‘जब अपने पर आन पड़ी !’ – प्रियंका सक्सेना : Moral stories in hindi

नलिनी ने हाउस मेड कांता से कहा, “कांता, मांजी को खाना-पीना कमरे में ही दे देना।” 

“जी मेमसाहब।” कांता ने रोजाना की तरह खाना बनाया

एक बजे तक पिंकी और पिंटू भी स्कूल से आ गए। दोनों के कपड़े बदलकर हाथ- पांव धुलाकर डायनिंग टेबल पर खाना लगाकर सबको बुलाया।

“अरे आंटी! आप दादी को बुलाकर नहीं लाई। ठहरो, मैं बुला लाता हूँ।”  पिंटू ने बड़े भाई होने का फर्ज़ निभाते हुए कहा।

पिंकी बोली ,” मैं भी चलती हूँ भैय्या, दादी को लेकर आते हैं। ” 

” कोई कहीं नहीं जाएगा। दादी को खाना उनके रूम में दे  दिया है, वहीं खा रहीं हैं वो। तुम लोग चुपचाप अपना लंच करो।”  नलिनी  ने कहा

“दादी की तबीयत ठीक नहीं है मम्मी क्या?” दोनों बच्चे एकसाथ बोले

“हां थोड़ी तबीयत ठीक नहीं है, खाँसी हो गई है उनको ।  तुम लोग दूर रहना उनसे कहीं तुम्हें भी ना लग जाए उनसे।”  नलिनी  ने कहा तो बच्चों ने सिर हिला कर हां कहा

बच्चे तो बच्चे होते हैं थोड़ी देर में दादी के रूम में कूदते-फाँदते पहुंच गए। दादी सो रहीं थीं तो वापस आ गए।

 नलिनी  ने देख लिया तो फिर मना किया। खैर शाम को रजत  के ऑफिस से आते ही मांजी को डाॅक्टर के पास भेजकर दवा मंगा ली।

दवा से मांजी को थोड़ा आराम आया, लेकिन  नलिनी  ने मांजी की खाँसी  ठीक ना होने तक बच्चों को उनके पास बैठने तक पर रोक लगा दी।

बच्चों ने कहा,” दादी के साथ खेलना और उनसे कहानियाँ सुनना हमें पसंद है। प्लीज़ , जाने दो ना मम्मी , बस थोड़ी देर में आ जायेंगे हम लोग।”

नलिनी  ने कहा,” क्या मेरी पसंद , मेरी पसंद लगा रखी है! जो कहा जा रहा है वो करो । मेरी पसंद चलेगी तुम्हारे भले के लिए कह रही हूँ, माँ हूँ तुम्हारी!”

रजत  ने कुछ कहना चाहा तो उसे यह कहकर रोक दिया कि पहले इनकी खाँसी पूरी तरह सही होने दो तभी बच्चों को इनके पास भेजूंगी‌। इस समय फरवरी के महीने में जाती हुई ठंड में इनको खाँसी हो रही है, कहीं टीबी हुआ ?हर समय खाँसती रहती हैं ये।”

यह सब बोलकर मांजी के खाने-पीने के बर्तन तक अलग कर डाले। रजत  घर की सुख शांति के लिए चुप रहा परंतु अपनी मम्मी का टी बी का टेस्ट करवाया और सभी टेस्ट करवाने के बाद जो नतीजा सामने आया वो ये था कि मांजी को इस मौसम में वातावरण में परागकणो के बढ़ने के कारण खांसी आ रही थी जो एंटी एलर्जिक दवाइयों को देने पर धीरे धीरे कम होने लगी।

मम्मी की तबीयत सही होते देख रजत ने नलिनी  को समझाया,”मम्मी बिल्कुल ठीक हैं। मौसमी एलर्जी की वजह से खांसी हुई थी जो कम हो रही है।अब तो उन्हें सबके साथ उठने बैठने दो और एक से बर्तनों में हमारे साथ खाना खिलाना शुरु कर दो। खांसी ज़ुकाम तो किसी को भी हो सकता है और अब तो माँ की खांसी का असल कारण भी पता चल गया है। बच्चों को भी दादी के साथ खेलने दो , माँ का मन करता है सबके साथ उठने बैठने का और बच्चों में उनकी जान बसती है।”

“तुम्हें बस अपनी मम्मी की पड़ी है। बच्चे तुम्हारे भी हैं, कुछ सोचकर ही किया है। बर्तन अलग ही रहने दो इनके अभी तो।” कहकर चुप करा दिया नलिनी  ने रजत को

धीरे धीरे मार्च का महीना बीतने लगा। मांजी को नाममात्र की खांसी रह गई थी परंतु बच्चों को मिलने की मनाही थी और खाना भी उनको उनके रूम में ही दिया जाता है।

