बेटा श्रवन कुमार होना चाहिए लेकिन दामाद -सविता गोयल : Moral Stories in Hindi

” देखो बहुत साल गुजार दिए मैंने अपना मन मारते- मारते…. अब मुझे नहीं रहना इन सब के साथ…… आखिर मेरी भी कोई जिंदगी है या नहीं??  कब तक तुम्हारे मां बाप की सेवा करती रहूंगी ? ,,  आज अंकिता अपने पति उमेश के घर आते ही उसपर बरस पड़ी।

”  क्या बकवास कर रही हो अंकिता ? ये फितूर तुम्हारे दिमाग में किसने भर दिया। सोचना भी मत की मैं अपने परिवार को छोड़ दूंगा । ,,  उमेश अंकिता के इस व्यवहार से बहुत हतप्रभ था क्योंकि आज से पहले अंकिता ने कभी ऐसी बातें नहीं कही।

” क्यों ?? क्यों नहीं छोड़ सकते इन लोगों को!! मैं तुम्हारी पत्नी हूं और पति पत्नी का रिश्ता सब रिश्तों से ऊपर होता है …..  तुम्हें नहीं पता तो जाकर अपनी मां से पूछ लो …. ,, अंकिता तेज आवाज में बोली।

बहू बेटे के झगडे की तेज आवाज सुनकर कमला जी भी उनके कमरे तक आ गईं , ” क्या बवाल मचा रखा है आज घर में? आखिर बात क्या है जो तुम दोनों इस तरह लड़ रहे हो ? ,, कमला जी आंखें तरेरते हुए बोलीं।

कमला जी को देखकर अंकिता उनकी ओर आई और बोली, ” मां जी, अच्छा हुआ आप आ गईं ….  आप ही समझाओ अपने बेटे को, मेरी बात तो ये समझते ही नहीं …. मैं इनकी पत्नी हूं तो मेरी खुशी का ख्याल रखना इनका फर्ज है कि नहीं ?? कह दो इनसे कि चुपचाप मेरी बात मान लें और अलग घर ले लें । ,,

अंकिता की बात सुनकर कमला जी सकते में आ गई ,” ये क्या बकवास कर रही हो बहू , तुम्हारा दिमाग तो खराब नहीं हो गया है ?? क्यों मेरे बेटे को उल्टी पट्टी पढ़ा रही हो ….. अरे क्या इस दिन के लिए ही इसे पाल पोस कर बड़ा किया था कि बुढ़ापे में ये हमें छोड़कर बीवी का पल्लू पकड़कर चला जाए !! क्या कमी है तुझे इस घर में??  ,,

” मां जी, मुझे पांच साल हो गए आप लोगों के साथ रहते रहते …. ना अपनी मर्जी से कहीं आ जा सकती हूं ना अपनी मर्जी के कपड़े पहन सकती हूं … जितना भी कर लो कभी किसी के मुंह से तारीफ़ के दो बोल नहीं निकलते …. मेरा भी मन करता है अपनी मर्जी से जीने का ….  क्यों रहूं मैं इस घर में  …. आप सबका काम करने के लिए और सेवा करने के लिए  ??  और आपको आज क्या हो गया !! कल आप ही तो ननदोई जी को ये सब समझा रही थीं फिर अपने बेटे को क्यों नहीं समझातीं?? ,,   ,,

अंकिता की बात सुनकर कमला जी की आंखों के आगे कल का दृश्य घूमने लगा  ….. कमला जी की बेटी मनोरमा की

शादी को साल भर ही हुआ था । आए दिन वो ससुराल में झगड़ा करके अपने मायके आकर बैठ जाती थी। इस बार कमला जी ने अपने दामाद को घर बुलाकर अच्छी झाड़ लगाई  ,

”  देखिए दामाद बाबू…. मेरी बेटी को मैंने बहुत लाड से पाला है।  इसके बोलते के साथ इसकी सर फरमाइश पूरी की है । इसे हमने ऊंची शिक्षा इसलिए नहीं दिलाई की ससुराल में जाकर ये झाड़ू बर्तन करे या आपके मां- बाप के नखरे उठाए ….. अरे हमने आपके साथ इसकी शादी की है तो इसे खुश रखना आपकी जिम्मेदारी है  ….. मेरी बेटी अब तभी आपके साथ जाएगी जब आप अलग घर लेकर रहेंगे ताकि मेरी बेटी चैन से जी पाए …. याद रखिए सारे रिश्ते पीछे छूट जाते हैं लेकिन पति पत्नी का रिश्ता ही उम्र भर साथ रहता है ….. आपको अपने बीवी बच्चों और भविष्य के बारे में सोचना चाहिए  ना कि दुनियादारी के बारे में …  हमने तो आपकी अच्छी नौकरी , अच्छी तनख्वाह देखकर मनोरमा का हाथ सौंपा था ना कि आपका परिवार देखकर।  ,,

दामाद बाबू असहाय से अपनी सास की बातें सुन रहे थे। वो दोराहे पर खड़े थे कि क्या करें !!  यदि अपना सास की बात मानें तो अपने परिवार का साथ छोड़ना पड़ेगा और ना मानें तो अपनी शादीशुदा जिंदगी दाव पर लगा देंगे !! दुविधा में थे कि कैसे अपने मां बाप को इस उम्र में अकेला छोड़ दें!!!

