इतने बरसों बाद अपने पौत्र को अपने सम्मुख खड़ा देखकर एकबार तो अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हुआ सुहासिनी जी को, जब उसने आगे बढ़कर चरणस्पर्श किये और पूछा-
“कैसी हो दादी?”
तो आशीर्वाद देने को उनके दोनों हाथ उठ गये और अविरल अश्रुधारा बह निकली उनके नेत्रों से परन्तु मुख से बोल नहीं फूट सके।
आदित्य ने उन्हें गले लगाते हुए उनके बहते हुए अश्रु पोंछते हुए कहा-
“रो मत दादी, अब से आपके रोने के दिन गये। मैं आपको लेने आया हूँ, घर चलिये।”
“घ.. घर, पर … जहाँ से बेइज्जती करके इतने साल पहले निकाल दी गयी वहाँ कैसे जा सकती हूँ? तेरे माँ बाप मुझे घर में घुसने कहाँ देंगे? वैसे भी अब तो आदत हो गयी है मुझे यहाँ की। अब यही मेरा घर है। हाँ तुझे देखने को आँखें तरसती थीं आज वो इच्छा भी पूरी हो गयी। कब आया विदेश से?”
“पिछले सप्ताह ही आया दादी आपसे मिलने फौरन नहीं आ सका क्योंकि कुछ इंतजाम करने थे, आप बस कुछ दिन उन लोगों के साथ वहाँ एडजस्ट कर लेना और फिर मैं तो हूँ न आपके साथ! कोई तकलीफ नहीं होने दूँगा और ज्यादा दिन आपको वहाँ रखूँगा भी नहीं। जब उन्होंने आपको वृद्धाश्रम में छोड़ा था उस वक्त बहुत छोटा था मैं, मेरे रोने चिल्लाने, मनाने किसी बात का भी उन लोगों पर कोई असर ही नहीं हुआ तब। तभी मैंने सोच लिया था कि जैसे आज ये लोग मेरी बात नहीं सुन रहे हैं वैसे ही जब मैं बड़ा हो जाऊँगा
तब इनकी एक नहीं सुनूँगा। फिर स्कूल खत्म हुआ तो उच्च शिक्षा के लिये विदेश चला गया। जाने से पहले आपसे मिलने आया था लेकिन उसके बाद बीच में कभी घर ही नहीं आया। पढ़ाई पूरी होने के बाद चार साल नौकरी भी की वहाँ और खूब पैसा कमाकर लौटा है आपका पोता। मम्मी पापा बीच में बहुत बुलाते थे, रोते भी थे पर दादी जो आपके साथ किया न उन दोनों ने उसे मैं कभी माफ ही नहीं कर पाया, यही वजह थी जो बीच में नहीं आया मैं।”
“और जो तेरी दादी तुझे मिले बिना मर जाती तो? मैं तो यही सोचती रहती थी कि तू भी मुझे भूल गया। जब अपना कोख जाया ही निकम्मा निकला तो तेरी किसी से क्या शिकायत करती!”
“दादी आप कहती हो न कि मूल से सूद प्यारा होता है तो बस समझ लो कि इस सूद को भी इसकी दादी माँ बाप से ज्यादा प्यारी थी लेकिन मेरी मजबूरी थी, मुझे खुद को इस काबिल बनाना था कि आपके दुख दूर कर सकूँ। यहाँ के मैनेजर से हमेशा आपके हालचाल पूछता रहता था और आपको कोई कमी न हो इसलिए पैसे भी भेजता था। लेकिन अब मैं आ गया हूँ और आपको अपने साथ घर ले जाऊँगा।”
“पर बेटा तेरे माँ बाप को ये बिल्कुल अच्छा नहीं लगेगा, और फिर अब तो मैं भी यहाँ खुश ही हूँ, मैं नहीं चाहती मेरी वजह से फिर से उस घर में कलह हो।”
“तो अपनी होनेवाली पौत्रवधू को आशीर्वाद देने नहीं चलेंगी आप?”
