आया नहीं मां ही रहो – शुभ्रा बैनर्जी Moral Stories in Hindi

नैना आज बहुत खुश थी।साल भर बाद छोटी ननद आ रही थी,अपनी बेटी के साथ।शादी होकर आते ही अविवाहित छोटी ननद, नैना की सहेली बन गई थी।नैना की शादी के तीन साल बाद शादी हुई थी उसकी।हुई क्या थी,नैना ने ही करवाई थी। रिटायर्ड ससुर जी की जमा पूंजी प्रायः समाप्ति की कगार पर थी,जब उन्होंने नैना से कहा”बहू,अब मैं और तुम्हारी सास बूढ़े हो गए हैं।अब हमसे दौड़ा नहीं जाता। अर्पिता (छोटी ननद)की शादी की जिम्मेदारी मैं तुम्हें सौंपना चाहता हूं।”सासू मां ने भी आत्मसमर्पण करते हुए कहा था”बेटे की शादी में इतना खर्च हो गया,

हमने सोचा ही नहीं था।बड़ी बेटी और बेटे की शादी से तो हम निश्चिंत हो गये।अब छोटी की शादी तुम और सुमित (बेटे )को ही देखनी पड़ेगी।”नैना निश्छल थी,प्रेम से बड़ा और कुछ भी नहीं था उसके लिए। खुशी-खुशी छोटी ननद की शादी करवाने का वादा कर के इतना खुश हुई थी,मानो वसीयत में पूरी जायदाद मिली हो।मां ने समझाया भी था”अभी तेरी ख़ुद की उम्र कम है,तू क्या जानेगी खर्च कितना होता है?सारी जिम्मेदारी अपने सर लेना सही नहीं।तुझसे जितना बन पड़े करना,पर सब कुछ करने का वादा मत कर।”मां को यही समझाया था नैना ने”जिस ननद ने मुझसे हमेशा अपनी सगी बहन सा स्नेह रखा,

उसके प्रति पराए पन कैसे रखूं मैं?मैं सब ठीक कर लूंगी।”सब कुछ ठीक करके दिखाया भी था नैना ने।लड़का देखने जाने से ननद की विदाई का पूरा जिम्मा हंसकर पूरा किया था नैना ने।यहां तक कि सुमित ने भी समझाया था”थोड़ा और समय ले लो।इतनी जल्दी शादी कैसे हो पाएगी?”नैना में इतना आत्मविश्वास पता नहीं कहां से आ गया कि ,तय समय पर ही अर्पिता की शादी करवाई थी उसने।

अपने मन की हर बात छोटी से कहती आई थी नैना,अब समय बदल चुका था।जब भी आती,ननदोई जी साथ ही आते।बैठकर बतियाने का मौका ही नहीं मिला था।मायके में सभी के काम करती थी छोटी।ससुराल में जाकर भी सबकी चहेती बन गई।एक साल बाद बेटी हो गई उसकी,फिर दो साल बाद बेटा।उसकी जिम्मेदारी भी बढ़ती रही,और मायके में रुकना भी कम होता गया। देखते-देखते पचास पार हो गए दोनों के।ननद-भाभी की दोस्ती कभी कम नहीं हुई।नैना और उसके बच्चे अब नौकरी कर रहे थे।बीच में तीन चार साल नहीं आ पाई,फिर बीमार भाई को देखने आई।

भाई की मौत पर भी सबसे पहले पहुंचने वाली छोटी ही थी।छोटी की बेटी आई थी साथ में।नैना छोटी से लिपटकर जी भर कर रोई थी।छोटी आज भी भाग-भाग कर काम करती थी।रात को देखा नैना ने कि वह बेटी को रोटी का कौर खिला रही है।रहा ना गया नैना से,बोल ही दिया”बच्चे अब बड़े हो गएं हैं।उन्हें अपना काम अब तो अपने से करने दो।सुबह से उठकर जी-हुजूरी में लग जाती हो।पहले पति की तीमारदारी की,अब बच्चों की।तुम मां हो,आया नहीं हो।”जवाब कभी देती ही नहीं थी वह।यही खासियत थी उसकी।बस हंसकर रह गई थी।