कमला जी कल की बातें याद ही कर रही थीं कि अंकिता फिर जोर से बोली, ” मां जी क्या हुआ आप कुछ बोलती क्यों नहीं, जो बात ननदोई जी को समझा रही थीं अपने बेटे को क्यों नहीं समझातीं ??  ,, 

अब उमेश को अंकिता के अचानक से बदले हुए व्यवहार का कुछ कुछ अंदाजा हो रहा था । इतने में अंकिता ने अपनी सास से नजरें चुराकर अंकिता ने उमेश की तरफ आंख मारी। अब तो उमेश को अंकिता के सारे नाटक की वजह समझ में आ गई कि वो आज ऐसा अलग व्यवहार क्यों कर रही है  लेकिन वो अनजान बनते हुए बोला,

” तब तो अंकिता सही कह रही है मां  …. मैं भी थक गया हूं सारे परिवार का बोझ उठाते – उठाते। तनख्वाह कब आती है और कब खर्च हो जाती है पता ही नहीं चलता…   अलग से रहूंगा तो कुछ बचत भी होगी आखिर मुझे भी अपने भविष्य के बारे में सोचना चाहिए।  ,,

” बस कर बेटा,  बस कर, तूं तो मेरा श्रवण कुमार है ….  आज से पहले कभी तूने हमसे ऊंची आवाज में बात भी नहीं की और आज ये सब बोल रहा है ….. मेरा तो कलेजा ही बाहर निकल जाएगा तेरे जाने के नाम से ……  वो तो मैं तेरी बहन की खुशी के लिए दामाद बाबू को समझा रही थी  ….. ,,  कमला जी अधीर होते हुए बोली।

” मां , अब तो आप बेटा और बेटी में भेदभाव कर रही हैं ….. मां के लिए तो उसके सभी बच्चे बराबर होने चाहिए ना….  आपको बेटी का सुख दिखता है तो मेरा सुख क्यों नहीं दिखाई देता !!  जब जीजा जी के मां बाप अकेले रह सकते हैं तो आप लोग क्यों नहीं रह सकते ?? मुझे भी तो अपने बारे में कुछ सोचना चाहिए।  ,, उमेश संजीदा स्वर में बोला।

” नहीं नहीं बेटा, ऐसा मत बोल, इस उम्र में तूं अपनी मां को छोड़कर कैसे जा सकता है … तेरे बिना मैं किसके सहारे जीऊंगी ??  मेरी ही मति मारी गई थी कि मैं अपनी बेटी को समझाने की बजाय दामाद बाबू को उल्टी पट्टी पढ़ा रही थी।  मैं समझाऊंगी मनोरमा को और दामाद बाबू से माफी भी मांग लूंगी लेकिन तूं कहीं जाने की बात मत करना बेटा … ,, कमला जी का कलेजा बेटा बहू के जाने के नाम से ही मुंह को आ गया था। वो बिल्कुल बौखला गई थीं।

कमला जी की आंखों में पश्चाताप के आंसू थे। मां की ऐसी हालत उमेश और अंकिता से देखी नहीं गई। अंकिता अपनी सास का हाथ पकड़ कर बोली, ” मां जी हम कहीं नहीं जाएंगे… मां बाप के बिना भी कोई घर घर होता है क्या  ? मैं तो बस आपको समझाना चाहती थी कि आप जो कर रही हैं वो ग़लत है…  ननदोई जी सिर्फ दीदी के लिए अपने पूरे परिवार को कैसे छोड़ दें जबकी उनकी कोई गलती भी नहीं है। ऐसा तो नहीं है कि दीदी के ससुराल वाले उनपर कोई अत्याचार करते हैं …… अपनी चंद आजादी के लिए परिवार की जिम्मेदारियों से आजाद होना तो कोई हल नहीं है ना ….. जिस तरह आपको अपना बेटा प्यारा है ननदोई जी भी तो किसी के बेटे हैं ….   आखिर उनके माता-पिता किसके सहारे अपनी जिंदगी काटेंगे?? परिवार से ही तो घर बनता है ना मां …  ,, 

” तूं ठीक बोल रही है बहू , एक मां होकर भी दूसरी मां का दुख नहीं समझ पा रही थी… अलग घर परिवार में थोड़ा सामंजस्य तो सब लड़कियों को बैठाना पड़ता है।  मैं मनोरमा को समझाऊंगी….. बस तुमलोग आज के बाद कहीं जाने की बात मत करना ।,,

दरवाजे पर खड़ी मनोरमा भी उनकी बातें सुनकर मन ही मन सोच रही थी कि गलती उसकी ही है ……  यदि आज उसकी भाभी भी उसकी तरह सिर्फ अपना स्वार्थ और सुख देखती तो उसके मायके की क्या हालत होती ???  मन ही मन वो निर्णय कर रही थी कि वो भी एक अच्छी बहू और अच्छी पत्नी बनकर दिखाएगी …… परिवार के प्रति अपना फर्ज निभाने में अपने पति का साथ देगी ना कि उसकी राह का रोड़ा बनेगी ……

  दोस्तों, मां बाप के लिए अपने बच्चों से अलग रहना आसान नहीं होता, एक तरह से देखो तो इंसान धरती का सबसे स्वार्थी जीव है क्योंकि वो एक आस लेकर अपने बच्चों को पालता पोषता है कि जब उसे जरूरत पड़ेगी तो उसके बच्चे उनका सहारा बनेंगे …..  ये उम्मीद ही माता पिता के जीने का सहारा होती है लेकिन यदि ये उम्मीद टूट जाए तो इंसान खुद भी टूट जाता है …… आपको ये कहानी कैसी लगी कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं ….. प्रतिक्रिया के इन्तजार में आपकी सखी

सविता गोयल 🙏

1 thought on “बेटा श्रवन कुमार होना चाहिए लेकिन दामाद -सविता गोयल : Moral Stories in Hindi”

  1. अच्छी सीख।
    ऐसी कहानियां ही समाज सुधार करती हैं

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