अपना घर – भगवती सक्सेना गौड़   : Moral Stories in Hindi

रवीना के रिटायरमेंट का दिन था, फेयरवेल के लिए आफिस आयी थी। माधवी ने आकर गले मे फूलों का हार डाला, और तालियों की गूंज उंसकी आंखों में धुंधलापन ले आयी थी। आफिस के हर कलीग ने उंसकी तारीफ में दो शब्द कहे। फिर सबसे बिदा लेकर वो अपनी कार में घर जाने को बैठ … Read more

खोया हुआ रिश्ता – भगवती सक्सेना गौड़ : Moral Stories in Hindi

राणा बचपन से मास्टरजी की बहुत इज्जत करता था, उसके पापा के दोस्त होने के कारण कई बार घर आकर गणित हल कराते थे। उन्ही के कारण वह गणित जैसे कठिन विषय मे पास हो पाता था। दसवीं बोर्ड पास करके ग्रेजुएशन करने के बाद मजबूरन बाबूजी की दुकान चला रहा था।  क्योंकि पढ़ाई के … Read more

किस्मत – भगवती सक्सेना गौड़ : Moral Stories in Hindi

बीसवीं सदी में जन्मी रवीना, अब उन्मुक्त जीवन जी रही थी। जीवन मे किसी वस्तु की कमी नहीं थी। पर कुछ है, जो कभी कभी दिल मे चुभ जाता है। आज जो स्वतंत्रता लड़कियों को मिल रही है, वह रवीना के बचपन या कॉलेज लाइफ में उसको नही मिल सकी। घर मे एक बंधन रहता … Read more

तूलिका – भगवती सक्सेना गौड़   : Moral Stories in Hindi

तूलिका ने जैसे ही फेसबुक खोला, फिर वही महाशय जी का  फ्रेंड रिक्वेस्ट देखकर परेशान हो गयी। एक महीने से वो नजरअंदाज कर रही थी, पर वो शख्स मानने को तैयार ही नही थे। आखिर उसने सोचा चलो, एक दिन के लिए उसकी बात मान लेती हूँ, क्या कहना चाहता है, फिर ब्लॉक कर दूंगी। … Read more

बिल-भगवती सक्सेना: Moral Stories in Hindi

“माधुरी, दूध का बिल इस बार इतना ज्यादा क्यो आया?”  “देखो ये ग्वाला सही बोल रहा, क्या ?” अभी पैसे दे दो, फिर तुम्हे सब समझाती हूँ।” “क्या करूँ, मैंने भी मना किया था, पर सासु जी नही मानी, स्वयं ही दूध वाले से ज्यादा ले रही हैं कि पापा जी के दांत में दर्द … Read more

अंतिम यात्रा – भगवती सक्सेना : Moral Stories in Hindi

बचपन से साथ खेलते रहे हरी और यशोदा पड़ोसी भी थे। गाँव का हरा भरा खुला वातावरण था, कभी तालाब कभी खेत मे बच्चो का खेलना सबको अच्छा लगता था। एक बार तालाब के किनारे दौड़ते हुए यशोदा फिसल गयी और तालाब में गिर पड़ी। उस समय बारिश का समय था, पानी बहुत था, किसी … Read more

अखंड सौभाग्यवती भव – भगवती सक्सेना : Moral Stories in Hindi

रवीना की जेठानी रमा का स्वर्गवास बीस दिन पहले हुआ था, और आज जेठ जी रात को ऐसे सोये कि सुबह उठे ही नहीं। उम्र भी पचहत्तर के करीब हो चली थी। शाम तक लोगो का आना जाना होता रहा, क्रिया कर्म के बाद जब रात को थक कर चूर हो बिस्तर पर पड़ी तो … Read more

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