उम्मीद आख़िर कितनी और कब तक…? – रश्मि प्रकाश 

 

‘‘आज पहली बार मैंने अपनी दिल की बात सबके सामने रखी तो सबको बुरा लग रहा…. सबकी उम्मीद बस आपसे ही क्यों …. क्या हमआपके कुछ नहीं लगते…. ऐसा है तो रहिए ना इन लोगों के ही साथ जो आपका भला सोचे बैठे है….. वो आपसे उम्मीद करते रहे औरआप उनको पूरा करने की मशीन बन कर रहिए….।”मन का गुब्बार फूट फूट कर बाहर निकल रहा था…..राशि निर्बाध गति में बोले जारही 

ऐसा लग रहा था मानो वर्षों बाद किसी ने बंद नदी के द्वार खोल दिया हो वो जो बस आज बहना चाहती है….आँसुओं के सैलाब …तीखेबोल …मानो राशि ने आज अपने शांत मन को ज्वाला में बदल दिया था।

बच्चे भी डर कर माँ को देख रहे थें…निकुंज के चेहरे पर अफ़सोस था कि पत्नी को कभी क्यों नहीं समझ सका..

घर के एक एक सदस्य ये सोच सोच कर परेशान हो रहे थे कि जिस बात को हमने कभी समझा नही  राशि के मन में वो बातें घर करतीचली गईं थीं ।

बात कुछ ज्यादा नहीं बढ़ती अगर आज ये सब नहीं होता..

समझदार राशि हमेशा घर परिवार का सोच कर चलती रही….पति का अपने परिवार से लगाव वो देख चुकी थी….पति हमेशा अपनेपरिवार के लिए परेशान रहते रहते थे….उनकी जरूरतों का हमेशा ख्याल रखते…सब की उम्मीद बस निकुंज पर ही रहती थी…घर में कोईबीमार हुआ तो भी निकुंज कुछ चाहिए तो भी निकुंज…… वो उस घर में रहे और अपनी जॉब वाली जगह पर उम्मीद इतनी की दूर रह करभी पूरी करनी ज़रूरी होती….भाई निकुंज की तारीफ़ करते ना थकते … माँ दोनों बेटों के गुणगान करते ना थकती …..समझो बस ऐसापरिवार जिसकी मिसाल सब देते थकते नहीं थे…. कई बार परिवार में एकजुटता दिखाने के लिए बहुत सारी बातों को सबके सामनेनज़रअंदाज़ कर दिया जाता है तभी वो अच्छाई का आवरण पहने सबको अच्छा अच्छा दिखता है ।

निकुंज जब तब परिवार की जरूरतों के लिए बीवी बच्चों की जरूरतों को नजरंदाज कर देते.. थे राशि चाह कर भी कह नहीं पाती क्योंकिउसके पति की ख़ुशी उसमें थी।

राशि कभी कभी कहती भी ,“हमारे भी बच्चे हैं उनके लिए भी सोचा करो।”




इस पर निकुंज बोलते ,“अरे सब हो जायेगा चिन्ता मत करो भाई के बच्चे भी हमारे ही बच्चे हैं….।”

कभी बच्चों को ये चाहिए….कभी वो की फरमाइश पूरी करना  निकुंज की ही जिम्मेदारी थी… और इन सब से इतर उनकी माँ को उम्मीदकि निकुंज सबकी इच्छा पूरी करेगा।

 राशि के बच्चे भी बड़े हो रहे थे उनका भी मन करता था ये ले ..वो ले पर निकुंज ये कह कर टाल देते की अभी तुम छोटे हो …तुम्हें इनसबकी जरूरत नहीं है ।

राशि की बेटी बारहवीं के बाद बाहर किसी कॉलेज में जाने के लिए माँ से विनती कर रही थी पर निकुंज की माँ ने बोला ,“क्या करेगीबाहर कॉलेज में जाकर, यही शहर के कॉलेज में दाखिला ले ले….फिर जैसे और बहनों का विवाह हुआ तेरी भी करवा देंगे….इतना पढ़कर कौन सी नौकरी करनी है ।”

