मनमानी – मीनाक्षी चौहान

चार दिन नहीं हुए इस नई नवेली बहुरिया को घर में आए कि अपनी मनमानी करनी शुरू कर दी। कैसे ना कैसे मुझ से अपनी बातें मनवा ही लेती है और मैं भी उसकी प्यारी-प्यारी, मीठी-मीठी बातों में आकर हाँ में हाँ मिला ही देती हूँ। परसों पहली बार मेरी रसोई में गोल की बजाय … Read more

हक हमारा – रचना कंडवाल

हमेशा जब भी मैं लिखती हूं तो संडे के बारे में ‌ही लिखती हूं क्योंकि एक हाउस वाइफ का‌ तो संडे मंडे कुछ नहीं होता पर कुछ प्राणी ऐसे हैं जिनका संडे चिल डे होता है। ऐसे ही एक संडे मैं उठी पतिदेव को पानी गर्म करके पीने को दिया और साथ में बेड टी … Read more

रिश्तों के रूप – रचना कंडवाल

गरिमा तुम मेरी बेटी की तरह हो।” ये सुनकर गरिमा को काटो तो खून नहीं। प्रोफेसर श्रीनिवास की आवाज ने उसे सहमा कर रख दिया। गरिमा का कालेज में नया दाखिला हुआ था। गरिमा दिखने में बेहद खूबसूरत थी। चंप‌ई रंग,कत्थ‌ई आंखें, मोहक हंसी,कमर तक लहराते हुए बादामी कलर के बाल उस पर सोने पर … Read more

जीना यहां मरना यहां – रचना कंडवाल

आज शाम को जब पतिदेव के आफिस से आने पर उन्हें चाय बना कर दी तो विचार आया कि चाय पर चर्चा कर लूं। पर किस चीज पर? राजनीति पर पूरा देश कर रहा है।मी टू पर सारी दुनिया में घमासान मचा है। तो ऐसा करती हूं अपने बारे में चर्चा ठीक रहेगी। मैंने शुरू … Read more

रंग- मीनाक्षी चौहान

मम्मी जी और बगल वाली आँटी में खूब जमने लगी है। इस नये घर में आये हमें अभी दो हफ्ते ही हुए हैं लेकिन दोनों ऐसे बतियातीं हैं जैसे एक-दूसरे को बरसों से जानतीं हैं। दोनों शाम ढ़लते ही अपनी-अपनी कुर्सियाँ लिये गेट के बाहर डट जातीं। हर दिन अलग-अलग मुद्दों पर गप्प चर्चा चलने … Read more

मजबूरी…!! -विनोद सिन्हा ‘सुदामा’

बहुत मुश्किल होता है किसी ऐसे सच को स्वीकार करना जो सिर्फ आपसे और आपके व्यक्तित्व से जुड़ा हो और जो कड़वा भी हो और आपको दर्द भी देता हो,मेरे लिए भी एक सच ऐसा था जिसे स्वीकार करना मुश्किल हीं नहीं पीड़ादायक भी था फिर भी स्वीकार कर रखा था मैंने कि मैं एक … Read more

थप्पड़…..।।। – विनोद सिन्हा “सुदामा”

व्हील चेयर पर बैठी मनोरमा देवी सुई में धागा लगाने की बार बार कोशिश कर रही थी पर उनकी बूढी आँखे उनका साथ नही दे रही थी.पास बैठी बबली जो कल ही ससुराल से आई थी ने कहा लाओ माँ मैं सुई में धागा लगा दूँ “तुमसे नहीं होगा” यह सुन मनोरमा देवी मुस्कुराने लगीं … Read more

निर्जला..!! – विनोद सिन्हा “सुदामा”

सुनो…मैं गई थी उस रोज़ भोले बाबा के मंदिर..थाल में बेलपत्र सजाए..हजारों सीढ़ियाँ ऊपर चढ़कर जल अर्पण कर मांगने तुम्हें ख़ुद निर्जला रहकर.! #निर्जला” जाने क्या सोच माँ बाबा ने भी मेरा नाम #निर्जला ही रखा था,अक्सर पूछती मैं ये क्या नाम रख दिया आपने मेरा जला वला सा #निर्जला..? माँ बाबा हँस देतें,कहतें भगवान … Read more

फौजी की पत्नी – भगवती सक्सेना गौर

सबने फौजी की तो बहुत सी कहानी सुनी होगी आज मैं एक फौजी की पत्नी के दिल की नगरी का हाल लिखूंगी । अनुराधा अपने फौजी पति का इंतेज़ार कर रही थी, फौजी तो सरहद पर ड्यूटी देता है पर फौजी की पत्नी घर मे रहते हुए भी हर क्षण डर और  आशंकाओं से घिरी … Read more

सूरज – भगवती सक्सेना गौर 

14 वर्षीय पोते सूरज की आवाज़ से नींद टूटी, “बाबा, उठिए, ब्रश करिए।” और  70 वर्षीय सत्येंद्र ने आंख खोली अब अपनी जिंदगी से हताश हो चुके सत्येंद्र पोते के लिए जीवित थे। वो जीना भी एक सजा ही मालूम होती थी. धरती नही समा पायी, तो बिस्तर ने ही अपने कब्जे में कर लिया। … Read more

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