लोगों का तो काम है कहना- शनाया अहम् Moral Stories in Hindi

अरे देखो तो कैसे रंग की साड़ी पहन रखी है, अभी पति को गए दिन ही कितने हुए हैं ,,,

अरी ! बहन,दिन चाहे कितने भी हो जाये , विधवा तो सारी उम्र विधवा ही रहती है। 

शर्म हया सब बेच खाई है , लगता है 

ये शब्द साक्षी के कानों में गरम सीसे की तरह पिघल कर गिर रहे थे, जो उसके आस पड़ोस की कुछ दकियानूसी महिलाओं द्वारा साक्षी के लिए बोले जा रहे थे। 

साक्षी को याद आ रहा था कि कल तक यही सब साक्षी की साड़ियों , उसके मेकअप आदि की तारीफें करती नहीं थकती थी , और आज एक प्लेन साड़ी को पहनने को लेकर कितनी बातें उसे सुनाई जा रही है , सिर्फ इसलिए कि ये साड़ी रंगीन है और आज साक्षी विधवा। 

   साक्षी के जीवन में अचानक से तूफ़ान आ गया था जो उसका सब कुछ उजाड़ गया था ,

ये अचानक से क्या हो गया , कल तक साक्षी के जीवन में बहार ही बहार थी।  एक अच्छा समझदार और प्यार करने वाला पति, एक बसा बसाया सुन्दर सा घर।  दो प्यारे प्यारे बच्चे।  कितना खुशगवार माहौल था साक्षी के घर का। .सब कुछ उसके मन चाहा।  

लेकिन एक दिन ऑफिस से आते वक़्त अचानक उसके पति नीलेश का एक्सीडेंट हो गया और हॉस्पिटल पहुंचने तक नीलेश ने दम तोड़ दिया , एक ही झटके में साक्षी की बसी बसाई दुनिया उजड़ गई , साक्षी तो मानों पत्थर का बुत ही बन गई , न उसे अपना पता था न ही बच्चों का ,,,अपने बेटे के सदमे को लेकर गाँव से आये साक्षी के सास ससुर ने उसे संभाला, उसे सच से अवगत कराया।  

साक्षी सास की गोद में सर रखकर फूट फूट कर रो दी तो साक्षी की सास ने उसे दिलासा देते हुए कहा कि “बेटा अब इस सच के साथ ही हमें जीना होगा कि अब नीलेश हमारे बीच नहीं रहा , अब तुझे ही बच्चों की माँ और पिता दोनों की भूमिका निभानी होगी , बच्चो की खातिर तुझे जीना होगा , हंसना होगा , बोलना होगा “

साक्षी भी बच्चों की खातिर जीने के लिए अपने दिल पर पत्थर रखने को तैयार तो हो गई लेकिन अकेले में छुप छुप के घण्टों तक नीलेश की तस्वीर को देखते रहती और रोते रहती। इसी तरह लगभग 2 महीने गुज़र गए।  साक्षी के सास ससुर का भी अब गांव जाने का वक्त हो गया था ,क्योंकि गांव के घर और खेती को देखने वाला वहां कोई नहीं था हालाँकि वो साक्षी को हमेशा के लिए अपने साथ गांव ले जाना चाहते थे लेकिन गाँव में बच्चों के लिए अच्छा स्कूल और बाकि सुविधाएं न होने के कारन ये भी न हो सका ,

भरे मन से सास ससुर ने साक्षी से विदा ली और चले गए ,  साक्षी के मायके वाले भी अब कभी कभार ही आ पाते थे क्योंकि वो भी दूसरे शहर रहते थे , सास ससुर के चले जाने के बाद साक्षी एक बार फिर से अकेलेपन का शिकार होने लगी, उसने खाना पीना छोड़ दिया और तनाव में रहने लगी।  

एक दिन सुबह सुबह बच्चों को स्कूल भेजते वक़्त उसे चक्कर आ गए और वो बेहोश हो गई , बच्चों ने आनन् फानन में दादा दादी को फ़ोन कर रोते रोते  घर आने को कहा। 

साक्षी के सास ससुर और साक्षी की माता पिता भी ये खबर सुनकर भागे भागे साक्षी के पास आये तो उन्होंने देखा कि साक्षी बिल्कुल कमज़ोर हो गई है , डॉ से बात करने पर डॉ ने कहा कि साक्षी डिप्रेशन में है , इस का इलाज उसका अकेलापन दूर करके किया जा सकता है। 

साक्षी के सास ससुर ने अपना बेटा तो खो ही दिया था अब वो अपनी बहु को नहीं खोना चाहते थे इसलिए उन्होंने साक्षी की दूसरी शादी करने का निर्णय लिया, इस में साक्षी के माता पिता ने भी सहर्ष अपनी सहमति दे दी , उन लोगों ने अपने ही एक दोस्त के बेटे से साक्षी की शादी की बात चलाई , उस लड़के की भी बीवी इस संसार से जा चुकी थी और उसके पास भी एक दो साल का बच्चा था जिसे माँ की ज़रूरत थी और वो लोग शादी के लिए तैयार तो हो गए लेकिन उन लोगों की शर्त थी कि साक्षी को अपने बच्चे अपने साथ न लाकर वही छोड़ने होंगे , क्योंकि उनके बच्चे के लिए साक्षी को सारा समय देना होगा जो साक्षी के खुद के बच्चों के साथ मुमकिन नहीं हो पायेगा. 

