सास बनते ही कठोर दिल की क्यों हो गयी? – अर्पणा जायसवाल
- Betiyan Team
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- on Dec 31, 2022
“बहू सबने खाना खा लिया है। सिर्फ हम और तुम बाकी है, जाओ दो थाली, कटोरी और गिलास धो कर अपना और मेरा खाना निकाल कर सारे बर्तन खाली कर देना”सासूमां नीलम जी ने जैसे ही अंकिता से कहा तो उसे आज गुस्सा आ गया और वो फट पड़ी, “नहीं खाना मुझे और आपको खाना है तो खुद थाली धोकर अपना खाना ले लीजिए।
“दिमाग खराब हो गया है क्या? या फिर बुखार से बौरा गयी हो” नीलम जी तल्खी से बोलीं।
“आपको जो समझना है समझिये… लेकिन रोज-रोज आपके इस रवैये से मेरी भूख मिट चुकी है। हर वक्त चाहे नाश्ता करना हो या फिर खाना, खाने से पहले बर्तन धुलो और तब खाओ” अंकिता भी आज गुस्से में बोल पड़ी।
“तो क्या हो गया दो बर्तन धोने से तुम छोटी हो जाओगी क्या? भूलो मत यह तुम्हारा ससुराल है मायका नहीं” नीलम जी का स्वर तेज हो गया।
“क्या बात है? किस बात पर इतनी बहस हो रही” नीलम जी की तेज आवाज को सुन मनोज जी और बेटा मयंक किचन में आ गए।
“कुछ नहीं जी…बहू को कह रही थी खाना खाने को लेकिन वो मना कर रही, बस इतनी-सी ही बात” नीलम जी असली बात छुपाते हुए बोलीं।
“अंकिता, तुम खाना खाने से क्यों मना कर रही और खाओगी नहीं तो दवा भी असर नहीं करेगी” मयंक अंकिता की तरफ देख कर बोला।
“कैसे खाऊं पापा जी ? यहां तो रोज का नियम हो गया है पहले बर्तन धुलो फिर खाना परोसो” अंकिता की आंखों में आंसू आ गए।
“बर्तन धुलो? क्यों धनिया बर्तन धोने नहीं आ रही क्या? और जब तुम्हें बुखार है तो काम क्यों कर रही?” मनोज जी ने पूछा।
“वैसे तो मम्मी जी उठते-बैठते मुझे ताना मारती हैं कि तुम्हारे मायके से कुछ भी बरतन नहीं मिला। तुमसे ज्यादा तो मैनें अपनी बेटियों को दे रखा है और मेरे पास भी ड्रम में बहुत बर्तन हैं। लेकिन रोज के इस्तेमाल के लिए सदस्यों के हिसाब से भी बर्तन कम है। आप लोगों के खाने के बाद मैं धोती हूं फिर खाना खाती हूं। घर में खाने वाले सात सदस्य लेकिन थाली सिर्फ चार निकली हैं और उतनी ही कटोरी-चम्मच। आज मुझे सुबह से बुखार है लेकिन मम्मी जी ने कहा कि हमने भी बुखार में घर संभाला है दवा खाओ और काम करो” अंकिता ने ससुर के सामने सच्चाई रखी।
“अब मैं क्या करूं? ज्यादा बर्तन होने पर धनिया काम छोड़ने की धमकी देती है। उसका कहना है कि आपके यहां एक सदस्य बढ़ गया है तो पगार बढ़ाओ। तब मैनें ही उससे कहा कि बर्तन कम निकालूंगी लेकिन पगार नहीं बढ़ाउंगी। इसलिये आधे बर्तन रख दिए और…” नीलम जी मुंह बना कर बोली।
“… और आधे बरतन बहू से धुलवाकर उसी पगार पर काम कराया जा रहा है!! क्योंकि घर के सदस्य के रुप में वही बढ़ी है” मनोज जी गुस्से से नीलम जी की तरफ देखते हुए बोले।
“सास बनते ही तुम इतनी कठोर दिल की हो गयी कि तुम्हें बहू का बुखार भी समझ नहीं आया और उससे उस हालत में सब काम करवाया, शर्म आनी चाहिये तुम्हें। घर के सब बर्तन वापस किचन में रखो और कम पड़ रहे तो अपने ड्रम से निकालो। आज के बाद अगर ऐसा कुछ हुआ तो…। बहू को विदा कराके लाते समय समधन से बोल कर आयी थी कि अपनी बेटी की तरह रखूंगी। इस तरह तुम अपनी बेटी को रखती हो। कहां है तुम्हारी लाड़ली? अपने कमरे में आराम कर रही उसे बहू के साथ किचन में होना चाहिये” मनोज जी ने बेटी सपना को आवाज लगा कर बुलाया और उसे भी डांट लगायी, “जाओ, जाकर अंदर से थाली निकालो और अपनी भाभी का खाना लगा कर उसके कमरे में देकर आओ।”
“और नीलम जी, आपकी धनिया आए तो उससे कह दीजियेगा कि आज से बर्तन ज्यादा ही मिलेगा। उसे धोना है तो धोए वरना उसका हिसाब कर देना। दूसरी कामवाली आएगी और आज के बाद घर में बरतन की कमी नजर नहीं आनी चाहिये” मनोज जी ने नीलम जी को भी अल्टीमेटम दे दिया।
ऐसा क्यों होता है कि बहू को घर का सदस्य समझने में ससुराल वालों को वक़्त लगता है लेकिन बहू से यह आशा की जाती है कि वो ससुराल आते ही उनके रंग में रंग जाए।
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आपकी सखी,
अर्पणा जायसवाल