“क्या? तू शादी कर रहा है? तेरी शादी का तो सपना तेरे बचपन से देखती आ रही हूँ बेटा मैं। अब तो चलना ही पड़ेगा, मैं तैयारी करती हूँ तू मैनेजर से बात कर ले।”
“वो मैं पहले ही कर चुका हूँ दादी, चलो मैं पैकिंग में आपकी मदद करता हूँ।”
कुछ ही देर में सुहासिनी आदित्य के साथ अपने घर के सामने खड़ी थीं जो कभी उनके पति ने ही बनवाया था और था भी सुहासिनी के ही नाम लेकिन फिर भी उन्हें अपमानित करके जब उस घर से वृद्धाश्रम भेजा गया तो वे विरोध तक न कर सकीं। करती भी किसके दम पर? जब अपने ही खून ने दगा किया तो और किसपर भरोसा कर पाती वो दुखियारी माँ। गीली आँखों से भरपूर नजर उन्होंने घर पर डाली। आदित्य ने डोरबेल बजा दी थी। दरवाजा उसकी माँ ने खोला। सुहासिनी को आदित्य के साथ वहाँ खड़ा देखकर उन्हें जैसे करंट लगा लेकिन अब आदित्य बड़ा हो गया था और उसके सामने वह अपना आपा खोना नहीं चाहती थीं। खुद को संयत करके जैसे तैसे बोलीं-
“आप यहाँ, अचानक?”
उत्तर आदित्य ने दिया-
“मैं लाया हूँ इन्हें, अपने पोते के विवाह में शरीक होने आयी हैं। अबसे विवाह तक यहीं रहेंगी हमारे साथ अपने घर में। वैसे भी मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि ये घर इन्हीं के नाम है तो आप लोग जरा अपने आचरण का ख्याल रखिएगा क्योंकि अब ये अकेली नहीं हैं, कहीं आपकी कोई गलती आपलोगों पर ही भारी न पड़ जाये।”
आदित्य की माँ खामोश रहीं लेकिन मन ही मन उन्होंने चैन की साँस ली थी। विवाह में बीस दिन शेष थे। आदित्य ने कहा कि विवाह तक यहाँ रहेंगी मतलब ज्यादा से ज्यादा महीनाभर झेलना पड़ेगा बुढ़िया को। वैसे इनका यहाँ आना एक तरह से अच्छा ही रहा, मेहमान जुड़ेंगे तो तरह तरह की बातें बनाने का मौका उन लोगों को अब नहीं मिलेगा और फिर बहू के मायके वाले भी तो आदित्य की दादी को पूछ रहे थे, आदित्य ने सुप्रभा को बता जो रखा है कि उसकी दादी भी हैं।
सुप्रभा आदित्य की ही पसंद थी और विदेश में दोनों एक साथ ही काम करते थे। पढ़ीलिखी खूबसूरत सुप्रभा को आदित्य के माता पिता ने फोटो देखते ही पसंद कर लिया था। उनके लिए यही बहुत था कि आदित्य ने किसी विदेशी लड़की को अपने लिये नहीं चुना था। सबसे अच्छी बात ये थी कि दोनों अब विदेश वाली पुरानी नौकरी छोड़कर यहीं दिल्ली में बसने का फैसला कर चुके थे। आदित्य के माता पिता के बुढ़ापे की ओर बढ़ रहे कमजोर होते कदम इस फैसले को सुनकर अचानक नयी स्फूर्ति अनुभव करने लगे थे।
बुढ़ापे में बेटा बहू साथ रहें इससे ज्यादा सौभाग्य की बात उनके लिए और क्या हो सकती थी। कल को पोते पोती भी होंगे। बुढ़ापा एकाकी और बोझिल न होकर परिवार के बीच खूबसूरती से कटेगा। इन सुखद कल्पनाओं के बीच उन्हें कभी अपनी करनी याद तक नहीं आती थी।
विवाह की तारीख भी आ गयी। दो दिन पूर्व ही सब लोग होटल में शिफ्ट हो गये थे। धूमधाम से विवाह सम्पन्न हुआ। जब विदाई की बेला आयी तो आदित्य की माँ बहू के स्वागत की तैयारी करने के लिये पहले से घर पहुँचने के लिये वहाँ से जाने को उद्यत हुयीं लेकिन आदित्य ने ये कहकर रोक दिया कि उसने दादी को पहले ही घर भिजवा दिया है और उनकी सहायता के लिये भी कुछ लोगों को भेज दिया है।
