शाम चार से छह बजे तक महेश जी दुकान बंद करते हैं। आज दुकान से आकर लंच करने के बाद वाशबेसिन में हाथ धो ही रहे थे कि कॉलबेल बजी। महेश ने तौलिए से हाथ पोंछ कर दरवाज़ा खोला तो भैया-भाभी थे।
“अरे, भैया-भाभी आप अचानक! आज इतने सालों बाद मेरी याद कैसे आ गई। हर्षातिरेक से महेश ने कहा। आप बैठिए। मैं बस अभी आया।”
कुछ देर बाद नीबू पानी और कुछ हलका- फुलका स्नैक्स लेकर महेश उपस्थित हुआ।
“इसकी क्या जरूरत थी छोटे। बेकार में परेशान हुआ। हम तो घर से लंच करके ही निकले थे। तुझसे कुछ ज़रूरी बात करनी थी, जल्दी में हूँ,” जितेश ने सोफे पर बैठते हुए कहा।
“अपनों के लिए कोई परेशानी नहीं होती भैया। बात जरूरत की नहीं खुशी की है। आप और भाभी पहली बार मेरे घर आए हैं। ऐसे कैसे जाने देता। फिर अपनी हालत देखी है आप दोनों ने, गरमी के कारण पसीने-पसीने हो रहे हैं।”
“मीनाक्षी नज़र नहीं आ रही।” नीबू पानी पीते हुए भाभी कंचन ने इधर-उधर देखते हुए कहा।
“वो तो भाभी ब्यूटी पार्लर गई है। आजकल उसका काम बहुत बढ़ गया है। अब उसने अपना ब्यूटी पार्लर खोल लिया है। मीनाक्षी ब्यूटी पार्लर। आपने नाम तो सुना ही होगा। बहुत मेहनती है मीनाक्षी। घर और बाहर को सँभालना आसान बात नहीं है। अभी बुलवा लेता हूँ। पता होता, आप आने वाले हैं तो घर पर रहती।” महेश ने कहा।
“वो तो दिख ही रहा है, कितना घर सँभालती है। वैसे भी उससे मैं मिलकर क्या करूँगी, जिसने दो कौड़ी के काम के लिए खानदान की इज्जत को नीलाम कर दिया। घर से बाहर निकलना दूभर हो गया है हमारा। सब पूछते हैं, सुना है तेरी देवरानी ब्यूटीशियन का काम करती है। ऐसी भी उसे क्या जरूरत है? सारी जगह थू-थू हो रही है।
उसकी तो छोड़ो, तेरी बेटी नीमा भी तो उसी के नक्शे कदम पर है। कोरियर कंपनी में काम करती है। कल देखा उसे राहुल ने। ” कंचन ने तल्खी से कहा।
“भाभी, आप कैसी बात कर रही हैं? अपना काम करने में कैसी शर्म। कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता। काम तो काम होता है। आप मेरी भाभी है उम्र में मुझसे बड़ी हैं, इसलिए लिहाज कर रहा हूँ नहीं तो••• ” महेश ने गुस्से से कहा।
“ठीक तो कह रही है कंचन और यह क्या तरीका है भाभी से बात करने का। उसने तो अपना समझकर अपनी सहेली का कितना अच्छा रिश्ता बताया था । पर तूने मना कर दिया। लाखों में खेल रहा होता। अब देखो, छोटी-सी किरयाने की दुकान ही तो है। लोग कितनी बातें बनाते हैं, बड़ा भाई ऑफिस में कितनी बड़े पद पर है और छोटा दुकानदार।”
भैया किस रिश्ते की बात कर रहें है जिसने झूठ के दम पर रिश्ता रिश्ता जोड़ना चाहा। अच्छा ही हुआ उससे शादी नहीं की, थोड़े से लालच में मेरी जिंदगी नरक बन जाती। कहना तो नहीं चाहिए, उसे पति नहीं जी हजूरी करने वाला नौकर चाहिए था जो उसकी इच्छाओं की पूर्ति अलादीन के चिराग की तरह करे।
और रही बात दुकान की, उससे अच्छा गुजारा हो जाता है। अब मेरा काम बहुत अच्छा चल पड़ा है। मीनाक्षी और नीमा काम अपनी मर्जी से करती हैं, किसी दबाव में नहीं।” “
“चलो जी। हम तो इन्हें अपना समझकर समझाने आए थे। ये तो हमें ही सुनाने लगें।” कंचन ने गुस्से से पति जितेश से कहा।
“अपना समझकर समझाने आए थे या हमारा अपमान करने। बहुत हो गया, भैया-भाभी। तब कहाँ थी इज्जत, जब मम्मी-पापा के जाने के बाद हमें बेघर किया था। तब कहाँ थी खानदान की इज्जत जब माता-पिता को मर्जी की दो रोटी के लिए तरसाते थे। वो तो मीनाक्षी न होती तो पता नहीं क्या होता। तब कहाँ थी इज्जत जब आपकी बेटी नशे में देर रात घर आती थी और बेटा पढ़ाई के नाम पर आपकी आँखों में धूल झोंक मटरगश्ती करता था। “
“महेश कुछ ज्यादा नहीं बोल रहा तू। संस्कार
भूल गया क्या!”
“मुझे सब याद है। दूसरों पर कीचड़ फेंकने से पहले यह भी देख लेना चाहिए कि कीचड़ के कुछ धब्बे खुद पर भी गिरते हैं भैया। माफ़ कीजिए अगर कोई बात बुरी लगी हो, हाथ जोड़ते हुए महेश ने भाई जितेश से कहा।
कंचन और जितेश बिना कुछ कहे लज्जित होकर उठ खड़े हुए। उनके मुख पर दंभ और झूठी शान का जो नकाब चढ़ा था, वह उतर चुका था। उसको महेश ने आईना जो दिखा दिया था।
सच ही कहा है, जिनके घर काँच के होते है, वे दूसरों पर पत्थर नहीं फेंका करते।
अर्चना कोहली ‘अर्चि’
मौलिक और स्वरचित रचना
#खानदान की इज्जत
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