जीवन का सवेरा (भाग -9 ) – आरती झा आद्या : Moral stories in hindi

बच्चे उछलते कूदते योगिता और राधा के साथ हवेली के अंदर चले गए। सारी लड़कियाँ पहले ही अंदर जाकर फ्रेश हो रसोई की ओर रुख कर चुकी थी। 

आरुणि अपने ड्राइवर अंकल की ओर मुखातिब होते हुए बोलती है.. “आप लोग भी डिनर करके ही जाइए और रोहित को गाड़ी से ही उसके होटल पहुँचा कर गाड़ी अपने यहाँ ही पार्क कर लीजियेगा। सुबह ले आइएगा गाड़ी।” 

“आओ अंदर चलते हैं रोहित।” आरुणि मेजबान की तरह रोहित से कहती है।

“बहुत बड़ी है तुम्हारी हवेली.. बहुत खूबसूरत भी।” 

हवेली के अंदर आते हुए दरवाजे पर हाथ लगाते हुए रोहित कहता है। दरवाजे पर बने उभरे हुए फूल की कलाकृति उसे बहुत खूबसूरत बना रहे थे। 

“ये किस का आईडिया था… बिल्कुल अलग सा लग रहा है।” रोहित मुग्ध होकर देखता हुआ कहता है।

“हवेली में जो भी काम हुआ है… जितनी साज सज्जा हुई.. सब मम्मी ने का आइडिया था।” हवेली के बीचोंबीच बने आँगन में आती हुई आरुणि उत्तर देती है। 

“पता है.. इसे देखते ही मेरे मन में सबसे पहला विचार क्या आया”.. रोहित अपनी ही धुन में बोलता है । 

“क्या?” आरुणि सवालिया नजर रोहित की ओर घुमाती है।

“यही की शानदार होटल बनाया जा सकता है”… रोहित आँगन में खड़ा गोल गोल घुमता हुआ कहता है। 

“रोहित”, बोलती हुई आरुणि आँखें तरेरती है। 

“अरे अरे यह तो बस विचार ही है। यहाँ आने से पहले डैड के द्वारा जो पहला प्रोजेक्ट मुझे मिला.. वो होटल का ही था। इसीलिए शायद यही ख्याल आया”.. रोहित हँसता हुआ कहता है। 

“टन.. टना..चाय तैयार है। तुम दोनों भी जल्दी से आ जाओ।” योगिता रसोई से निकल क़र जोर से कहती है। 

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पूर्णमासी के दिन चाँद आसमान में उच्च उठान के साथ पूर्णतः चमक रहा था। चाँद का चेहरा आसमान में सजीव सा था, जैसे कि वह अपने सौंदर्य की घोषणा कर रहा हो। उसकी किरणें भूमि पर विचरण कर रही थीं, जो उसे एक निर्मल, आकर्षक और शांतिपूर्ण रूप देती थीं। चाँद की चमक ने रात को रोशनी से भर दिया था, जिससे आसमान का दृश्य अत्यंत सुंदर और रोमांचक बन गया था। चाँदनी की किरणें भूमि पर अठखेली क़र रही थीं, जो उसकी सुंदरता को और भी विशेष बना रही थीं। चाँद के इस शानदार चमक में चाँदनी की खिली हुई रौशनी का लाभ उठाते हुए राधा लड़कियों की सहायता से आँगन में बैठने की व्यवस्था कर लेती है। उन्होंने चाँदनी के प्रकाश में आँगन को सजाया और उसमें सुखद और आनंदमय वातावरण सृजित क़र लिया, जहाँ वे सब मिलकर मनोरंजन कर सकती थीं।

“चाय और चिप्स.. मज़ा आ गया”.. रोहित खुश होता हुआ बोला।

“बच्चों को दे दिया”.. आरुणि राधा की ओर देखती हुई पूछती है।

“हाँ.. सब अपने कमरे में हैं, जो थोड़ा बहुत स्कूल का काम बचा है.. कर रहे हैं।” राधा बताती है।