आदित्य का हर बात में दादी को इतनी अहमियत देना माँ को बिल्कुल पसंद नहीं आ रहा था परंतु सबके बीच वे कोई तमाशा खड़ा नहीं करना चाहती थीं इसलिये खामोश रहीं लेकिन अब वे मन ही मन दृढ़ निश्चय कर चुकी थीं कि मेहमानों के जाने के बाद वह आदित्य की एक नहीं सुनेंगी और दादी को वापस भेजकर ही दम लेंगी।
विदाई में आदित्य और बहू के साथ ही मम्मी पापा भी उसी की कार में बैठे। कार घर की ओर रवाना हुई लेकिन अचानक एक मोड़ पर जब ड्राइवर ने रास्ता बदल लिया तो पापा बोल उठे
“अरे अरे गलत रास्ते पर हैं हम, पीछे से बायीं तरफ मुड़ना था भाई।”
जवाब आदित्य ने दिया-
“मैप लगा रखा है पापा, आप फिक्र मत करो, सही जगह पहुँच जायेंगे।”
“अरे जब मुझे रास्ता याद है तो मैप की जरूरत ही क्या थी? तुम आजकल के बच्चे भी टैक्नोलॉजी पर हद से ज्यादा निर्भर हो गये हो। अब बेकार कितना लम्बा घूमना पड़ेगा।”
“रिलैक्स पापा, वैसे भी आप लोग कितना थक गये होगे आँखें बंद करके आराम करो कुछ देर।”
आदित्य ने हँसकर कहा तो पापा ने खीजकर सचमुच आँखें बंद करके सिर सीट पर टिका लिया। मम्मी तो पहले से ही आँखें बंद किये बैठी थीं। लगभग पंद्रह मिनट बाद जब कार रुकी तो मम्मी पापा ने आँखें खोलकर एकसाथ बाहर देखा। फूलों से सजी शानदार कोठी देखकर वो दोनों अचंभित थे।
“आदित्य ये कहाँ आ गये हम? तूने पहले बताया नहीं कि हम घर से पहले कहीं और जायेंगे।”
माँ ने आश्चर्य से कहा।
“घर ही है माँ, नेमप्लेट पढ़ो तो।”
कोठी पर गेट के दाहिनी ओर संगमरमर पर खूबसूरती से कोठी के मालिक का नाम लिखा था
‘सुहासिनी निवास’
“ये सब क्या है आदित्य? ये किसका घर है?”
इस बार पापा ने पूछा।
“आपने नाम ठीक से पढ़ा है पापा, ये दादी का ही घर है। जो कुछ आप लोगों ने उनसे छीना था बस वही सूद समेत लौटाया है मैंने उन्हें। घर तो वो भी उन्हीं के नाम था जहाँ आपने नेमप्लेट बदलकर अपना और मम्मी का नाम लिखवाया था। वो देखिये बाँयी तरफ, एक नेमप्लेट अब भी है यहाँ जिसपर मेरा और सुप्रभा का नाम लिखा है। लेकिन पत्थर पर खुदा दादी का नाम अब कोई मिटाने की हिम्मत नहीं कर सकता।”
“और हम लोग? हमारा क्या? तू हमारे साथ ऐसा कैसे कर सकता है?”
पापा ने डूबती आवाज में पूछा।
“वैसे ही जैसे आपने दादी के साथ किया था। आपके पास तो फिर भी दादी का घर है, आराम से वहाँ रहते रहिये। दादी ने आपसे वह घर तब भी खाली नहीं करवाया जब आपने उनसे छत छीन ली तो अब भी नहीं करवायेंगी क्योंकि अब तो उनके पास सुदृढ़ छत और सहारा दोनों ही हैं। बहुत बड़ा दिल है दादी का। अब थोड़ा रस्मों पर भी ध्यान दे लें? वो देखिये दादी सुप्रभा की आरती उतार रही हैं, मुझे भी उसके साथ ही तो गृहप्रवेश करना है न! चाहें तो आप लोग भी चल सकते हैं भीतर, शाम को अपने घर चले जाइयेगा।”
उधर दादी के दोनों हाथ आदित्य और सुप्रभा को आशीर्वाद देने को उठे हुये थे और उनके मुख से आशीर्वचनों की लगातार झड़ी लगी थी। इधर मम्मी पापा दोनों चक्कर खाकर गिरने को तैयार अवाक् खड़े थे। आज आदित्य ने वे सारे दर्द सूद समेत लौटा दिये थे जो कभी उन दोनों ने अपनी माँ को दिये थे।
#आशीर्वाद
अर्चना सक्सेना
Archna G… Lovely mam…. So kind of you….
Absolutely