनी पड़ी है जरा सी भी शर्म नहीं है आखिर मेरा परिवार इतना बेगैरत कैसे हो सकता है???? जिन लोगों को मैं अपना सब कुछ मानती हूं अपना सब कुछ वार देती हूं वह लोग मेरे साथ ऐसा करेंगे अगर मुझे 4 दिन के लिए कहीं जाना भी पड़ जाए तो तुम्हें अपना घर और मेरे दो बच्चे तुम लोगों को भारी पड़ते हैं… मेरा क्या जो अपने बच्चों के साथ तुम्हारे बच्चों को भी बराबरी से पालती हूं कभी उनकी फरमाइश में कमी नहीं होने देती हर चीज का ध्यान रखती हूं तुम आओ से ज्यादा वह अपनी ताई पर विश्वास रखते हैं!!

भाभी मां ऐसा मत बोलिए हम भी घर के लिए कितना कुछ करते हैं कभी राशन पानी की कमी नहीं होने देते। अपने बच्चों के साथ आपके बच्चों पर भी खर्च करते हैं उसके बदले में अगर आप थोड़ा खाना पीना और हमारी गैर हाजरी में उनका ध्यान रख लेती है तो कोई एहसान थोड़ी करती है… घमंड से भर रूचि बोली…!!

हां रुचि ठीक कहती है आखिर हमने ऐसा क्या कह दिया… जल्दबाजी करने से अच्छा है स्थिति को समझने के लिए समय लीजिए… जरूरत हो तो आप चले जाइएगा और फिर इंसान अस्पताल में है क्या पता कल ही वापस आ जाएं और आपका आना जाना, आपकी तकलीफ ही बढ़ेगी… हम आपकी भलाई के लिए बोल रहे हैं…!!

बस करो तुम लोग आज तुमने बता दिया कि कितनी कदर है तुम्हें मेरी तुमने आज मेरी 16 साल की तपस्या को अपनी नौकरी और पैसों के घमंड से तौल दिया….?????

 मैं तो समझती थी ये तो मेरा प्यार और समर्पण है। हम एक संयुक्त परिवार है मगर इस तरह के पहलू भी निकल कर आएंगे पता नहीं था। एक बार मुझे जरूरत पड़ी तो तुम सब ने अपने हाथ खड़े कर लिया तुम लोग चाहते हो कि मैं उधर से ना जाऊं वह भी अपने पिताजी को देखने?????




रुचि, सुरभि तुम लोग ना जाने कितनी बार अपने मायके के वार त्योहार, शादियां करने चली जाती तो कभी अपने पतियों के साथ हिल स्टेशन पर जाती हो… वो भी बच्चों को छोड़कर मैंने तो कभी इस बात पर तेरा मेरा नहीं किया। नौकरी करने जाती हो पीछे से तुम्हारे पति, बच्चों का सारा काम मैं देखती हूं, घर की व्यवस्थाएं मुझसे टिकी है और तो और तुम लोग आने के बाद गरम चाय हाथों में देती हूं… इसीलिए नहीं कि किसी दिन मुझे जरूरत पड़ेगी तो तुम्हें ऐसे हाथ खड़े कर दोगी… ऊपर से रुपया पैसा का एहसान जताती हो कहने से पहले एक बार सोचा होता अगर मैंने तुम्हें इतना सपोर्ट नहीं किया होता तो क्या तुम बच्चों के साथ इतना मैनेज कर पाती यू स्वच्छंद होकर अपनी जिंदगी जी पाती… अपना समझ कर सबकी उम्मीदों को पूरा करने में लगी रही आज एक उम्मीद कि की तुम मेरे परिवार को कुछ दिनों के लिए संभाल लोगी… तुम तो दो हो मैं अकेली पूरा परिवार संभालती हूं बोलने से पहले इतना तो सोचा होता!! 

अब एक काम करो तुम दोनों अपनी गृहस्थी अलग कर लो और अपने रुपए पैसे के दम पर एक नहीं चार बाई लगाकर अपनी नौकरी, बच्चें और घर संभालो क्योंकि मेरे काम की तो तुम्हें कोई कदर है नहीं और मैंने तुम पर कोई एहसान तो कभी किया ही नहीं…जब मैं सबके लिए इतना करती हूं तो मैं अपना मायका और अपने बच्चे और पति सबको मैनेज कर लूंगी बस तुम लोगों से मेरा कोई वास्ता नहीं बहुत कर लिया जिसका यह सिला मिला गुस्से से बोली…!!

रुपए पैसों की घमंड में दोनों देवर ऊपर के माले पर शिफ्ट हो गए, घर में काम करने के लिए कामवाली, रसोइए, बच्चों की देखभाल के लिए आया सब लगा ली गई… फिर भी रुचि और सुरभि दोनों को अब अपनी नौकरी और बच्चों को लेकर वैसी निश्चिंत नहीं रही जैसी भाभी मां की छत्रछाया में थी।

दोनों देवर गौरव और विशेष की भी हर फरमाइश पूरी करने वाला कोई नहीं था… उन्हें भी अपनी गलती पर पछतावा था।

और चारों को जल्दी एहसास हो गया कि उनसे कितनी बड़ी गलती हो गई छोटी सी बात पर उन्हें अपना कितना बड़ा नुकसान कर डाला था।

दोस्तों,

ताली दोनों हाथों से बजती है आखिर इंसान कब तक एक तरफा रिश्ते निभाते रहे पूरी जिंदगी उनके लिए अपने अरमान मारता रहे और फिर यहां तो सुहाना को अपने बूढ़े बीमार पिता के पास जाना था… क्या गलत है इसमें अगर दोनों देवरानी और देवर थोड़ा सहयोग कर देते आखिर बेबी तो बच्चों के चाचा चाची ही थे ना फिर उन्हें वह दो बच्चे बोल क्यों लग रहे थे???

आशा करती हूं मेरी रचना को जरूर पसंद आएगी साथ में आप लाइक, शेयर, कॉमेंट जरूर करें धन्यवाद!! आपकी सखी 

   कनार शर्मा 

(मौलिक रचना सर्वाधिक सुरक्षित)

#उम्मीद

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