चाय के बाद धीरे-धीरे सब अपने काम में लग गईं और खाने की तैयारी में व्यस्त हो गईं। आरुणि रोहित को हवेली दिखाने के लिए उत्सुक थी। उसकी उत्साहित आँखों में उमंग और खुशी की झलक थी, मानो वह रोहित को अपने संसार में आमंत्रित कर रही हो। आरुणि के आमंत्रण पर रोहित सबसे पहले बच्चों के कमरे की ओर चलने की बात करता है।

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बच्चे उसे देखते ही खुशी से शोर मचाने लगते हैं और रोहित से इसी कमरे में बैठने कहते हैं। आरुणि उन्हें मस्ती ना कर स्कूल का काम खत्म करने और कल के लिए किताबें दुरुस्त कर लेने बोलती है। बच्चे मुँह बना कर काम करने लगते हैं। 

जिसे देख रोहित हँसता हुआ कहता है.. “आज तो हमने बहुत मस्ती की है। अब काम भी जरूरी है ना। अपने दोस्तों संग मस्ती करने मैं फिर से आऊँगा।”

 

रोहित कमरे की दीवारों को देखता है…एक ओर के पूरे दीवार पर नीचे के कोने से शुरू करके दूसरी ओर के ऊपरी कोने तक इन्द्रधनुष बनाया गया था और उसी इन्द्रधनुष से निकलता हुआ लालिमा लिए हुए उदीयमान सूरज को दर्शाया गया था… उस सूरज की लालिमा को कमरे की तीनों दीवार पर छिटकता हुआ दिखाया गया था। छिटकती हुई लालिमा दीवारों पर ऐसी लग रही थी.. जैसे स्वर्ण की खान में स्वर्ण पिघल रहा हो। 

रोहित उस लालिमा को देखता हुआ खो गया था… “किसने बनाया ये”… रोहित दीवार की ओर देखता हुआ ही पूछता है। 

“माॅम ने”..आरुणि झट से कहती हैं, मानो आरुणि इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए तैयार ही बैठी थी। माॅम बहुत अच्छी चित्रकार थी रोहित। यहाँ लोगों को उनकी पेंटिंग्स बहुत पसंद थी। आरुणि उदासी के घुले मिले स्वर में कहती हैं।

“क्या कहा आरुणि तुमने.. थी”.. रोहित ने एकबारगी चौंक क़र पूछता है। 

आरुणि उसी स्वर के साथ बात आगे बढाती हैं, “हाँ रोहित.. एक साल पहले हुए एक रोड एक्सीडेंट में मम्मी पापा नहीं रहे।”

रोहित कुछ बोल नहीं पाता है.. बस आरुणि को देखता रह जाता है। 

“मैं भी किस तरह का दोस्त हूँ ना, अपनी समस्या में उलझा कभी ये जानने नहीं चाहा कि तुम्हारे जीवन में क्या चल रहा है!” रोहित बहुत अफसोस से कहता है। 

“रोहित,तुमने जानना तो चाहा था। उस समय मैंने ही बताना नहीं चाहा तुम्हें। इस पर फिर कभी बात करेंगे। चलो तुम्हें माॅम का वो कमरा दिखाती हूँ.. जहाँ वो पेंटिंग किया करती थी”…आरुणि कहती है।

“इतना सुन्दर रंगीन कमरा!” रोहित की आँखें फैल गईं थी। हर दीवार पर बहुत खूबसूरती से प्रकृति के रंगों को उकेरा गया था और उन रंगों के बीच से खिलखिलाती हुई बच्ची की तस्वीरें मनमोहक लग रही थी। 

इतना सुन्दर और रंगीन कमरा!” रोहित की आँखों को वह कमरा आकर्षित कर गया था। हर दीवार पर प्राकृतिक रंगों की खूबसूरती से भरी पेंटिंग की गई थी और उन रंगों के बीच खिलखिलाती छिपी हुई बच्ची की तस्वीरें उस दृश्य को मनमोहक बना रही थीं। प्राकृतिक रंगों की भरपूरता ने मानो उस कमरे को जीवंत कर दिया था। वह ऐसा महसूस कर रहा था कि वह किसी कल्पित जगह में है, जहां हर चीज़ प्रेरक हो गई है।रंगीन तस्वीरों की सौंदर्य से भरा कमरा उसे एक आत्मीय आभास दे रहा था।

