जाग्रति – शुभ्रा बैनर्जी Moral Stories in Hindi

ममता से अब अपनी बहू का दुख देखा नहीं जा रहा था।शादी को सिर्फ दो बरस ही हुए थे।बड़े बेटे राहुल का ब्याह अपने गृहनगर (राजस्थान)में करवाया था उन्होंने।नीरजा (बहू)पढ़ी लिखी,सुंदर और सुशील लड़की थी।घर गृहस्थी संभालने में निपुण थीं नीरजा।राहुल जैसे गैरजिम्मेदार पति को संभाल लिया था उसने। सुबह दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलने जाता था राहुल।उस दिन भी गया था,ममता जी को कॉफ़ी देकर।लगभग नौ बजे खबर मिली कि नाले से गेंद निकालते समय अचानक पैर फिसला उसका,और डूब गया।पूरे मोहल्ले में कोहराम मच गया था।

ममता जी के कलेजे का टुकड़ा था वह।पहली संतान के प्रति माता-पिता का मोह विशेष होता है।पति हताश होकर दहाड़ मार-मार कर रो रहे थे।ममता की गोद में बेटे की निशानी नव्या टुकुर-टुकुर देखे जा रही थी।सभी को रोता देखकर डर गई थी वह।ममता जी को कलपते देखकर पूछा उसने”दादी,छब क्यों लो रहे?कोई मर गया है क्या?”ममता जी ने उसे सीने में भींच लिया और बोलीं”नहीं रे नव्या,सब बारिश के डर से रो रहें हैं।तू मत डर।”

“दादी,मैं पापा की दोद में जाऊंगी ,तो नहीं डरूंगी।पापा कहां हैं?”नन्हीं नव्या की बातें सुनकर ममता जी का सीना फट गया।कैसे बताएं इस अबोध को कि उसके पापा भगवान जी के पास चले गए हैं? नीरजा एकटक आसमान में घूर रही थी।आंखें मानो पथरा गईं थीं,एक भी आंसू नहीं निकल रहा था।सभी उसे रुलाने की कोशिश में लगे थे। बार-बार चीख-चीख कर कह रही थी पड़ोस की निर्मला जी”अरे अभागन, रो ले।जी हल्का कर ले अपना।अब राहुल कभी नहीं आएगा।तेरी नव्या अब बिन बाप की रह गई।थोड़ा सा तो रो ले,नहीं तो घुट-घुट कर मर जाएगी।

“नीरजा पर कुछ भी असर नहीं हो रहा था।राहुल की अंतिम यात्रा की तैयारियां हो रहीं थीं।ममता जी की बुआ सास ने जैसे ही बहू की मांग का सिंदूर पोंछने के लिए हांथ बढ़ाया,नीरजा बछिए की तरह,ममता जी की गोद में दुबक गई। बड़ी-बड़ी आंखों में अपार वेदना लिए,मानो मूक विनती कर रही हो अपनी सास से।उसे सीने से लगाकर पीठ सहलाते हुए बोली ममता जी”जो तेरे जी में आए,वही कर बहू।तू लोगों की परवाह ना कर बींदणी।इनका तो काम ही है,बातें बनाना।”नीरजा और लिपट गई अपनी सास से।राहुल की विदाई के समय नव्या को मोहल्ले की पूजा के घर पर रखा गया था।

अभी चिता की राख ठंडी भी नहीं हुई थी कि आस-पड़ोस की औरतों ने नीरजा को ताने मारने शुरू कर दिया कोई कहता”बड़ी कुलच्छिनी है बहुरिया,आते ही खा गई अपने पति को।कब से जावे था छोरा,खेलने।आज तक कभी ऐसी अनहोनी नहीं हुई।बहू अपशकुनी है ,तभी तो छोटे से नाले में डूब गया।”नीरजा खून के आंसू रोती,और अपनी सास को देखती।सवा महीने बाद पीहर वाले लिवा ले गए,नीरजा को।जाते समय भी कस के गले लगी थी,ममता जी से और बोली थी”अब लिवाने किसे भेजोगी मम्मी?मैं तो बहू बनकर भी पराई हो गई।”

राहुल के जाने से घर काटने को दौड़ता,उस पर नव्या और नीरजा की अनुपस्थिति ने ममता जी को बीमार कर दिया था।जितने मुंह उतनी बातें हो रहीं थीं।ममता जी के कानों में मोहल्ले की औरतों की खुसर-पुसर पहुंच ही जाती थीं।पूजा की सास कह रही थी अपनी बहू से”देखा,कैसे महीने भर में मायके भेज दिया बहू को।तीस तोला सोना डकार जाएगी देखना।हम लोगों ने तो देखा था, जब नीरजा आई थी राहुल के साथ।सारा सोना अपनी बेटी को दे देगी।या तो नीरजा को लाएगी नहीं या जीवन भर बाई बनाकर रखेगी ममता।”

ये कैसी सहेलियां हैं?एक ही मोहल्ले में सालों से साथ रह रहें हैं,फिर भी इनके मन में इतना जहर भरा है।मैं अपनी बहू का दहेज रख लूंगी?इतनी स्वार्थी हूं क्या मैं?मेरी बहू को मैं पसंद कर लाईं थीं,तो अब उसे बाई बनाकर क्यों रखूंगी मैं? सोचते-सोचते ममता जी का माथा फटने लगा।तभी नीरजा की मां का फोन आया”बहन जी,नमस्ते।हम पूछना चाह रहे थे कि कब विदा कराने आएंगे,आप और भाई साहब?”ममता जी ने अगले महीने आने की बात पक्की कर दी।