साक्षी के कानों तक जब ये बात पहुंची तो उसने अपने माता पिता और सास ससुर से इस शादी के लिए ना कर दिया और फूट फूट कर रोने लगी।  सभी ने साक्षी को बहुत समझाया कि अकेले जीवन नहीं कटता तो इस पर साक्षी ने कहा कि मैं अकेली नहीं हूँ , मेरे दोनों बच्चे, मेरे नीलेश की निशानियां मेरे पास हैं, मेरे साथ हैं और ये कौन सा सही फैसला हुआ कि किसी से शादी सिर्फ इसलिए कर लूँ कि वहां जाकर मुझे एक बच्चे को पालना है और ये कहाँ का न्याय हुआ कि अपने बच्चों को छोड़कर मैं किसी और की परवरिश करूँ , जो इंसान मेरे बच्चों को नहीं अपना सकता , उसे मैं कैसे और क्यों अपना लूँ।  जब एक पिता अपने बच्चे के लिए इतना सोच रहा है कि उसके बच्चे को माँ मिले और उसके बच्चे का प्यार न बंटे तो मैं तो फिर भी एक माँ हूँ और एक मां होने के नाते मैं कैसे अपने बच्चों से उनकी माँ का प्यार और वक़्त छीन लूँ।  

साक्षी की बातों में कड़वाहट के साथ साथ सच भी था और सभी ने इस सच को स्वीकार किया।  साक्षी एक बार फिर बोली कि मैं मानती हूँ कि नलेषण के गम में मैंने अपना और अपने बच्चों का ख्याल नहीं रखा , हर वक़्त रोती रही , नीलेश के ग़म में बच्चों के साथ हंसना खेलना भूल गई और ये भी भूल गई कि बच्चो पर क्या गुज़र रही होगी , लेकिन आज मेरे बीमार होने के वक़्त मैंने अपने बच्चों की आँखों में मुझे खोने का डर देखा है और अब मैं अपने बच्चों को इस डर के साये में नहीं जीने दूंगी। 

अगर आप लोग मुझे इजाज़त दे तो मैं नौकरी करना चाहती हूँ , जिससे मेरा अकेलापन दूर होगा और मैं सामान्य हो जाउंगी।  मैंने b.ed. किया हुआ है तो किसी अच्छे स्कूल में मुझे नौकरी भी मिल जाएगी।  साक्षी के सास ससुर को साक्षी की बात सही लगी और उन्होंने साक्षी को नौकरी करने की इजाज़त ख़ुशी से दे दी। 

थोड़ा सही होने के बाद साक्षी ने कुछ स्कूलों में इंटरव्यू दिया और सोने पर सुहागा ये रहा कि उसे उसके बच्चों के स्कूल में ही नौकरी मिल गई।  एक तरफ जहाँ साक्षी को इस बात की ख़ुशी थी कि अब बच्चे सारा दिन उसकी नज़रों के सामने रहेंगे वही दूसरी तरफ स्कूल वालों की एक शर्त ने उसे परेशान किया हुआ था।  सिलेक्शन के बाद जब साक्षी घर आई तो सास ने पूछा कि ‘नौकरी मिलने के बाद भी साक्षी खुश क्यों नहीं हो’ अगर नौकरी यहाँ नहीं करनी तो कही और इंटरव्यू दे दो । 

इस पर साक्षी ने अपनी सास से कहा कि ‘ नहीं मां।  ये तो बहुत ही ख़ुशी की बात है कि मेरे बच्चो के स्कूल में ही मुझे नौकरी मिल गई है , बच्चे मेरी नज़रों के सामने ही रहेंगे लेकिन स्कूल वालों ने एक शर्त रख दी है ,उसे मैं पूरा नहीं कर सकती। 

सास ने साक्षी से पूछा कि ‘ऐसी क्या शर्त है बेटी जिसे तुम पूरा करने में असमर्थ हो ‘। 