इधर नलिनी की मम्मी अप्रैल के शुरुआत में  नलिनी  के घर रहने के लिए आने वाली हैं।  नलिनी ने अपनी मम्मी के स्वागत की ढेरों तैयारियां शुरू कर दी। जिस दिन वो आने वाली हैं, घर में उठती सुगंधित खाद्य सामग्री की खुशबू से रास्ता चलते राहगीरों के नथुने फड़कने लगे।

ऐन शाम को जब उनकी फ्लाइट लैंड करी तब ही घनघोर घटा घिर आई और जमकर बारिश होने लगी। कैब से निकलते निकलते घर के अंदर पहुंची तब तक ताबड़तोड़ बरसात की लहर से भीग गईं दमयंती जी। खैर जल्दी से मम्मी को ड्राइंग रूम में बिठा कर  नलिनी  ने तौलिया दिया, सिर पोंछते पोंछते दमयंती   जी को एक बार तो छींकों की झड़ी सी लग गई, छींक रुकी तो दमयंती जी को हल्की खांसी आने लगी।

सुबह से पिंकी और पिंटू जो नानी के आने पर बहुत खुश थे  वो नानी को इस हालत में देखकर परेशान हो गए।

दमयंती जी को वहीं छोड़कर किचन की ओर गए, देखा उनकी मम्मी अदरक वाली बढ़िया गरमागरम चाय बना चुकी हैं और कप में छानने वाली हैं।

“मम्मी, एक मिनट रुको, इस कप में चाय मत छानो। प्लेट भी दूसरी लो मम्मी।” पिंटू   बोला

“क्यों क्या हुआ बेटा? गंदा है क्या ये कप-प्लेट?  नलिनी  ने पूछा

” मम्मी, नानी को इस कप में नहीं उस कप में चाय दो। ” उंगली से इशारा करते हुए पिंकी बोली

पिंकी  की नजर का पीछा करती  नलिनी  की नजर कप पर पहुंची। नलिनी क्या देखती है कि मम्मी जी के नीचे की तरफ रखें बर्तनों की ओर पिंकी  ने इशारा किया है।

“पर इन बर्तनों में क्यों?”

“दादी को भी तो खांसी में कब से आप इन्हीं बर्तनों में खिला पिला रही हो। नानी को भी खांसी जुकाम है तो उनके बर्तन अलग कर दो।” पिंटू   बोला

“हां, भैया हम नानी के पास जाएंगे भी  नहीं। उनके रूम में बिल्कुल नहीं जाएंगे।” पिंकी   बोली

“अरे नहीं नहीं बच्चों! नानी को बारिश में भीगने की वजह से खांसी-जुकाम हो गया है और कुछ नहीं!”  नलिनी  ने बच्चों को समझाने की भरपूर कोशिश की पर बच्चों ने यह कहकर सिरे से उसकी बात खारिज कर दी कि दादी को भी मौसम की वजह से खांसी हुई थी तो आपने उनके बर्तन अलग कर दिए थे तो नानी को क्यों नहीं?

बच्चों की बात सुनकर  नलिनी  को अपनी इतने दिनों की करनी आँखों के आगे घूमती नजर आई।

अब आज‌ जब अपनी मम्मी पर‌ आन पड़ी तो  नलिनी अपने बनाए झूठे जाल में तड़प रही है, कसमसा रही है। कैसे कहे कि बच्चों को दादी से दूर रखने  और अपना स्वामित्व दिखने के लिए ये सब किया उसने। 

सच ही कहा गया है ,जाके पाँव ना फटे बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई! 

फिलहाल बच्चों ने मम्मी को आइना दिखा दिया…

नलिनी  की मम्मी को‌ जब सारी बातें पता चलीं तो  नलिनी  को कसकर डांट लगाई उन्होंने। अपनी समधन‌जी से माफी मांगी उन्होंने  नलिनी  से भी माफी मंगवाई।

जितने दिन दमयंती जी वहां रही समधनजी ‌के साथ ही रहीं दमयंती जी और हां, नानी का जुकाम ठीक हुआ फिर तो बच्चों ने दादी-नानी दोनों के साथ खूब मस्ती की। अब बेरोकटोक दादी के रूम में फिर से बच्चे महफ़िल जमाने लगे हैं…

लेखिका की कलम से

दोस्तों, आशा है आप भी इस बात से सहमत (इत्तेफाक रखते) होंगे कि जब तक स्वयं पर नहीं आन पड़ती तब तक अक्सर अपना किया बुरा या गलत समझ में नहीं आता। कहानी में नलिनी को जब बच्चों के द्वारा जैसे को तैसा पलटकर दिया गया तब ही उसका दिमाग ठिकाने आया और अपनी करनी पर शायद थोड़ा बहुत पछतावा हुआ। 

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धन्यवाद।

प्रियंका सक्सेना

( मौलिक व स्वरचित)

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