रात में पति को जब अपने मन की बात बताई,तो वे चौंक गए।बोले”पगला गई हो क्या ममता?बेटे की मौत का दिमाग पर असर हुआ दिखता है।अपनी बहू के बारे में ऐसा सोचते हुए तुम्हें शर्म नहीं आई क्या?बोझ थोड़े ही है हम पर वह,हमारी बेटी है।जब तक हम हैं,उसे कभी तकलीफ़ नहीं होगी।हमारे ना रहने पर भी मैं उसकी व्यवस्था कर जाऊंगा।उसे कभी किसी का मोहताज नहीं होने दूंगा मैं।मुझे मां भवानी की कसम।तुम अपनी बेसिर पैर की बात किसी और के सामने ना करना,लोग क्या कहेंगे?”

ममता जी ने पति की बात काटते हुए कहा”लोग क्या कहेंगे?उनका तो काम ही है,बातें बनाना।नीरजा को यदि आपने दिल से अपनी बेटी माना है,तो उसके आने वाले कल के बारे में सोचिए।हमारी आंखों के सामने हमेशा चहकने वाली नीरजा जब सूनी मांग और कलाई लिए रोती दिखेंगी, बर्दाश्त कर पाएंगे आप?

बड़े हैं तो बड़ा बनकर दिखाइये।समाज को आईना दिखाना जरूरी है।आप तो नेतागिरी भी करते हैं।लोगों की समस्या सुलझाते हैं,फिर जब अपने घर की बारी आई तो पीछे क्यों हट रहें हैं?है हिम्मत आपमें तो चलिए बहू के मायके।अगर नहीं है तो चुपचाप लोगों की सुनते रहिए।”

अपनी पत्नी के हौसले के सामने आज एक पति हार गया।समाज को जगाने का बीड़ा उठाया था उन्होंने,और आज उनकी पत्नी ने उनकी जाग्रति जगा दी।ख़ुद की लंबी कद-काठी होने से, ममता जी की दुर्बल काया का अक्सर मजाक उड़ाते रहते थे वे।आज इस छोटे कद की औरत ने उन्हें बौना बना दिया।

नीरजा के घर में बैठकर जब ममता जी ने अपना  इरादा बताया ,तो नीरजा के घर वाले दंग रह गए।आज तक उनके खानदान में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था।लोग क्या कहेंगे?समाज क्या कहेगा?सोचते हुए नीरजा के माता -पिता और भाई-भाभी चुप बैठे थे।तभी नव्या दौड़ती हुई आई और ममता जी की गोद में चढ़कर पूछी”मेले पापा कहां हैं दादी?”ममता जी ने प्यार से उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा”बस जल्दी आएंगे तेरे पापा।मुझे भेजा है तुझे यही बताने।”नीरजा ने पैर छूकर पूछा”मम्मी जी,कब निकलना है?”

ममता जी ने बहू की सूनी आंखों में देखकर और उसका हांथ अपने सर पर रखकर कहा”तुझे कसम है मेरी और पापा जी की,मना मत करियो।जो तूने सच में हमें अपना मां-बाप माना है तो,कन्यादान अबकी हमें करने दे।नव्या से वादा किया था ना मैंने,उसके पापा दिलाने का,पूरा करने दे मुझे मेरा वचन।

“पूरे परिवार वालों के सामने आज ममता जी एक प्रेरणा बन गईं।बहू के किसी रिश्तेदार (विधुर)से शादी पक्की करने का काम ,नीरजा के माता-पिता ने कर दिया।बाकी आगे की सारी जिम्मेदारी ममता जी ने अपने पति के साथ मिलकर निभाई।शादी के दो दिन पहले ही छोटे बेटे और बेटी को बुलवाया था ममता जी ने।ज्यादा रिश्तेदारों की भीड़ जमा करने से मना किया था,लड़की वालों को।

आज अपनी बहू का कन्यादान करते हुए राहुल को सच्ची श्रद्धांजलि दे रहीं थीं ममता जी।बहू के दहेज के अलावा अपने दिए हुए सारे गहने चढ़ावे में चढ़ा दिए थे उन्होंने।अपनी नातिन की शादी के लिए नया रानी हार अभी-अभी बनवाया था राजस्थान में ही।नीरजा के हांथों रानी हार देकर कहा ममता जी ने”बहू,अब हमारा मोह त्याग देना।

नए घर में नए जीवन साथी के साथ खुशी-खुशी अपनी गृहस्थी शुरू कर।नव्या अभी छोटी है ,कुंवर साहब को अपना पिता मानने में तकलीफ़ नहीं होगी उसे।तेरी मांग में सिंदूर लगवाकर ले गई थी ,अब फिर तेरी मांग सिंदूरी देखकर जा रहीं हूं।जब भी तुझे दूसरे मां-बाप की जरूरत लगे,याद करना।जो ना लगे,तो ना रखना नाता।ममता जी बहू से लिपटकर आज आखिरी बार रो रही थी।लोगों की परवाह ना करके आज एक मां ने अपनी बेटी का कन्यादान कर दिया।

शुभ्रा बैनर्जी 

#लोगों का तो काम ही है बातें बनाना

4 thoughts on “जाग्रति – शुभ्रा बैनर्जी Moral Stories in Hindi”

  1. सोचने वाली बात है, शादी को 2 बरस ही हुए थे और बच्चा खूब बोलना सीख गया था

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