अपने ही पहले दगा देते हैं -रश्मि प्रकाश Moral Stories in Hindi

“ बहू जरा अलमारी में से वो पेपर और गहने का डिब्बा तो पकड़ा दे…।” राजबाला जी ने बिस्तर पर बैठे बैठे अपनी छोटी बहू से कहा

केतकी डिब्बा पकड़ा कर वापस चली गई वो अपनी सासु माँ को चाय देने आई थी और देख रही थी सासु माँ कुछ परेशान सी बिस्तर पर पहले से ही कुछ पेपर लेकर लिख रही हैं ….. पहले तो सोचा पूछ लूँ पर हिम्मत जुटा नहीं पाई…. अक्सर वो महसूस करती थी उससे बहुत बातें बताई नहीं जाती है…. बुरा भी लगता पर दो साल पहले ही ब्याह कर आई है

तो सोचती समय आने पर सब पता चल ही जाएगा….. इधर केतकी देख रही थी उसके जेठ जेठानी जो दोनों काम करते हैं सासु माँ से अक्सर खुसूर फुसुर करते रहते हैं …. क्या बात करते कभी ना केतकी पूछती ना उसके पति हर्ष।

शाम को जब उसके जेठ जेठानी ऑफिस से आए सीधे माँ के कमरे में गए…. बहुत देर तक कुछ बातें होती रहीं … तभी केतकी ने सासु माँ के रोने की आवाज़ सुनी…. दौड़ कर कमरे की ओर आई दरवाज़ा खोलने को हुई पर दरवाज़ा ना खुला…. अंदर से जेठ जेठानी की अस्पष्ट आवाज़ सुनाई दे रही थी….. तभी दरवाज़े की घंटी बजी और केतकी दरवाज़ा खोलने चली गई…. हर्ष के आते माहौल एकदम सामान्य हो गया….. सासु माँ भी अपने रूदन को शांत कर चुकी थीं.

सब ने हर दिन की तरह खाना खाया और अपने अपने कमरे में चले गए…. पर केतकी की आँखों में नींद ही नहीं थी….. आख़िर ऐसा क्या हुआ जो सासु माँ रो रही थीं…. हर्ष के आते सब सामान्य क्यों हो गया…. करवटें बदलती केतकी के हलचल से हर्ष की आँख भी खुल गई.

“ क्या हुआ जो करवटें बदल रही हो….तबियत ठीक तो है?” हर्ष ने पूछा.

“ हर्ष आप भरोसा करोगे तो कुछ बोलूँगी नहीं तो रहने दो..।” केतकी आशंकित हो बोली.

“ कहो तो…।” हर्ष ने कहा.

केतकी आज की बात बता दी….

“ ओहहह कल माँ से पूछता हूँ…अब तुम ज़्यादा मत सोचो और सो जाओ।” कह हर्ष केतकी को आलिंगन में ले सोने का प्रयास करने लगा.

दूसरे दिन सुबह हर्ष माँ के कमरे में जाकर उनसे पूछा….

“ कोई बात नहीं बेटा वो तेरे पापा के कुछ पेपर देख रही थी वही दिखाने तेरे भाई को बुलाई थी….. बस उनकी याद आ गई इसलिए रोना आ गया था….. ।” माँ ने कह बात टाल दी

केतकी और हर्ष माँ की बात पर भरोसा कर रह गए.

समय गुजरने लगा एक दिन अचानक पता चला जेठ जेठानी नया घर ले लिए हैं और उसमें पूजा अर्चना करवाने वाले हैं…. हर्ष और केतकी को बहुत आश्चर्य हुआ….. ये घर भी तो अपना ही है वो भी इतना बड़ा हाँ थोड़ा पुराना ज़रूर है पर ज़रूरत के हिसाब से सब कुछ यहाँ पास में उपलब्ध है फिर दूसरे घर की ज़रूरत क्यों पड़ गई….हो सकता है दोनों कमा रहे हो तो ले रहे होंगे ये सोच कर हर्ष ने मन को तसल्ली दे दी।

पूजा में जब केतकी हर्ष पहुँचे तो मजदूर दरवाज़े पर नाम की पट्टी लगी रहे थे…..“ कृति भवन “

ये नाम पढ़ कर दोनों आश्चर्य में डूब गए।

“ ये भाभी के नाम से घर बना है…।” केतकी ने कहा.

“ हो सकता भाभी ने ज़्यादा पैसे लगाए हो या फिर उन्होंने ही लिया हो…. अच्छी ख़ासी तनख़्वाह जो आती है उनकी ।” हर्ष ने कहा और घर के अंदर प्रवेश कर गए…. सामने ही माँ नए वस्त्र धारण किए चहक रही थीं ….वो बड़े बेटे बहू के साथ ही यहाँ आ गई थीं…

सब कुछ सम्पन्न हो जाने के बाद हर्ष और केतकी अपने घर चलने को हुए तो सोचा माँ से भी पूछ लें…

“ माँ आज घर चलोगी और इधर ही रहोगी?

“ बेटा अब तो हम सब यही रहेंगे…..वो घर बेच दिया है…. अब से यही हमारा घर है ….. तुम्हें पता है मेरे नाम से घर लिया है…..।” राजबाला जी चहकते हुए बोलीं

“ माँ ये घर तो भाभी के नाम से है…. बाहर उनका नाम लिखा है….और तुम ये क्या कह रही हो घर बेच दिया…… मुझे बताया भी नहीं……।” हर्ष आश्चर्य और ग़ुस्से में बोला

“ ये तू क्या कह रहा है बेटा….. रूक मैं देख कर आती हूँ…।” कह राजबाला जी घर के बाहर लगे नाम पट्टी देखने चली गई

बड़ी बहू के नाम को पढ़ते वो बड़े बेटे के पास पहुँची….. जहाँ बड़ी बहू अपने घर वालों के साथ खूब हँस हँस कर बातें कर रही थीं और उनका बेटा भी मजे कर रहा था

“ हेमंत…. बाहर आओ कुछ बात करनी है ।” राजबाला जी ने कहा.

