हक हमारा – रचना कंडवाल

हमेशा जब भी मैं लिखती हूं तो संडे के बारे में ‌ही लिखती हूं क्योंकि एक हाउस वाइफ का‌ तो संडे मंडे कुछ नहीं होता पर कुछ प्राणी ऐसे हैं जिनका संडे चिल डे होता है। ऐसे ही एक संडे मैं उठी पतिदेव को पानी गर्म करके पीने को दिया और साथ में बेड टी पर वो उठे नहीं मैंने थोड़ा प्यार से उठाया पर उन्होंने आंखें खोल कर ऐसी नज़र डाली  लगा कि साक्षात शिव का त्रिनेत्र खुल गया हो फिर चिड़चिड़ाते हुए बोले क्या है संडे के दिन भी‌ चैन मत लेने देना। खबरदार जो भी तुम्हारे अनाप-शनाप विचार हैं उन्हें मुझे सुनाने की कोई जरूरत नहीं है।

मन में तो आया कि बस! पर फिर सोचा जाइये आप कहां कहां जायेंगे ये नजर लौट के फिर! पर मेरे आज्ञाकारी स्वभाव ने  फिर मुझे पूछने पर मजबूर कर दिया नाश्ते में क्या बनाऊं? कुछ भी बना लो और अब मुझे मत उठाना। मैंने फटाफट काम निबटा कर नाश्ता बनाया बच्चों को उठा कर उन्हें कहा जल्दी से नहा धो कर फ्रेश हो जाओ आलू का परांठा, धनिया पुदीने की चटनी, दही, मक्खन, और साथ में आम का अचार देख कर बच्चे खुश हो गये बिटिया ने प्यार से मुझे बांहों में ले लिया आइ लव यू मम्मा यू आर ग्रेट।

अब पतिदेव नहा धोकर तैयार हो कर डाइनिंग टेबल पर पधारे चहकते हुए बोले क्या बनाया है? दलिया उनकी ओर सरकाते हुए उन्हें इग्नोर करके बच्चों से बात करने लगी।ये क्या है? दलिया। आपने कहा था कुछ भी बना लो और ये परांठे। ये आपके लिए नहीं है।जो मुझसे ढंग से बात नहीं करेगा उसे कुछ नहीं मिलेगा शुक्र है आपको दलिया दिया है। पतिदेव मासूमियत से मुझे देखने लगे बड़ी बिटिया बोली मम्मा प्लीज पापा को दे दो न। मेरा परांठा दे दो। पतिदेव ने बिटिया की प्लेट से लेकर खाना शुरू कर दिया। नाश्ते के बाद पतिदेव ने मेरी तरफ देखा ये तुम्हारा मुंह क्यों फूला हुआ है?


थोड़ा कम खाया करो। अच्छा तुम कुछ कह रही थी सुबह। मैं तो अनाप-शनाप कहती हूं मुझसे बात करने की कोई जरूरत नहीं है। अरे भई हम पत्नियां तो बस सारी दुनिया का बोझ ढोने के लिए ही इस दुनिया में आयी हैं। अच्छा गलती हो गई सुबह मुझे बहुत नींद आ रही थी वरना तुम्हें कुछ कह कर शामत बुलानी है क्या। मैं भी खड़ी होकर बोली वाशिंग मशीन लगा रही हूं कपड़े धोने हैं। अभी फालतू बातों के लिए वक्त नहीं है। मशीन लगा कर रूम में आई तो देखा कि पतिदेव गद्दे के नीचे कुछ छिपा रहे हैं। क्या कर रहे हो आप? कुछ नहीं कह कर बैठ गये। कहने लगे जब भी कपड़े धोये जाते हैं

हमेशा पौकेट से कुछ न कुछ गायब हो जाता है। पिछली बार पांच सौ रुपए गायब हो गए थे। देखिए वो गायब नहीं होते हैं। आप टैक्स पे करते हैं कपड़े धोने का। अच्छा ये तो अच्छा है जब जी चाहे तभी टैक्स ‌ले  लो। अभी दूध वाले को  दिए थे तीन हजार रुपए सौ के खुले चाहिए थे तुमने पांच सौ लेकर सौ दिए और बाकी रख लिए।छि आप भी  ये  क्या अगला पिछला हिसाब ले कर बैठ गए और ये हिसाब करने से होगा क्या। जो आपका है वो सब मेरा है। पतिदेव बोले और जो तुम्हारा है। अरे जो कुछ मेरा है उस से आपको कोई मतलब नहीं होना चाहिए। पतिदेव बोले जब मैं तुम्हारे मायके जाता हूं

तो तुम्हारे मम्मी पापा जो शगुन देते हैं मैं उन्हें मना करता हूं तो तुम कहती हो लाओ मम्मी मुझे दे दो। वो क्या सोचते होंगे मेरे बारे में कि शायद ये सब मैंने ही तुम्हें कहा होगा। अरे आपको ये सब सोचने की जरूरत नहीं है वो अपनी बेटी को जानते हैं।हर महीने तुम्हें पाकेट मनी अलग चाहिए। और फिर कहती हो मैंने आपसे कभी कुछ मांगा है क्या। देखो मैं मांगने में यकीन नहीं रखती। हक कभी मांगा जाता है अब पतिदेव हक और हकीकत में कन्फ्यूज थे।

लेखिका–रचना कंडवाल

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