मोहिनी,कल गांव से मां और पिताजी आ रहे हैं हमारे पास कुछ दिन के लिए रहने,, इस बार मैं उन दोनों को वापस गांव जाने नहीं दूंगा पूरे 2 साल में आ रहे हैं अपने बेटे के घर हम भी केवल चार-पांच दिन के लिए ही इस बीच में घर जा पाए हैं ।
कह रहे थे आंखें तरस गई तुम्हें देखने के लिए तुम्हें तो समय मिलता नहीं है तो हमने सोचा हम ही कुछ दिन के लिए तुम्हारे पास आ जाए। अपने दोनों पोतो से मिलने का भी बहुत मन हो रहा है। वहीं बैठे आरव और निकुंज ने जब अपने दादा-दादी के आने की खबर सुनी
तो उन्हें मन ही मन परेशानी होने लगी। यही चिंता मोहिनी को भी खाई जा रही थी लेकिन महेश के सामने किसी की कुछ कहने की हिम्मत नहीं थी। महेश अपने माता-पिता की इकलौती संतान है और अब गुड़गांव में एक मल्टीनेशनल कंपनी में अच्छे पद पर कार्यरत है
उसके जुड़वा बेटे हैं जो अब 10th क्लास में पढ़ते हैं।उसने अपना घर गुड़गांव में ही बनाया हुआ है जिसमें उसने अपने माता-पिता के लिए भी एक अलग कमरा बनवाया था, लेकिन उनका मन अपने गांव के सिवा कहीं नहीं लगता वह अलग बात है दो-चार दिन के लिए वह उसके पास आ जाते थे
लेकिन अब उन्हें आए दो साल हो चुके हैं। गांव के और शहर के परिवेश में रहन-सहन में काफी अंतर होता है आधुनिकता में रंगे उसके बीवी बच्चों को उनका रहन-सहन निम्न स्तर का लगता है ऊपर से उनका टोका टाकी करने का स्वभाव भी उन्हें बहुत अखरता है।
लेकिन महेश तो अपने माता-पिता को भगवान से भी ज्यादा पूजता है। ऐसा नहीं है अपने बीवी बच्चों के हाव-भाव उसकी नजरों से छुपे रह सके, उसने शांत तरीके से अपने बच्चों को समझाया देखो बच्चों मैं नहीं चाहता किसी की वजह से भी तुम्हारे दादी बाबा को कोई कष्ट पहुंचे
वह जितने दिन यहां पर रहेंगे मैं चाहता हूं तुम भी उनके साथ समय बिताओ क्योंकि बच्चे जो अपने दादी बाबा से सीखते हैं वह ज्ञान दुनिया की किसी किताब में नहीं है । अपने पोती पोतो में जान बसती है बुजुर्गों की। अरे मेरे माता-पिता की ही मेहनत है आज मैं इतने बड़े मुकाम पर हूं।
उन्होंने जितने कष्ट सहकर मुझे पढ़ाया लिखाया है यह मैं ही जानता हूं मेरे मां-बाप मेरा गुरूर है तुम्हारे पापा के माता-पिता होने की वजह से तुम्हें तो उनकी दुगनी इज्जत करनी चाहिए। अगले दिन सरला जी और नामदेव जी अपने बेटा बहू के पास आ जाते हैं।
अपना अलग कमरा होने के बावजूद वे अक्सर अपने पोतो के पास उनके कमरे में आकर बैठ जाया करते थे और उन्हें अपने गांव के किस्से सुनाते रहते थे और उनके पापा की बचपन की बातें उनसे बतलाते रहते थे। सरला जी भी रसोई में अपनी बहू के साथ उसके काम में हाथ बंटा दिया करती थी।
महेश की तो जैसे मुंह मांगी मुराद पुरी हो गई थी वह अक्सर अपनी मां से कहकर वह सारी चीजे बनवाया करता था जो उसे बहुत पसंद थी। रोज रात को अपने माता-पिता के पैर दबाना भी नहीं भूलता था महेश। सच में अपने मां बाप के लिए श्रवण कुमार ही था।
मोहिनी को उनके काम करने का तरीका समझ में नहीं आता था। यही हाल बच्चों का भी था अपने दादी बाबा का हर चीज मे टोकना उन बच्चों को बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था। लेकिन महेश के डर की वजह से कोई कुछ कह ही नहीं पाता था। एक दिन महेश ऑफिस से चहकता हुआ
