अम्माजी -डॉक्टर संगीता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

“मिला कोई किराए का मकान आज?”स्वाति ने पूछा तो ऋषभ का मुंह उतर गया,निराशा से बोला,

“नहीं!आज भी नहीं।जहां मकान समझ आता है वहां किराया ज्यादा है और जहां किराया कम है वहां जगह

समझ नहीं आती,हमें समझ आ भी जाए तो अम्मा जी का क्या करूं?वो नाक में दम कर देंगी।देखा नहीं कैसे

पिछले मकान में परेशान कर दिया था।”

“कैसे भूल सकती हूं?” लम्बी सांस भरते

स्वाति बोली,”इन्हें तो अपना कमरा बड़ा भी और हवादार भी चाहिए,आगे पीछे खुला चौक भी जरूर हो,अब

ससुरजी तो रहे नहीं,उनकी तरह के अफसर तो नहीं तुम जो वो ठाठ बाट हों,लेकिन अम्माजी को कौन

समझाए?”

वो तो बस,अम्माजी को पेंशन मिलती है और समझती हैं कि मेरे आराम में कोई कमी न रहे,हम भी तो अपने

दो दो बच्चों के साथ चार लोग एक छोटे से कमरे में निर्वाह कर ही लेते हैं पर अम्माजी का दिमाग तो काबू ही

नहीं है। ऋषभ परेशान होता बोला…

फिर भी देखता हूं,कल फिर देखूंगा एक घर मानसरोवर में,शायद कुछ बात बन जाए,सुकेश ने बताया है अपने

पड़ोस में एक मकान।

“मानसरोवर तो बहुत बड़ी सोसाइटी है,वहां तो किराया बहुत ज्यादा होगा?”स्वाति ने आशंका जताई।

“तो कह देंगे अम्मा से,कुछ अपनी सेविंग्स ढीली करो,बड़े मकान में रहना है तो?”ऋषभ हंसा।

“वो तो संभव नहीं फिर..”स्वाति भी खिसियानी हंसी हंसते बोली।

चलो!देखते हैं कल क्या होगा?

अगले दिन ऋषभ बहुत खुश था,उसे मानसरोवर में मकान मिल गया था,भले ही दूसरे माले पर था वो लेकिन

किराया भी ज्यादा नहीं था,दरअसल वो मकान किसी वृद्ध दंपत्ति का था जो नीचे के फ्लोर पर अकेले रहते

 

थे,जब उन्हें छोटे छोटे बच्चों के बारे में पता चला वो बहुत खुश हो गए और उन्होंने ऋषभ को मनचाहे किराए

पर मकान दे दिया,उन्हें खुशी थी कि उनके सूने मकान में बच्चों की किलकारियां तो गूंजेंगी।

स्वाति भी खुश थी,चलो!इसी बहाने हमारी अम्माजी को भी कोई साथी,सहेली मिल जाएंगी,जो सारा दिन मेरे

पीछे ही लगी रहती हैं,कुछ समय तो मकान मालकिन के साथ कटेगा उनका।

अगले महीने की पहली तारीख को वो लोग मकान में शिफ्ट हो गए।जैसा की तय था,स्वाति की सास सुमेधा

जी ने उस मकान का सबसे बड़ा और हवादार कमरा हथिया लिया था,साथ लगे दूसरे कमरे में स्वाति और

ऋषभ ने अपना डबल बेड और अलमारी रख ली थी।

सब सामान सेट हो गया तो उनकी मकान मालकिन,उनसे मिलने आई।

“देखूं जरा!कैसा मकान सजाया है?”वो हंसते हुए बोलीं।

उन्हें आश्चर्य था कि स्वाति की बूढ़ी सास ने इतना बड़ा कमरा लिया था खुद जिसमे उनका कुछ ही सामान था,

सवालिया निगाह से उन्होंने स्वाति को देखा पर उसने आंख झुका लीं,”इनका व्यक्तिगत मामला है”सोच कर

