वो मुझसे ज़्यादा मेरी भाभी की माँ है….. -रश्मि प्रकाश : Moral Stories in Hindi

इन दिनों कॉलोनी में एक नया परिवार बहुत चर्चा में रह रहा था…सभी इन्हें देख कर कहते इस उम्र में भी कोई बेटी अपनी माँ की इतनी सेवा कर सकती है बहुत कम देखने को मिलता है … कुछ दिनों पहले ही वो शिफ़्ट होकर आए थे और पूरे परिवार का ही मिलनसार स्वभाव था जिसकी वजह से वो सबसे हँसते मुस्कुराते बात कर लिया करते थे ।

एक दिन शाम के समय कॉलोनी की सारी महिलाएँ नीचे पार्क में बने बेंच पर बैठ कर गोष्ठी कर रही थी ….उसी समय सबने देखा कार से निकल कर वो बेटी अपनी माँ का गेट खोलते हुए कह रही है..

“ माँ ठीक से धीरे-धीरे मेरा हाथ पकड़कर चलिए ।” राशि ने सुनंदा जी से कहा

“ हाँ बेटा ।” सुनंदा जी ने कहा

तभी राशि ने नोटिस किया सभी महिलाओं की नज़रें उनकी ओर है उसने अभिवादन में सिर झुका दिया और सुनंदा जी का हाथ पकड़कर आगे बढ़ने लगी तभी एक महिला ने कहा,“ आप लोगों से बस आते जाते राम सलाम ही हुआ है ठीक तरह से परिचय नहीं हुआ है ।”

वहाँ उपस्थित सभी ने अपना नाम बताते हुए ये भी बता दिया कि वो कौन से फ़्लैट में रहती है ।

“ मेरा नाम राशि है … और ये मेरी माँ सुनंदा जी …इनकी तबियत थोड़ी ठीक नहीं रहती इसलिए डॉक्टर से मिलकर आ रहे हैं कभी फ़ुरसत में आप सब के साथ बैठ कर ज़रूर बातें करूँगी ।” कहते हुए राशि सुनंदा जी का हाथ पकड़कर चलने लगी

उनके जाने के बाद सभी महिलाएँ कानाफूसी करने लगी…..कोई तो यहाँ तक कहने लगी लगता है इनका कोई नहीं होगा तभी तो अपनी बेटी के घर पर रहती है ….

समय गुजरने लगा एक दिन राशि के साथ किसी और महिला को देख कर सबने उत्सुकता जाहिर करते हुए पूछ लिया,“ कोई मेहमान आया है राशि के घर ….भई हमसे भी …परिचय तो करवाओ।”

“ बिलकुल ये मेरी ननद है नीति… माँ की तबियत ठीक नहीं रहती तो देखने आई है ।” कहते हुए राशि ने नीति का परिचय करवा दिया

“ नीति तुम इनके साथ बातें करो मैं माँ की दवाइयाँ दे आऊँ ।” कहते हुए राशि नीति को महिलाओं की मंडली में छोड़ कर चली गई

“ तुम्हारी भाभी तो अपनी माँ का बहुत ख़्याल रखती है….लगता है उसकी माँ के घर में इसके सिवा और कोई नहीं है तभी इसकी माँ यहाँ रहती है…है ना?” कॉलोनी की एक महिला ने कहा

“ जी मैं समझी नहीं…. वो भाभी की माँ ही है पर सासु माँ है… मतलब हमारी और निकुंज भैया की माँ….हम दो बहनें है …. पर हम कहाँ अपनी माँ का ध्यान रख पाते हैं… वो तो भाभी ने सब कुछ सँभाल रखा है तभी हम माँ को लेकर बेफ़िक्र रहते हैं…. पर आपको ऐसा क्यों लगा कि वो राशि भाभी की ही माँ होगी ?” नीति आश्चर्य से पूछी

“ अरे आजकल कौन सी बहू सास का इतना ख़्याल रखती है बिलकुल माँ की तरह…. जब देखो राशि उनका हाथ पकड़कर चलती है… जहाँ जाती साथ लेकर जाती इतना तो हमने किसी को भी सास के लिए करते नहीं देखा…. हम ही नहीं कर पाते इतना तो …हमेशा कहा सुनी होती हमारे बीच… इसलिए राशि को देख यही लगा कि वो उसकी ही माँ होगी ।” एक महिला ने कहा

