“दादी जी और मैं” -दिक्षा बागदरे Moral Stories in Hindi

दादी जी कहती थी मैं राधिका जी को। वह एक सरकारी स्कूल मै शिक्षिका थी।

मेरा शुरू से ही स्वभाव रहा है कि मैं अपने आसपास बाजार में महिलाओं से, बच्चों से  सामान्य बातचीत कर ही लेती हूं।

इसका मतलब यह नहीं कि मैं हर किसी से बात कर लेती हूं पर हां  विशेष तौर पर महिलाएं  एवं बच्चे अगर मुस्कान के साथ अभिवादन दे तो अवश्य कर लेती हूं। मुस्कुराकर अभिवादन करना मेरी भी आदत है।

दादी जी से मेरी मुलाकात आज से कोई लगभग 20 साल पहले हुई थी। जब मेरी नई-नई शादी हुई थी और मैं एक नए घर में शिफ्ट हुई, जहां वह  पड़ोस में ही रहती थी।

सामान्य तौर पर मैंने मुस्कुरा कर उनका अभिवादन किया और इस मुस्कुराहट के साथ उन्होंने मेरे अभिवादन का उत्तर दिया । जहां तक मुझे याद है इसी तरह से हमारी बातचीत शुरू हुई होगी। 

 फिर पास में रहते – रहते वस्तुओं का आदान-प्रदान, ठंड में धूप में बैठना, एक दूसरे से सामान्य विषय पर चर्चा करना और साथ में सब्जी वाले से सब्जी लेना इस तरह कई दैनिक कार्य जो हम साथ साथ करते थे, हमारे रिश्ते को पूर्णता देते गये। 

जब उन्हें विद्यालय में इंग्लिश पढ़ाने के लिए कहा गया तो हिंदी मीडियम से होने वजह से उन्हें बहुत कठिनाई होती थी। तब वह किताब लेकर मेरे पास आती और  मैं भी उन्हें एक बच्चे की तरह इंग्लिश पढ़ना, उसका मतलब, शब्दों का उच्चारण और पढ़ाना सिखाती। उन्हें जब भी कोई कभी भी मिलता वह हर किसी को यह कहती कि यह मुझे इंग्लिश पढ़ना सिखाती है, मेरी बेटी है। मेरी नौकरी को यही बचा रही है।  मुझे  बहुत खुशी होती कि मैं उनके काम आ रही हूं।

 मैं उन्हें दादी जी कहती रही और उन्होंने मुझे अपनी बेटी का दर्जा दे दिया। 

आप सब सो रहे होंगे की विषय है बुढ़ापा और मैं क्या विषय लेकर बात कर रही हूं ?

मैं अपने विषय से जरा भी नहीं हटी हूं मैं जिन दादी जी की अब तक बात कर रही थी आज 20 साल बाद वह भी बुढ़ापे की दहलीज पर खड़ी हैं। 

 कुछ पुरानी यादों से आगे बढ़कर मैं अब उनकी आज के समय की वर्तमान स्थिति के बारे में बात करना चाहूंगी।

बुढ़ापा मनुष्य जीवन का अंतिम चरण, जिस पर हम सभी को कभी ना कभी आना ही है। 

 इस समय जो स्थिति में उनकी देख रही हूं मन बहुत विचलित हो जाता है। भरा पूरा परिवार था उनका, बेटा -बहू, पोती । बेटी की भी शादी हो चुकी थी। लेकिन धीरे-धीरे कुछ पारिवारिक परिस्थितियों में बदलाव एवं समस्याओं  से  वे इस कदर घिरती गई की धीरे-धीरे परिवार बिखर गया। वह भी बहुत तनाव में रहने लगी।

 कुछ वर्षों पूर्व हमने वहां से घर भी बदल दिया। मैं दो बच्चों की मां बन गई और थोड़ी व्यस्तता भी बढ़ गई,  तो मिलना जुलना भी काफी कम हो गया था, पर साथ नहीं छूटा था । वार त्यौहार कभी-कभी मिलना और फोन पर बातचीत तो हो ही जाती थी। मैं मिलने जाऊं ना जाऊं वह जरूर मुझसे मिलने आ ही जाती थी।

 मन की बात बांटने वाले की कितनी आवश्यकता होती है, यह मैंने तब जाना जब वह मेरे पास आती थी और अपने मन की बातें कहती थी। जितना मेरी समझ से मैं उन्हें समझ पाती, उनके तनाव को कम करने का प्रयास करती।  उनका तनाव कुछ कम हो जाए  यह कोशिश मैं जरूर करती थी। 

पिछले कुछ दिनों से उन्हें नींद की गोलियां वगैरा भी लेना पड़ती है। शारीरिक स्वास्थ्य भी उनका अब बहुत गिर चुका है। इस बीच वह पिछले कई महीनों  में मेरे पास कई बार आई हैं । कभी स्मार्टफोन की  किसी उलझन को सुलझाने के लिए, तो कभी किसी व्यक्तिगत उलझन को साझा करने के लिए।  तो कभी अपने मन की पीड़ा को बांटने के लिए।  कभी अपनी पारिवारिक समस्याओं से दुखी होकर अपना मन हल्का करने के लिए ।  बात-बात पर बहुत रोती हैं वो।

 अब उनकी  शारीरिक एवं मानसिक  स्थिति देखकर मन इतना घबरा गया है कि सब कुछ अच्छा होने के बाद, पैसा होने के बाद भी अगर मनुष्य का बुढ़ापा ऐसा है तो हे! भगवान ऐसा बुढ़ापा किसी को ना देना।

 डर भी लगता है, उनकी स्थिति दिनों दिन जिस तरह बद् से बत्तर हो रही है, आगे उन पर ध्यान कौन देगा और कैसे उनका जीवन चलेगा ?

हां एक बात और वह अब भी जब  किसी से कभी भी कहीं भी मिलती है और मेरा जिक्र हो तो वह उन्हें यह बताना नहीं भूलती की इंग्लिश पढ़ना मैंने उन्हें सिखाया, उनकी नौकरी मैं बचाई है। हर बार मेरे पति, मेरे बच्चों से भी वो यह बात जरूर कहती हैं।

मैंने ऐसा कुछ खास किया नहीं था पर फिर भी मुझे बहुत खुशी होती है कि मैं किसी के काम आ पाई।

उनका ऐसा बुढ़ापा देखकर मुझे लगता है कि अभी उनके लिए तो मैं हूं या मुझ जैसी पीढ़ी की कई महिलाएं जो अभी एक दूसरे का दुख बांट लेती है तो उनका समय तो फिर भी कट जाता है।

 पर क्या हमारे बुढ़ापे तक हमारे बच्चों के पास इतना समय होगा कि वह हमें समय दे पाए या किसी आस पड़ोस की दादी जी से बातचीत कर पाए या उनका दुख दर्द बांट पाएं ???

जिसके पास अपने जीवन में जितना भी समय हो और वह अगर किसी दूसरे के भला करने में काम आ सके तो जरूर करना चाहिए। आपका एक छोटा सा प्रयास किसी के चेहरे पर मुस्कान ला सकता है। किसी का बुढ़ापा सुधर सकता है।

#बुढ़ापा 

स्वरचित दिक्षा बागदरे

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