मन का सुख -गीता वाधवानी : Moral Stories in Hindi

अस्पताल के एक कमरे में बिस्तर पर पड़ी सुमित्रा जी की  मन की स्थिति कुछ ठीक नहीं थी। उनकी दोनों मुंदी हुई आंखोंसे आंसू  बह बह कर तकिए को भिगो रहे थे। उनका दिल कर रहा था कि ऑक्सीजन मास्क को नोच कर फेंक दूं ताकि ईश्वरके पास जाकर अपने सवालों के जवाब मांग सकूं। हे ईश्वर! क्या मेरे कर्म इतने खराब है कि मुझे ऐसा निष्ठुर जीवनसाथी मिला। इतनी सेवा करने के बाद भी मुझे हमेशा बुराईही मिली। सेवा के बदले मैं कभी प्रशंसा की इच्छा नहीं रखी, लेकिन वह इंसान तो कभी प्यार केभी दो शब्द नहीं बोलता। मैं भी तो इंसान हूं, चलोतारीफ ना सही, कम से कम इज्जत तो करो, ताने मत मारो। 

क्या मैं पत्थर की बनीहूं, जो मैं कभी बीमार ना पड़ूं या फिर मुझे कभी कुछ ना हो। आखिर मशीन होती है वह भी कभी ना कभी खराब होतीहै। लोहे को भी आखिर एकदिन जंग लग ही जाती है। यह कैसा हमसफर दिया है मुझे, जिसे जिंदगी के सफर को खुशहाल और आसन बनाने की बजाय कष्टदायक और कठिन बनादिया है। 

सुमित्रा जी और उनके पति दयाला, की दो पुत्रियां थीं बीनू और मीनू। दोनों विवाहित थी और अपने-अपने घर में सुखी थी। माता-पिता को कष्ट में देखकर

तुरंत आ जाती थीं पर समय पर ससुराल लौटना ही पड़ता था। 

दरअसल सुमित्रा जीके पति दयाला को लगभग 3 साल पहले खांसीहुई थी और वह धीरे-धीरे बढ़ती जा रही थी और फिर एक दिन खून भीआ गया। दयाला जी खांसी की दवाई ले रहे थे और लापरवाही बरत रहे थे। सुमित्रा जी ने उन्हें डॉक्टर के पास जाने के लिए कहा। पर वह सुमित्रा की सुनते कबथे। आखिरकार एक दिन सुमित्रा जी उनसे लड़बैठी, और वह गुस्से में उठकर सिद्धा डॉक्टर साहब के पास चले गए। 

उनकी पूरी बात सुनकर डॉक्टर ने उन्हें सीने का एल डी सी टी टैस्ट करवानेको कहा और फिर पी ई टी स्कैन और  ब्रोकास्ट कोपी जैसी प्रक्रियाएं पूरी की गई। तब डॉक्टर साहब को फर्स्टस्टेज लंग कैंसर का पता लगा। 

डॉक्टर साहबने तुरंत इलाज शुरू कर दिया। इलाज के दौरान सुमित्राने कीमोथेरेपी, दवाइयां और उनके खाने-पीने पूराध्यान रखा। ठीकहोने के बाद भी बहुत समय तक वह अपने पति को परहेज वाला खाना देती रही और एक वर्ष में दयाला जी भले चंगे हो गए। 

इधर 8 दिन पहले अचानक सुमित्रा को अस्थमा का अटैक आया। थोड़ीबहुत परेशानी उसे पहले ही रहती थी और दवाइयां से कंट्रोल हो जाती थी। इस बार तो सुमित्रा का इतना  बुरा हाल हुआ कि उसे अस्पताल में एडमिट करना पड़ा, वरना शायद वह मर ही जाती। 

डॉक्टर साहब 2 दिन से नोटिस कर रहे थे कि सुमित्रा उदास रहती है और उसकी ठीक होने दी इच्छा ना के बराबर है। 

सुमित्रा आंखें बंद किये बिस्तर पर पड़ी थी तब उसने सुना डॉक्टर साहब दयाला से कह रहे थे “आप इनको मानसिकरूप से सहारा दीजिए, इनसे प्यार से बात कीजिए और अपने हाथ से खाना खिलाइये, यह जल्दीठीक हो जाएं गी।” 

डॉक्टर साहब चले गए तब दयाला ने गुस्से में बड़बड़ाना शुरू कर दिया”वैसे ही मैं 8 दिन से अस्पताल के चक्कर लगा लगाकर थक गया हूं और अब इसे खाना भी मैं अपने हाथों से खिलाऊं। 8 दिन हो गए, तंग कर रखा है। खुद तो बैड पर आराम फरमा रही है, मुझे परेशान कर रखा है।” 

सुमित्रा जीआंख बंद करके सब कुछ सुन रही थी और उनके आंसू बह रहे थे। सोच रही थी, कितना मतलबी इंसान है। वैसे शुरू से ही उनका यही व्यवहार था। पहले भी जब कभी वह बीमार होती थी, तो दयाला कभी उसकी परवाह नहीं करते थे। उनको तब भी सब कुछ तैयार अपने रूटीन के हिसाब से चाहिए होताथा। सुबह की चाय सेलेकर रातके गर्म दूध तक। वैसे तो बच्चियों से बहुत प्यार करते थे लेकिन उनके बीमार होने पर सुमित्रा की नींद पूरी हुई या नहीं, बच्चे ने बीमार होने पर खाना बनाने दिया या नहीं, इन बातोंसे उन्हें कोई सरोकार नहीं होता था। 

वह स्वयं को स्वामी और सुमित्रा को अपनी दासीसमझते थे। कहते थे कि इसका तो फर्ज है मेरी सेवा करना। हमसफर तो बहुत दूर की बात है उन्होंने तो कभी उसे दोस्त भी नहीं समझा था। 

सुमित्रा जबभी ईश्वर के सामने होती, उनसे यही पूछती कि मेरा हमसफ़र ऐसाक्यों है। मैंने कितनी जोड़ियां ऐसी देखीहै जो दोस्तों की तरह खुलकर बात करते हैं और मिलकर खुशी से रहते हैं। 

मैं तो इतना सोच समझ कर बोलती हूं फिरभी मुझे ताने सुनने पड़ते हैं। 

भगवान मुझे अगले जन्म में मुझे दोस्त समझने वाला पति देना, जो मुझे मेरे मन की बात कहने का मौका दे, मुझे सम्मान दे औरअपनी नौकरानी ना समझे। अपने पति के द्वारा दी हुई सुखसुविधाओं, कपड़ों और गहनों का मैं क्या करूं, जब मेरे पास “मन का सुख”ही नहीं है, लेकिन उसकी बातों का भगवान के पास कोई जवाब नहीं होता था।” 

इसी तरह ईश्वर का नाम जपते जपते सुमित्रा कुछ दिनों में ठीक होकर अस्पताल से घर आ गई और अपनीनातिन और नातियोंके साथ खुश रहने की कोशिश करने लगी क्योंकि उसे पता था कि जो इंसान जवानीमें नहीं बदला, वो इस उम्र में आकर क्या बदलेगा। 

स्वरचित अप्रकाशित गीता वाधवानी दिल्ली 

#हमसफर

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