” नहीं आंटी जी ….किसी भी रिश्ते के लिए उसको प्यार से रखना और समझना ज़रूरी होता है…. हम दोनों बहनों को भी हमेशा यही लगता था हम ससुराल में इतने व्यस्त रहते हैं माँ को चलने फिरने में सहारे की ज़रूरत पड़ती है… भारी शरीर है तो सब काम कर भी नहीं पाती … हमें लगता था भाभी माँ को हमेशा ताना मारेंगी हम दोनों बहनें माँ को लेकर बहुत चिंतित रहा करते थे….पर माँ ने जैसे हम दोनों बहनों को प्यार दिया वही वो अपनी बहू पर लुटाती रही गलती होने पर झिड़क कर नहीं वरन प्यार से कहती… और दुलारते हुए कहती एकदम नीति की तरह करती हो… भाभी को भी इस तरह के व्यवहार में सास नहीं बल्कि माँ नजर आती….और बस अब तो ये स्थिति हो गई है कि माँ के पास हमारे लिए ही वक़्त नहीं होता…पहले जब देखो बहू के गुणगान करती रहती थी तो हम जल जाते थे …पर अब समझ गए हैं माँ ज़रूर वो हमारी है जिसने हमें जन्म दिया पर जो उसकी ज़िन्दगी के हर सुख दुख को समझ रही वो हमारी भाभी है….हमने भी दिल से भाभी को स्वीकार कर लिया तो रिश्ता मधुर होता गया….. ऐसा नहीं है कि हम दोनों में किसी बात पर बहस नहीं होती तब माँ होती हैं ना वो बीच में आकर कह देती बच्चों की माँ हो गई हो तुम दोनों पर खुद बच्चों की तरह बहस करती हो ….बच्चे क्या सीखेंगे तुम दोनों ये सोच लो… फिर क्या हम दोनों चुप हो जाते…. बस ऐसे ही चलता रहा अब तो बीस साल से उपर हो गए हमने माँ की चिंता छोड़ दी है क्योंकि उसके पास उसकी एक बेटी जो रहती है।” नीति ने कहा

 

 

सभी महिलाएँ एक दूसरे का मुँह देखने लगी ….

“ज़्यादा वक़्त हो गया मैं भी चलती हूँ ।” कहती हुई नीति घर चली गई

घर जाकर जब उसने ये सारी बातें माँ और राशि को बताई तो सब हँसने लगे…

“ तभी मैं सोचूँ वो महिलाएँ हमें इतना घूर घूर कर क्यों देखती थी… देख ले बहू मेरा प्यार…. लोग तेरी सास नहीं माँ समझते हैं मुझे ।” सुनंदा जी हँसते हुए बोली

“ हाँ माँ वैसे आप भी देख लो कोई बहू सास को नहीं करती इतना जितना मैं करती तभी तो सब आपको मेरी माँ समझ रहे थे ।” राशि भी ठहाका लगा दी

“ आप दोनों सास बहू चुप करो…बड़ा माँ बेटी सा प्यार दिखा रही हो और मैं कहाँ गई फिर?” नीति मुँह बनाते हुए बोली

” तुम्हारे लिए हम दोनों है ना।” कहते हुए राशि नीति को गले से लगा ली

दोस्तों आजकल हर जगह बस यही देखने सुनने को मिलता है कि सास माँ नहीं हो सकती ना बहू बेटी जैसी हो सकती हैं…. कही ना कही ये सच भी है… सास बहू के आपसी रिश्तों में कड़वाहट आने की बस एक ही वजह होती हैं दोनों का आधिपत्य उस इंसान पर होता जो पहले एक माँ का बेटा होता दूजे का पति पर जब एक माँ बेटे के साथ साथ बहू को भी उसी तरह स्वीकार कर ले जैसे अन्य बच्चों की माँ हो तो रिश्ता कुछ हद तक सुलझा हुआ रहता…. वैसे ही बहू को भी ससुराल में सास में एक माँ की छवि देख कर उसे समझ कर व्यवहार करें तो रिश्ता सुमधुर हो सकता है।

 

ये तो मेरे विचार है आपके विचार इस संबंध में क्या है ज़रूर बताएँ….रचना पसंद आए तो कृपया उसे लाइक करें कमेंट्स करें और मेरी अन्य रचनाएँ पढ़ने के लिए पेज को फ़ॉलो करें ।

धन्यवाद

रश्मि प्रकाश

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