आज सुबह ही फोन पर बताया उसने”भाभी, रिजर्वेशन हो गया है।हम आ रहें हैं।बेटी आ रही है साथ में।बेटा और उसके पापा नहीं आ पाएंगे।”खुश होकर मैनू डिसाइड कर लिया था नैना ने। कहां-कहां घूमने जाना है,लिस्ट भी बना डाली।छोटी की ख़ुद की मां भी शायद नैना जैसी चहक नहीं रही थीं।नैना के बच्चे भी चिढ़ाने लगे”हम्मम,मम्मी की फेवरिट आ रहीं‌ हैं।ये जोड़ी हमेशा सुपर हिट रहेगी।

बेटा स्टेशन गया था अपनी बुआ और बहन को लाने।नैना ने खाना फिर से चैक किया।सही समय पर आ गई छोटी।उसे देखते ही नैना का माथा ठनका,अरे!!!इतनी कमजोर कैसे दिख रही है? शुगर की वजह से तो नहीं?”

खाने के बाद जब-जब सोचा अब मन भरके गप्प करेंगे,छोटी की बेटी मां-मां चिल्लाने लगती।सुबह होते ही कभी बेटी के कपड़े प्रैस कर रही थी छोटी,कभी ब्लैक कॉफी बनाकर दे रही थी।यहां तक कि फिल्टर से पानी निकालकर दे रही थी गिलास में।बेटी सोफे पर पड़ी हुई बस मोबाइल चलाती रही,और मां उसका हुकुम बजा रही थी।रात में रहस्योद्घाटन हुआ कि दो दिन के बाद ही वापसी का टिकट है।बेटी अपनी मां को इसी शर्त पर लाई थी कि तीन दिनों के लिए ही जाना है।

छोटी यहां भी बेटी का हर छोटा-बड़ा काम कर ही रही थी।बेटी बस आर्डर करती,छोटी तुरंत उसका आर्डर पूरा करती।नैना को‌ यह सब‌‌ अजीब लगता।अब हमारी भी उम्र बढ़ रही है।मायके आकर कैसा सुख?यहां भी खट ही रही है।छोटी को समझाना बहुत जरूरी था।सासू मां ने भी यही कहा नैना से”तुम ही समझाओ इसे,एक मिनट पास बैठने की फुर्सत ही नहीं।

“नैना ने सोचा ,जब छोटी की बेटी नहाने जाएगी तब समझाएगी।अवसर मिलते ही नैना ने कहा छोटी से”सारा दिन क्यों गुलामी करती रहती हो तुम बच्चों की।बेटी को कोई काम तो अपने से कर लेने  दिया करो।थोड़ा आराम भी जरूरी है।”,छोटी ने निश्चल‌ हंसी के साथ कहा”भाभी,यही मुझे मां से और तुमसे मिलवाने लेकर आई है।

ऑफिस से छुट्टी नहीं मिली ,तो वर्क फ्राम होम ले लिया है।मेरी पसंद और नापसंद का बहुत ख्याल रखतें हैं सभी। दो-चार दिन  इसी की वजह से रह लेती।पर अब नहीं रह पाऊंगी ज्यादा दिनों के लिए।”नैना समझ गई थी कि छोटी के आने -जाने का कार्यक्रम बेटी के सौजन्य से ही हुआ था।कहां नैना यह सोचकर खुश हो रही थी कि छोटी की बेटी ननिहाल घूमने आ रही है।कम से कम चार -पांच दिन तो रहेगी।यहां तो आने से पहले जाने का कार्यक्रम भी तय कर रखा था बच्चों ने।

