निर्भीक निर्णय! – प्रियंका सक्सेना  : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : सुधा ऑफिस से देर से लौटी और माॅ॑ को देखकर एक फीकी मुस्कान देकर अपने कमरे की ओर बढ़ गई।

“क्या बात है, परेशान लग रही हो सुधा?” पीछे से माँ ने बेटी का उतरा मुँह देखकर प्रश्न किया

“कुछ खास नहीं माँ।  वर्क प्रेशर है, मार्च का महीना है तो ईयर एंडिंग के कारण  वर्क लोड बढ़  जाता है।” सुधा पलटकर बोली

माँ ऐसी ही होती हैं, बच्चा परेशान हुआ नहीं कि उन्हें सबसे पहले पता चल जाता है। थोड़ी देर बाद माँ चाय-बिस्कुट लेकर सुधा के रूम में पहुंची। 

सुधा बिना कपडे बदले अपनी टेबल चेयर पर बैठी हुई थी, अपने ख्यालों में इस कदर गुम थी कि माँ का आना उसे पता ही नहीं चला।

माँ ने चाय टेबल पर रख उसका माथा प्यार से  सहलाते हुए पूछा,”क्या बात है, बेटी? मुझे बताओ, शायद कुछ मदद कर पाऊँ।”

सुधा दो मिनट में हाथ-मुँह धोकर कपडे बदलकर आ गयी।

चाय का घूंट भरते हुए बोली,”माँ, परेशानी ये है कि एक  प्रोजेक्ट के लिए मैं महीने भर से लगकर काम कर रही थी।कल  ही मैंने वो पूरा किया और कल रात भर जागकर उसका प्रेजेंटेशन बनाया था।”

“हाँ बेटी, मुझे पता है। उसके लिए तुमने दिन-रात एक कर दिए।”

“माँ, बॉस चाहते हैं कि क्लाइंट के सामने उसे उनका चहेता विकास प्रस्तुत करे।”

“ऐसे-कैसे ! क्यों भला?”

“माँ, कल कंपनी के बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स और क्लाइंट के सामने प्रेजेंटेशन करना है।  बॉस का ये सोचना है कि विकास जो मेरे साथ मेरे ही समकक्ष पद पर कार्य करता है वो मेरा किया गया काम बेहतर प्रस्तुत कर पायेगा , पार्शियलिटी( पक्षपात) कर रहे हैं क्योंकि इस का सम्बन्ध प्रमोशन से भी है। क्लाइंट को पसंद आया तो मैनेजमेंट प्रमोशन दे सकती है।

बाॅस कहते हैं कि तुम लड़की हो तुम कल को शादी करके चली जाओगी। विकास तो यहीं रहेगा, उसे प्रमोशन की ज्यादा ज़रूरत है।

 ये क्या बात हुई माॅ॑! ऐसे  तो मेरे अस्तित्व को ही मिटा देंगे । मैं कभी अपनी वास्तविक पहचान नहीं बना पाऊंगी क्योंकि मेरे किए काम का फल‌ तो किसी और को थाली में परोस कर दे दिया जाएगा, माॅ॑…” कहते-कहते सुधा की आक्रोशित आवाज़ क्रोध से और क्षोभ से भर्रा उठी

“यह तो बहुत ख़राब बात है! इस के खिलाफ़ तुम्हें आवाज़ उठानी ही होगी। सरकार के नियमों के अनुसार हर कंपनी में महिला शिकायत सेल होता है जिसमें वह अपने कार्यक्षेत्र (वर्कप्लेस) पर हुए गलत बर्ताव के बारे में अपनी कम्प्लेंट दर्ज़ करा सकती है। तुम इस तरह अपनी पहचान नहीं मिटाने दे सकती हों! किसी को भी इस प्रकार अन्याय करने का हक नहीं है, समझी बेटी!”