“ये तुम हो क्या आरुणि”… रोहित मुग्ध दृष्टि दीवारों पर टिकाए हुए ही आरुणि से पूछता है। 

“येस”.. आरुणि इतराती हुए बोलती है। 

“बचपन में सच में तुम इतनी सुन्दर थी कि यह आंटी के पेंटिंग का कमाल है” … रोहित शरारत से मुस्कुराते हुए कहता है। 

“थी से क्या मतलब.. अब नहीं हूँ क्या”… झूठा गुस्सा दिखाते हुए आरुणि कहती है। 

“खाना भी खिलाने का विचार है कि नहीं। भूखे पेट भजन नहीं होत गोपाला.. तुम्हीं ने बताया था। कुछ खिला दो इस गरीब को, तब तारीफ निकलेगी मुँह से, झूठी ही सही।” रोहित एक पॉज लेकर हँसता हुआ कहता है। 

“चलो, डिनर रेडी हो गया होगा”.. आरुणि आँखें तरेरती हुई कहती है। 

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बहुत दिनों बाद घर का ऐसा लज़ीज़ खाना खाकर रोहित की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहता है। 

“यहाँ पहले नहीं लाकर तुमने मुझे लज़ीज़ खाने से दूर रखा… ये अच्छा नहीं किया तुमने आरुणि”…रोहित चटखारे लेकर खाते हुए कहता है।

“इसके लिए तो तुम योगिता को धन्यवाद बोलो रोहित। यह उसके हाथों का ही कमाल है।” तृप्ति हँसकर कहती है। 

खाना के बाद रोहित होटल के लिए निकल गया।

दूसरे दिन शाम में रोहित कॉल कर आरुणि को बताता है कि दादी आ गई हैं और कल उससे मिलवाने कैफे आएगा। आरुणि रोहित से सुबह दादी को लेकर घर आने ही बोलती है। घर आकर आरुणि सबको रोहित की दादी के बारे में बताती है और ये भी कि कल सुबह हम सब से मिलने आएंगी। 

“आज ही बुला लेती ना.. हमारे रहते होटल में क्यूँ रुकना।” योगिता आरुणि की ओर पानी बढाती हुई कहती है।

आरुणि पानी का एक घूँट लेकर कहती है, “मैंने भी पहले यही सोचा था, फिर लगा दादी पोता इतने लंबे समय के बाद मिल रहे हैं, बहुत सारी शिकवा शिकायतें होंगी। मन जो इतने दिन चकरघिन्नी सा घूमता रहा होगा, दोनों उसे एक दूसरे के सामने हल्का कर लें। यहाँ आ जाने के बाद शायद रोहित खुल कर अपनी दादी से बात नहीं कर पाता और ना ही दादी कर पाती।” आरुणि अपने मन की बात कहती है।

हाँ तुम सही कह रही हो.. कल जब आएंगी.. तब रुकने बोला जाएगा।” राधा कहती है।

“ये ठीक रहेगा। फिर कल तू कैफे नहीं जाएगी आरुणि।” तृप्ति राधा का समर्थन करती हुई आरुणि से पूछती है।

“मैंने कल की छुट्टी कर ली है। कैफे में बता दिया है.. सम्भाल लेंगे सब। आरुणि कहती है।

***

सुबह एक लंबी सी गाड़ी आकर हवेली के मुख्य दरवाजे पर रुकती है… हॉर्न की आवाज से राधा जल्दी से जाकर दरवाज़ा खोलती है। रोहित और उसकी दादी उस गाड़ी में होते हैं। रोहित गाड़ी अंदर लेता है। तब तक और सब भी बाहर आ जाती हैं। रोहित एक एक कर सबसे दादी का परिचय कराता है। 

क्रमशः

आरती झा आद्या

दिल्ली

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