छोटी के चेहरे में झुर्रियां दिख रहीं थीं।शरीर थका सा लग रहा था।अकेली सुबह छह बजे से रात बारह बजे तक सबकी गुलामी करती है घर पर।बाई लगी हुई है,झाड़ू -पोंछे के लिए।बाकी सारा काम वह ही करती है।शरीर फिट रहेगा ,ऐसा उसकी बेटी कहती हैं।मामा के घर आकर भी अपना काम करवाने के लिए एक अटेंडर रखा हुआ था उसने।

नैना के बेटे ने बातों-बातों में कहा”बुआ ,बुबलू को क्यों नहीं‌ लाई?इस झगड़ालू को रखकर आना था।”बुआ आदतन मुस्कुरा दी,नैना को उस हंसी के पीछे की थकन दिख रही थी।बेटे से कहा ही दिया”तेरी बुआ नहीं लेकर आई बहन को,बहन लाई है अपनी मां को उसकी नानी से मिलवाने।”नैना का बेटा कुछ समझा नहीं,पूछा”क्या अंतर है इन दोनों बातों में?”

नैना ने छोटी और उसकी बेटी को सुनाते हुए कहा “बहुत अंतर है।जब मां-बाप बच्चों को कहीं लेकर जातें‌ हैं,तो बच्चे फरमादार होते हैं माता-पिता के।जब बच्चे लेकर आते हैं अपने साथ,तो उनके मन का करना पड़ता है।हमेशा आगे-पीछे लगे रहना पड़ता है कि कुछ ग़लत न हो जाए। माता-पिता जब बूढ़े होने लगते हैं,तो बच्चों के सामने बेबस से क्यों हो जातें हैं?

क्यों अहसान मानने लगे मां ही अपने बच्चों का।अब तक तो मां-बाप ने बच्चों के मन का किया।अब बच्चे अगर मां-बाप के मन का कर रहें हैं तो,बदले में बिछे रहना पड़ेगा क्या?”बोलते-बोलते नैना की आवाज भर्रा गई।ऐसा वह केवल अपनी ननद की बेटी को ही नहीं,अपने बच्चों को भी बता रही थी। बुढ़ापे की लाचारी क्यों छलकनी चाहिए मां-बाप की आंखों से,चेहरे से?यह बुढ़ापा तो आईना है सभी के आने वाले कल का।

छोटी ने नैना को बांहों में भर लिया और बोलीं”थैंक यू भाभी,मेरे मन के मौन को अपने शब्दों में ढालने के लिए।तुमने ठीक ही कहा था,मैं समय से पहले बूढ़ी दिखने लगी।शायद जानबूझकर खुद को बेसहारा और बच्चों के ऊपर निर्भर रहना हम जरूरी समझ लेतें हैं।आज भी पेंशन तो मिल रही है पति की,वो ध्यान भी रखतें हैं।मैं ही सब को खुश करने के चक्कर में अपनी खुशी ही भूल गई थी।मेरी ख़ुद की पसंद -नापसंद का मैंने कभी ध्यान ही नहीं रखा।तुमने मुझे समय से पहले सजग कर दिया।आता है बुढ़ापा तो आए,अपने हिसाब से हैंडल करेंगे इसे।लाचार या बिचारी बनकर नहीं।”

छोटी की बातें सुनकर उसकी बेटी भी शर्मिंदा हुई।नैना के बेटे को अपनी मां का यह रूप देखकर अचंभा हुआ।तिरछी निगाहों से देखा तो नैना ने कहा”मैंने कोई शिकायत नहीं की तुम लोगों की।बस तुम बच्चों को यह बताना जरूरी था कि,हम स्वाभाविक रूप से अपना बुढ़ापा जीना चाहते हैं,तुम लोगों की अनावश्यक देखभाल और हस्तक्षेप के बगैर।हां।।”

अपने कमरे से निकलकर कब हमारी सबसे बुजुर्ग महिला(सासू मां)निकल कर आ गई थीं,पता ही नहीं‌ चला।नैना की पीठ ठोंककर पोपली जुबान से बोलीं”शाबास!!!!!”

शुभ्रा बैनर्जी 

#बुढ़ापा

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