“लेकिन माँ, बॉस नाराज़ हो जायेंगे।”

“वो तो वैसे भी तुमसे सही बर्ताव नहीं कर रहे हैं। तुम्हारे कार्य का क्रेडिट किसी और को दिलवाना चाहते हैं। तुम्हें बिना डरे बुलंद आवाज़ मे अपनी शिकायत दर्ज करवानी होगी। निडर होकर जाओ। ध्यान रखो सुधा, एक निर्भीक निर्णय से सही पल में लिए फैसले से तुम अपने ऊपर आ रहे अन्याय को सबके सामने उजागर कर सकती हों और मेरा मानना है कि तुम बाॅस के अव्यवसायिक व्यवहार को सबके समक्ष लाओ, मैं तुम्हारे साथ हूॅं।”

माॅ॑ से और भी बातें हुईं सुधा की और फिर वह कुछ निश्चय कर रात्रि के भोजन के बाद निश्चिंतता से सो गई।

अगले दिन ऑफिस जाकर सर्वप्रथम सुधा ने अपनी कम्पलेंट (शिकायत ) लिखवाई। ऑफिसर ऑन ड्यूटी ने सुधा से आज की मीटिंग को अटेंड करने के लिए कहा। जैसे ही प्रेजेंटेशन देने का समय आया, बॉस ने विकास को इशारा किया। बॉस ने सबके सामने विकास का परिचय देते हुए कहा कि विकास ने प्रोजेक्ट पर हफ़्तों मेहनत कर पूरा किया है।

वो पल सुधा के लिए निर्णायक पल था, आज नहीं तो फिर कभी नहीं। आज यूं अपने काम को छीनने दिया, खैरात में विकास को दे दिया तो ये हमेशा की परिपाटी बन जाएगी और सुधा की काबिलियत, उसकी योग्यता की ऐसे ही धज्जियां उड़ाई जाती रहेंगी, उसकी पहचान बनाने से रोका जाएगा किसी ना किसी तरीके से… निर्भीकता से निर्णय लेने का वक्त आ पहुॅ॑चा है!

विकास प्रोजेक्ट कार्य प्रस्तुत करने उठा, तभी सुधा ने अपनी चेयर से खड़े होकर सबका अभिवादन कर कहा कि प्रोजेक्ट पर उसने कार्य किया है। बॉस को ये आशा नहीं थी कि सुधा ऐसा कुछ करेगी तो वह सकपका कर बोले कि थोड़ी डाटा-हैंडलिंग सुधा ने की है। कुछ काम विकास की गाइडेंस में सुधा ने किया है। इसके साथ ही सख्त आवाज़ में बाॅस ने सुधा को बैठने को कहा कि विकास प्रेजेंटेशन देगा।

तभी मीटिंग रूम में महिला शिकायत सेल के ऑफिसर्स आ गए।

उन्होंने बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स को सभी कुछ विस्तार से बताया।  बॉस को तुरंत प्रभाव से टर्मिनेट किया गया और विकास को भी सस्पेंशन आर्डर मिला।

फिर सुधा ने पूर्ण आत्मविश्वास के साथ अपना प्रेजेंटेशन दिया। सुधा के कार्य एवं काम के प्रति उसकी लगन से क्लाइंट और बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स  काफी प्रसन्न हुए। सुधा ने अपने बेहतरीन काम से और निर्भीकता से अपनी पहचान सुनिश्चित की। बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स ने सुधा के उन्नत कार्य को देखते हुए सुधा को प्रमोशन दिया।  

क्लाइंट के जाने के बाद पूरे ऑफिस ने सुधा को बधाई दी कि उसने अन्याय का विरोध किया, अपने लिए आवाज़ उठाई। 

घर जाकर माँ को शुक्रिया कहते हुए आज का पूरा घटनाक्रम बताया, माँ ने बेटी को गले लगा लिया और वो पल बेहद खुशनुमा थे।

इति।।

लेखिका की कलम से

दोस्तों, कभी-कभी ज़िन्दगी में कुछ पल ऐसे निर्णायक होते हैं कि यदि तभी त्वरित एक्शन लें लिया तो ही बात बनती है। मेरी इस कहानी की नायिका सुधा ने समय रहते उसी निर्णायक पल में सही फैसला लिया और निर्भीक निर्णय से‌ सुधा ने पूर्ण  आत्मविश्वास से अपनी पहचान पर कुठाराघात होने से बचा लिया।

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धन्यवाद।

प्रियंका सक्सेना

(मौलिक व स्वरचित)

#पहचान

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