“ क्या हुआ माँ ?” हेमंत ने पूछा

“ सच सच बता ये घर किसके नाम लिया है?” राजबाला जी सपाट लहजे में बोलीं.

“ वो माँ….. ।” हेमंत कुछ कहता इससे पहले कृति आकर बोलने लगी…,“ आपको नाम से ही लेने गए थे माँ पर इस काम में इतनी भागदौड़ करनी थी जिसकी वजह से आपको तकलीफ़ देने की ज़रूरत नहीं समझी…. फिर जिस बिल्डर से ये घर लिया है वो मेरे पहचान में है उसने कहा तुम अपने नाम से लोगी तो कुछ रूपये कम कर दूँगा….. बस इसीलिए मेरे नाम से ले लिया….. आप भी कहाँ तक यहाँ वहाँ दौड़ती रहतीं । “

राजबाला जी को बेटे बहू से ऐसी उम्मीद नहीं थी….वो बस बेटे से यही बोलीं,“ हेमंत ये तुमने सही नहीं किया…. एक बार हर्ष के बारे में भी सोच लेते…. मेरा क्या है आज नहीं तो कल तेरे पापा के पास चली जाऊँगी पर तेरे धोखे का उनको क्या जवाब दूँगी…..हर्ष ने कभी अपना हिस्सा नहीं खोजा … आँख बंद कर अपने बड़े भाई पर भरोसा करता है वो……उस पर क्या बीतेगी सोचा भी है….. जिस घर में रहता है अब वो भी हमारे हाथ से निकल गया …. ये घर तुमने अपने नाम कर उसे भी बहुत बड़ा धोखा दिया है…..देखना बेटा बहुत पछताएगा….।” कह वो हर्ष और केतकी के साथ निकल गई.

हेमंत उन्हें रोकने की कोशिश करता रहा पर वो ना रूकीं

घर बेच दिया था पर कुछ दिनों की मोहलत मिली हुई थी …..

हर्ष और केतकी पूरे घर को उदास भरी नज़रों से देख रहे थे… राजबाला जी अपने कमरे में जाकर रो रही थीं….. बड़े बेटे की बातें याद कर रही थीं कैसे वो कह रहा था,“ माँ नया घर ले लेते हैं…. हम सब उसमें मिलकर रहेंगे…. हर्ष के लिए सरप्राइज़ रहेगा…. वो भी ख़ुश हो जाएगा नया घर देख कर …. अभी से उसे कुछ नहीं बताएँगे….. ।” और राजबाला जी इसके लिए तैयार हो गई थीं क्योंकि घर पुराना हो चुका था और मरम्मत करवाने पर भी बहुत खर्च होता ऐसे में नया घर नये उपकरणों के साथ होगा ये सब बताकर उन्हें विश्वास में ले लिया था… यही सब सोचते सोचते राजबाला जी कब आख़िरी साँस ले ली ये तो सुबह केतकी जब उन्हें उठाने गई तब पता चला.

हर्ष ने बड़े भाई को सूचना भिजवा दी कृति और हेमंत आए सब क्रियाक्रम के बाद हेमंत ने हर्ष से कहा,“छोटे चल उस घर में हम साथ साथ रहेंगे ।”

“ नहीं भैया….. जिस घर को आपने माँ को धोखा देकर लिया… वो उस सदमे में चल बसीं…. उस घर में मैं कभी नहीं जा सकता…. आपको सब कुछ लेना था ले लेते पर ऐसे धोखे से क्यों….. मैं आप पर कोई केस मुक़दमा नहीं करूँगा ….आज से आपका मेरा रिश्ता माँ के साथ ही ख़त्म समझें…. ।” हर्ष ने रोते रोते कहा

हेमंत जान रहा था उसने धोखे से सब कुछ हड़प लिया है…. माँ के साथ भाई को भी धोखा दिया है….. जिससे माँ के साथ साथ भाई से भी रिश्ता ख़त्म करवा दिया…. ना जाने क्यों उसे अपने आने वाले कल के लिए बेचैनी सी होने लगी थी….. उसका भी तो अपना एक बेटा है कल को कही वो भी ऐसे ही धोखा दिया तो….. हेमंत कृति से बात करने गया.

“ कृति ये सब ठीक नहीं हुआ है…. हर्ष और केतकी का भी इसमें हिस्सा है…. ये घर उनके भी नाम से होना चाहिए ।” हेमंत ने कहा.

“ किसका और कैसा हिस्सा…. अब ये घर मेरा है….. आप ज़्यादा भाई की तरफ़दारी मत करो…इतनी मुश्किल से तो उन लोगों से छुटकारा मिला है…।” कृति के मुँह से ये सुन हेमंत दंग रह गया.

कमरे के बाहर हर्ष और केतकी ये सब सुन कर बिना किसी से मिले अपने लिए आशियाना खोजने चल पड़े…. माता-पिता की यादों की पोटली लेकर…..

हर्ष समझ गया था अब किसी पर भरोसा नहीं किया जा सकता चाहे वो अपने भाई ही क्यों ना हो……एक धोखे ने केतकी और हर्ष को बेघर कर दिया….।

– रश्मि प्रकाश

1 thought on “अपने ही पहले दगा देते हैं -रश्मि प्रकाश Moral Stories in Hindi”

  1. कहानी का अंत बहुत दुःखद है ,किंतु आज के बदलते हुए भौतिकता वादी युग में सब संभव है।

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