घर आया और आते ही अपने माता-पिता के पैर छुए और उन्हें खुशखबरी दी कि कल उनके बेटे को बेस्ट एम्पलाई का अवार्ड मिलेगा जिसमें मेरा सारा परिवार आमंत्रित है। आप दोनों को भी मेरे साथ वहां चलना है। कभी ऐसी पार्टियों में न जाने के कारण उसके माता-पिता को बहुत हिचकिचाहट होती है
और वह उसके साथ जाने को मना करते हैं। मोहिनी और बच्चे भी यही कहते हैं कि ऐसी पार्टियों में कहां मम्मी जी और पापा जी सहज रह पाएंगे उन्हें ऐसी पार्टियों के खाना खाने के तरीके भी नहीं पता होते। आप उन्हें क्यों परेशान करते हो? महेश को पता था
कि बच्चे नहीं चाहते कि उसके माता-पिता उनके साथ जाएं उन्हें उनके साथ उनके रहन-सहन और पहनावे को लेकर शर्म जो महसूस हो रही थी। मैं इस बारे में किसी से कोई राय नहीं लेना चाहता जिसे उनके साथ जाने में दिक्कत हो वह यही रह सकता है
कहकर महेश अपने कमरे में चला गया। अगले दिन ऑफिस की पार्टी में महेश ने अपनी सफलता का सारा श्रेय अपने माता-पिता को दिया और जब उन्हें स्टेज पर बुलाया गया तो। भावुक होकर उनके कदमों में बैठकर रोने लगा। उसने कहा मैंने तो बड़ा आदमी बनने का केवल सपना देखा था
उसे साकार तो मेरे माता-पिता की मेहनत ने हीं किया है। कभी-कभी तो हमारी फसल बेकार हो जाती थी और खाने के भी लाले पड़ जाते थे। लेकिन मेरे माता-पिता ने मुझे एक दिन भी भूखा नहीं रखा और मेरी पढ़ाई के लिए क्या-क्या तपस्या नहीं की है
मैं ही जानता हूं? मेरे सपने को इन्होंने हर पल जिया है। उसके मां-बाप की आंखों में तो झरझर आंसू बहे जा रहे थे। उनके मुंह से सिर्फ इतना ही निकल पाया हमारा बेटा हमारा गुरूर है। जो हमने किया वह तो सभी के मां-बाप करते हैं
लेकिन आजकल के बच्चे तो सब कुछ भूल जाते हैं और उन्हें मां-बाप को वृद्ध आश्रम तक भी छोड़ आते हैं। हमारे लिए बहुत गर्व की बात है कि हमारी पहचान हमारे बेटे के नाम से हुई है। हमारा बेटा सच में कलयुग का श्रवन कुमार है
ईश्वर ऐसी औलाद सबको दे कहते कहते उन्होंने अपने बेटे को सीने से लगा लिया। वहां खड़े सभी लोगों के मुंह पर यही बात थी जिसका ऐसा बेटा हो उसके मां-बाप भला गुरुर कैसे ना करें? आज तो मोहिनी और दोनों बच्चों की आंखें भी आंसुओं से भरी हुई थी।
क्योंकि उन्हें पता चल गया था की मां-बाप के रहन-सहन या ऊंचे नीचे होने से कोई फर्क नहीं पड़ता मां-बाप तो केवल मां-बाप ही होते हैं जो भले ही अनपढ़ क्यों ना हो लेकिन अपने बच्चों को संस्कार सबसे पहले वही सिखाते हैं।
अगले दिन सरला जी और नामदेव जी ने जब वापस गांव जाने के लिए कहा तो दोनों बच्चों ने जिद करके उन्हें अपने पास ही रोक लिया। यह कहकर कि हमें भी आपकी सेवा करके अपने पापा का गुरूर बनना है दादाजी। आज महेश ने भी अपने बच्चों को कसकर सीने से लगा लिया
क्योंकि उसे पता था अब उन्हें समझाने की कोई जरूरत नहीं है संस्कार सिखाने से नहीं अपने घर का माहौल देखने से ही आते हैं। जैसा व्यवहार हम अपने मां-बाप के साथ करते हैं आने वाली पीढ़ी भी स्वत: ही वैसा ही करने लग जाती है।
पूजा शर्मा स्वरचित।
दोस्तों आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा।
Very Beautiful Story
Absolutely
Bahut hi sundar🙏🙏🙏🙏
but enough is enough
सच कहा संस्कार सिखाने से नहीं वरना घर में वैसा वातावरण देने से आते हैं।
Well said @VKPandey
Very beautiful story
Par ise mat badhao