तब साक्षी ने बताया कि स्कूल वालों की शर्त है कि स्कूल में सभी टीचर के लिए ड्रेस कोड है , सभी टीचर को सोमवार से शुक्रवार कलरफुल साड़ी और शनिवार को कोट पैंट पहनना होता है , पर मैं ये सब कैसे पहन सकती हूँ, मैं तो विधवा हूँ और अब मेरे जीवन में रंगो की कोई जगह नहीं है।  मैंने कुछ और स्कूलों में भी पता किया लेकिन हर जगह कोई न कोई ड्रेस कोड लागु होता ही है। 

इस पर साक्षी के सास ने कहा तो इसमें क्या हुआ , तुम ड्रेस कोड पहन कर ही स्कूल जाओ ,इसमें कोई बुराई नहीं है। 

लेकिन माँ समाज क्या कहेगा।  हमें इसी समाज में रहना है , सब बातें बनाएंगे , मेरा निकलना मुश्किल हो जायेगा, साक्षी बोली। 

तब साक्षी के ससुर ने साक्षी का पक्ष लेते हुए कहा कि बेटा *सबसे बड़ा रोग , क्या कहेंगे लोग*। 

और अंत में लोग सिर्फ *राम नाम सत्य* ही कहते हैं , इससे ज़्यादा कुछ नहीं।  अब तुम मुझे बताओ तुम्हें अपने बच्चों को पालना है या ये रोग पालना है कि क्या कहेंगे लोग ?

ससुर की बात साक्षी की समझ में आ गई , और उसने कहा मैं अपने बच्चों को पलना चाहती हूँ पिता जी।  

शाबाश।  साक्षी के सास ससुर एक साथ बोल पड़े। 

अगले दिन साक्षी ने स्कूल के मुताबिक साड़ी पहनी और सास ससुर के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लेकर घर से बाहर निकल कर अपनी स्कूटी स्टार्ट करने लगी, तभी मोहल्ले की कुछ औरतें साक्षी को कलरफुल साड़ी में देखकर आपस में कानाफूसी करने लगी, साक्षी ने ये सब नोटिस किया तो एक बार उसके क़दम रुक गए , वो मुड़ कर घर के अंदर जाने लगी तो देखा उसके सास ससुर उसके पीछे ही खड़े हैं और उन्होंने सबके सामने साक्षी को ढेरों आशीर्वाद देते हुए कहा कि तू हमारी बहु नहीं हमारी बेटी है, और कोई क्या बातें बनाता है उसकी परवाह मत करना , क्योंकि समाज ने औरत को हमेशा ही अग्नि परीक्षाओं में डाला है लेकिन औरत का साथ कभी नहीं दिया , इसी समाज ने सीता माँ तक की परीक्षा करवाई थी तो हम लोग उनके सामने क्या हैं , साक्षी तुम्हें सिर्फ बढ़ते जाना है, अपनी पहचान बनानी है अपने बच्चों को पालना है। 

ये समाज नहीं आएगा तुम्हारे साथ खड़े होने के लिए, तुम्हारे बच्चों का साथ देने के लिए , तुम्हें अपनी और बच्चों की ज़िम्मेदारियाँ खुद ही निभानी है 

ये समाज सिर्फ नकारात्मक बातें बनाना जानता है लेकिन तुम्हें सकारात्मक रहते हुए आगे बढ़ते जाना है। 

 साक्षी की सास ने कहा कि आज साक्षी चाहती तो दूसरी शादी करके भी रंग बिरंगे कपडे पहन सकती थी , लेकिन उसने अपने बच्चो और हमें चुना , अपनी खुशियों को नहीं। 

इस पर साक्षी के ससुर बोले कि ‘साक्षी जैसे तुम अपने बच्चों के लिए मज़बूत रही , वैसे ही अब तुम्हें अपने लिए भी मज़बूत रहना है बेटी’ । 

साक्षी के सास ससुर की बातें सुनकर उन सभी औरतों को आत्म गलानि महसूस हुई और उन्होंने साक्षी और उसके सास ससुर से माफ़ी मांगते हुए साक्षी को नौकरी के लिए ढेरों शुभकामनाएं दी। 

  आज साक्षी को समझ आया कि उसके ससुर सही ही कहते हैं , कि सबसे बड़ा रोग , क्या कहेंगे लोग। *लोगों का तो काम ही है कहना*

। लोग कुछ नहीं कहते , सिर्फ परिस्तिथियों के मुताबिक अपनी सोच दर्शाते हैं और अगर इन्हीं लोगों को उसके सास ससुर जैसे समझने वाले लोग मिल जाये तो यही लोग सुधर जाते हैं। 

साक्षी ने एक बार फिर अपने माता पिता समान सास ससुर के पैर छूकर उनसे आशीर्वाद लिया और अपनी स्कूटी स्टार्ट कर बढ़ गई एक नई ज़िन्दगी की शुरुआत के सफर पर। …

शनाया अहम् 

#लोगो का तो काम ही होता है बाते बनाना

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