राशि हमेशा से चाहती थी कि वो अपने पैरों पर खड़ी हो पर परिस्थितियाँ कभी उसके अनुकूल नहीं रही….पर सोच रखा था बेटी को तोअपने पैरों पर खड़ा करवाना है…पर आज सास की बात से दिल रो पड़ा…फिर भी उम्मीद थी  निकुंज तो समझेंगे।

जब ये बात उसने निकुंज से कही तो बोले ,“ठीक है…करवा देंगे एडमिशन ….अभी तो वक्त है….तुम चिंता मत करो।”

कुछ दिनों बाद अचानक से  निकुंज के भाई ने बताया कि एक जमीन मिल रही है सोच रहा हूँ खरीद लिया जाए।

सासु माँ ने भी हां में हां मिला दिया…. वो निकुंज से बोली ,“भाई जमीन लेगा तो पैसे तो तुम दे ही दोगे?”

‘‘हाँ मॉं ये भी कोई बोलने की बात है।” निकुंज ने कहा तो उसकी बात से सब आश्वस्त हो कर जमीन खरीदने की तैयारी करने लगे।

इसी बीच राशि की बेटी के कॉलेज में एडमिशन का फार्म निकला और एडमिशन के लिए लाखों रुपए की जरूरत थी।

जब राशि ने निकुंज से कहा कि ,“बेटी का एडमिशन करवाना है …. रुपए लगेंगे….हास्टल की फ़ीस भी देनी होगी….देखिए निकुंजमहत्वाकांक्षी बेटी है हमारी उसके लिए जो हो करना है हमें।”

निकुंज कुछ देर की चुप्पी के बाद बोले ,‘‘ राशि पैसे तो भाई को दे दिए ….अभी तो थोड़े ही है….तुम एडमिशन की तैयारी करो मैंइंतजाम करता हूँ।”




“निकुंज आपको बताया तो था उसका एडमिशन करवाना है तो आपको सोचना चाहिए था….अब दो ही दिन बाक़ी रह गए हैं पता नहींक्या क्या होगा।” राशि परेशान हो ग़ुस्से में बोली 

निकुंज ने राशि से कहा,‘‘ क्या करता माँ ने बोला था तो पैसे देने ही थे….क्यों ना बेटी का एडमिशन यही करवा दे….करना क्या है उसकोशादी के बाद गृहस्थी ही तो संभालेगी ।”

 राशि निकुंज की बात खून का घूंट पी कर सुन गई…अपनी बेटी के सपनों को टूटता हुआ देख वो खुद को बहुत मुश्किल से काबू में रखपा रही थी।

इतने में भाई आकर बोला जमीन हमारी हो गई। 

जब जमीन के कागजात आये तो  राशि ने देखा कागज पर बस भाई जी का नाम है अब तक चुप  राशि के सब्र का बांध टूट गया। 

सासु माँ ने भी उपर से राशि को ही सुना दिया,“ बड़ा भाई है छोटे का सदा ख़्याल ही रखेगा…. तुम इन दोनों भाइयों में फूट डलवाने कीकोशिश कर रही हो… और भी ना जाने क्या क्या….।”

बस फिर क्या था राशि से भी चुप ना रहा गया और आज जो लावा फूटा था वो उसे अंदर तक झकझोर कर रख दिया। जिन लोगों केलिए हमेशा खुद को बाद में रखते रहे आज उस इंसान को भी अच्छा इनाम मिला था।  राशि सब बर्दाश्त कर लेती पर जिन पैसो से बेटीकी पढ़ाई का सोच रही थी पति ने सब पैसे उठा कर भाई को दे दिए…..बदले में भाई ने बस अपना सोचा ….क्या लोग ऐसे भी होते है???

 राशि के बोल तीखे जरूर थे पर अब  निकुंज की समझ में आ गया कि सब रिश्तों में एक ताल मेल जरूरी है। अगर बीबी कुछ नहींबोलती इसका मतलब ये नहीं कि आप उसको और अपने बच्चों को नजरंदाज करते रहे। 

आपको क्या लगता है राशि का गुस्सा करना जायज था और नही?

रिश्ते निभाने के लिए थोड़ा झुकना पड़ता है पर कभी भी खुद को इतना नहीं झुका देना चाहिए कि इससे आप खडे होने लायक न बचे।

 

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धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

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