वो चुप गई।

थोड़ी देर बाद वो फिर आई,इस बार उनके हाथ में बड़ा कटोरा था उसमें वो सूजी का हलवा बना कर लाई थीं।

अरे अम्माजी!आपने क्यों तकलीफ की?स्वाति उनसे वो हलवा लेते हुए झिझक रही थी।

“तेरे बच्चों के लिए बना कर लाई हूं मै”,वो प्यार और अधिकार से बोली और दोनो बच्चे उनकी गोद में आकर

बैठ गए।

बड़ा किट्टू और छोटी रेशू बड़े प्यार से उनके हाथ से हलवा खा रहे थे और वो मस्त थीं उन्हें कहानी सुनाने में

और लाड़ दुलार करने में।

स्वाति सोच रही थी,”ये भी तो मेरी सास की उम्र की ही हैं,कितना काम करती है ये,कहने को इतनी बड़ी कोठी

की मालकिन भी हैं पर घमंड नहीं उन्हें बिलकुल…पता नहीं इनके बच्चे कितने और कहां हैं?”

 

सुमेधा जी को भी उनका व्यवहार अटपटा लग रहा था,अगर ये मकान मालकिन ज्यादा यहां आई तो मेरे घर

में मेरी वैल्यू कम करवा देगी,इसका आना जाना कम करवाती हूं,सोचकर वो बोली…

“बहिन जी!आपके बच्चे कितने हैं,वो कहां रहते हैं?”

बच्चों के नाम से शकुंतला जी चौंकी,सांस भरते बोली,”सब बड़ी पोस्ट्स पर हैं,दूर दूर नौकरी है,तीन लड़के,दो

लड़कियां,अपने घर के खुश हैं सब।”

“आप उनके साथ नहीं रहतीं?”सुमेधा ने सोचा पूंछ ही लूं।

बहुत पीछे पड़ते हैं मेरे वो लोग,शकुंतला जी हंसी थीं पर हम दोनो का मन तो यहीं लगता है,भले ही अब इनका

स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता,मुझे बहुत देखभाल करनी होती है पर मुझे ये सब करना अच्छा लगता है।

“लेकिन अम्माजी!” स्वाति बोली,”आपकी उम्र भी तो काफी ज्यादा है,आपके अब आराम करने के दिन

हैं,इतना काम कर क्यों थकती हैं?”

“न बेटा!जिस दिन बैठ गई,समझ लेना वो आखिरी दिन होगा…मै तो चाहती हूं जब तक जिएं,काम करते

जिएं,हाथ पैर चलेंगे तो जीवन अच्छा कटेगा नहीं तो सब बेकार!”

कुछ ही समय में स्वाति को पता चला कि शकुंतला जी तो “जगत अम्माजी “थीं,किसी के पड़ोस में बछिया हुई

तो शकुंतला अम्माजी उस गाय की सेवा में जुट जाती,कहीं किसी गरीब कन्याओं की शादी करवाती तो कभी

गरीब बच्चों को किताब,फल,मिठाई बांट रही होती।

“अम्माजी!कैसे कर लेती हो आप इतना

कुछ?”स्वाति उनसे आश्चर्य से पूछती और वो अपने पोपले मुंह से मुस्करा देती।

बेटा!अब तो बहुत सुविधाएं हो गई हैं, हमने तो बहुत कठिन समय देखा है,चूल्हे पर मुंह अंधेरे उठ कर काम

करते थे फिर सबके सो जाने पर ही सोते।वो कहती और स्वाति का मन उनके लिए श्रद्धा से भर जाता।

“आपका मन नहीं करता अपने बच्चों के पास जाने का?”एक दिन स्वाति ने उनसे पूछ लिया।

 

पलभर को वो चौंकी फिर बोली,बात ये है स्वाति,मेरे तीनों बेटे बहुत अच्छे हैं,बहुएं भी उनका कहना सुनती हैं

पर उन लोगों के जीवन स्तर और हमारे यहां के जीवन में बहुत फर्क आ गया है,आजकल देर रात सोना और

