लो जी संभालो-शुभ्रा बैनर्जी Moral stories in hindi

स्वाति जी का छोटा सा परिवार था।छोटे से कस्बे में सबसे बड़ी दुकान थी,उनके पति गोविंद जी की।स्वाति जी अपने बेटे की शादी को लेकर बड़ी चिंतित रहतीं थीं।सिठानी सी सजी-धजी स्वाति जी गजब की खूबसूरत लगतीं थीं अब भी।अब बहू भी उन्हीं की टक्कर की चाहिए थी,जो बीस हो उनसे।गोविंद जी ने कारोबार शुरू … Read more

मायका -शुभ्रा बैनर्जी Moral stories in hindi

शुभि के बच्चे अब बड़े हो गए थे।बचपन में ननिहाल जाने का जो उत्साह रहता है,समय के साथ-साथ वह कम होता जाता है।समर वैकेशन मतलब ननिहाल होता था पहले।शुभि आज भी सोच रही थी ,काश पहले वाले दिन फिर लौट आते। गर्मी की छुट्टियां पड़ते ही ,बच्चों के कंधे पर रखकर चलाई गई गोली सीधे … Read more

नवरात्रि – शुभ्रा बैनर्जी : Moral stories in hindi

लगभग एक महीने पहले से पूनम जी ने सिंघाड़ा सुखाकर आटा पिसवा कर रख लिया था।बिना नमक के चिप्स,साबूदाने के पापड़,राजगीरे का आटा तैयार करके रख लिया था।बरसों से नवरात्रि की तैयारी करती रहीं थीं,पूनम जी।इस बार की नवरात्र तो खास होने वाली थी उनकी बहू के आ जाने से। “निशा ओ निशा,कल चुनरी प्रिंट … Read more

गृहस्थी की डोर – शुभ्रा बैनर्जी  : Moral stories in hindi

विवेक जी रिटायरमेंट के बाद नागपुर में ही घर बनवाकर रह रहे थे।दोनों बेटियों की शादी कर दी थी।इकलौता बेटा दीपक डॉक्टर बना था।पोस्टिंग मध्यप्रदेश में हुई।मां का लाड़ला पहली बार घर से दूर जा रहा था।मां, सुमित्रा जी को सबसे ज्यादा चिंता बेटे के खाने की थी। ज्वाइनिंग का समय नजदीक आते ही विवेक … Read more

दहेज – शुभ्रा बनर्जी: Moral stories in hindi

शिप्रा अपनी ननद की बेटी की शादी में आई थी।इकलौती मामी थी वह रिमझिम की।शिप्रा के बेटे से चार महीने छोटी थी रिमझिम।जन्म के बाद ननद की तबीयत खराब हो गई थी,तो शिप्रा ने अपना दूध पिलाया था उसे।सास हमेशा कहतीं”तुमने दूध पिलाया है ना,इसलिए ममता ज्यादा है।”पता नहीं ,पर सच तो यही था कि … Read more

मैं भी बाप हूं -शुभ्रा बैनर्जी : Moral stories in hindi

आज उमाकांत जी के घर में तहलका मचा हुआ था।पत्नी माधवी जी तमतमाई आईं और पति से बोलीं”सुन रहें हैं आप! आपके लाड़ले की बात।इन्हें मंदिर में शादी करनी है।टैंट-वैंट नहीं लगवाना,बैंड -बाजा की भी कोई जरूरत नहीं है। गिने-चुने बाराती लेकर मंदिर में पहुंचो,और शादी कर लो।सुन लीजिए आप,कान खोलकर।मैं शामिल नहीं रहूंगी ऐसी … Read more

होली है – शुभ्रा बैनर्जी : Moral stories in hindi

रितिका की यह पहली होली थी ससुराल में।मायके में कभी हुल्लड़ नहीं मचाया था उसने।घर की बड़ी थी।पापा के जाने के बाद बड़ी जिम्मेदारी से संभाला था मां और छोटे भाई-बहनों को।उसका यह मानना था कि अनुशासन में रखने से पहले स्वयं अनुशासित रहना होगा उसे। अपने सारे शौक मार कर भाई-बहनों को जीवन का … Read more

हैप्पी होली जीजी – शुभ्रा बैनर्जी : Moral stories in hindi

सावन में भाई के ना आने से मुंह फुलाकर बैठी थी सुमन।ससुराल में बहू की इज्जत तभी होती है,जब मायके में उसकी पूछ परख हो।कितने चाव से भाई -भाभी के लिए कपड़े खरीदकर लाई थी। सास-ससुर के बगल वाले कमरे की सफाई भी कर रखी थी,उनके ठहरने के लिए।मां के जाने के बाद पहली बार … Read more

थोपे हुए सपने – शुभ्रा बैनर्जी : Moral stories in hindi

बारहवीं की परीक्षा समाप्त हो चुकी है। उफ्फ़ आजकल की बोर्ड परीक्षा और परीक्षा देने वाले बच्चे।ये बोर्ड परीक्षा ना हुई, कर्फ्यू लग गया हो।जोर से हंसना मना,बोलना मना,सीरियल बंद,घूमना बंद।हमने भी कभी दी थी बोर्ड की परीक्षा,तब ये ताम झाम बिल्कुल नहीं थे। स्कूल से आते ही घर के कामों में अपनी मां का … Read more

ज़िंदगी का तराजू – शुभ्रा बैनर्जी  : Moral stories in hindi

मालती आज जैसे ही बाजार जाने के लिए निकलने लगी,सासू मां ने बताया इन्सुलिन ,प्रेशर की दवाई,ख़त्म हो गई है।और हां हाजमोला भी लेना है।सुबह अखबार पढ़ते समय बोलीं थीं”अब दूसरी आंख से भी बहुत कम दिखता है बहू।” सड़क पर चलती हुई मालती सोचने लगी।परिवार की पूरी जिम्मेदारी उसके ऊपर डालकर क्यों चले गए … Read more

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