देर से उठना फैशन बन गया है।मेरा मानना है कि जब तक शरीर साथ दे रहा है,यहीं रहूं,तेरे अंकल जी भी यही

चाहते हैं,जब कभी कुछ हो जायेगा,नहीं कर पाएंगे अकेले तो एक आवाज पर सब आ जायेंगे,जानती हूं।

तब भी मन तो करता होगा?स्वाति बच्चों सी जिद करती बोली।

सब मन की पूरी हो जाए,ये जरूरी तो नहीं बेटा! अब तेरी सास को ही देख ले,इतना अच्छा बेटा बहू हैं,प्यारे

बच्चे हैं पर वो शिकायत ही करती रहती हैं,खुश तो वो भी नहीं।मुझे लगता है भगवान इसी तरह संतुलन बनाए

रखते हैं संसार में,वो खिलखिला कर हंस पड़ी।

पर स्वाति की निगाह से उनकी आंखों के आंसू छिपे नहीं थे जो बरबस बहे निकले थे।

लेकिन फिर सही क्या और कौन है अम्माजी?स्वाति ने उनसे पूछा।

सब सही हैं,कोई गलत नहीं बेटा!शायद मेरे बच्चे मुझे वैसे पूछते होते जैसे तुम लोग करते हो तो मेरा दिमाग

चढ़ा रहता तुम्हारी सास की तरह,अच्छा ही है ना जो ऐसा नहीं है।वो बोली।

“यानि,आपके कहने के अनुसार,एक न एक को ज्यादती करनी ही है,चाहे बच्चे हों या बुजुर्ग?”

नहीं!वो मतलब नहीं था मेरा,कायदे में तो जहां बच्चों को अपने बड़ों का सम्मान करना चाहिए तो बड़ों को भी

बच्चों को स्पेस देना चाहिए।पूर्णता कहीं नहीं होती,आज मै बूढ़ी हुई हूं,कल को तुम भी होगी,सबको ये बात

याद रहे तो कोई समस्या नहीं होगी।शकुंतला जी बोली।

सुमेधा जी भी वहां आ गई थीं,उन्होंने उनकी बातें भी सुन ली थीं,उन्हें पहली बार अपनी गलती समझ आई।

“वाकई में,मेरे बहू बेटे अच्छे और सीधे हैं पर मै उनसे कितना बुरा व्यवहार करती हूं और एक बेचारी ये हैं,इतनी

बड़ी संपत्ति की मालकिन पर बच्चे इनके पास फटकते भी नहीं पर मजाल है ये अपने बच्चों के लिए कुछ बोल

दें या सुन लें?”

 

स्वाति खुश थी अपनी सास में आए सकारात्मक परिवर्तन से,उन्होंने एक बार ऋषभ से कहा,”बेटा!तुम्हें छोटे

कमरे में दिक्कत आती होगी,ऐसा करो,तुम इधर बड़े कमरे में अपना पलंग डाल लो, डबल बेड के साथ,बच्चे

बड़े हो रहे हैं अब।”

ऋषभ ने स्वाति को देखा,”ये चमत्कार कैसे?”

वो मुस्कराई…”अम्माजी जी…मकान मालकिन…”

दोनो हंस पड़े थे।

दोस्तों!मेरी कहानी हकीकत पर आधारित है,बुढ़ापा सचमुच उपहार बन सकता है अगर उसे बिना किसी

पूर्वाग्रह के जिया जाए,अगर आपने अपने बच्चों की परवरिश ठीक से की है तो निश्चिंत रहिए वो आपका

ख्याल रखेंगे लेकिन अगर वो ख्याल रख रहे हैं तो आप भी उन्हें परेशान न कीजिए।आपका बढ़ाया हुआ

दोस्ती का हाथ और सहयोग उन्हें आपसे प्यार करने को मजबूर कर देगा।

डॉक्टर संगीता अग्रवाल

वैशाली,गाजियाबाद

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