सासु बिना ससुराल – अमिता कुचया : Moral stories in hindi

आज के समय में सब लड़कियों के अरमान होते हैं।कि ससुराल बहुत अच्छा मिले।परिवार भी छोटा हो।

ऐसा ही सोचकर नीलू के माता-पिता ने उसकी शादी कर दी, सब ननदों की शादी हो गई है। लड़कों में सबसे छोटा बेटा दामाद ही है ।बड़े भाई अलग रहते हैं ,कोई दिक्कत नहीं होगी। सबसे छोटा बेटा अपने माता-पिता के साथ रहता था। पिता जी के तेज स्वभाव के कारण दोनों भाई अलग रहते थे।

पर नीलू के माता-पिता को यह मालूम नहीं था। दोनों बेटे क्यों अलग रहते हैं। सबसे छोटा बेटा अपनी भैया भाभियों को ग़लत मानता था।वह अपने माता-पिता के लिए उनसे लड़ जाता था । और कहता था। कि मेरी बीवी खूब सेवा करेगी।

इस तरह नीलू की शादी हो गई।वह ससुराल आई तब उसे पता चला कि सास को अस्थमा है ,हार्ट की प्रोब्लम भी  है।इस तरह वह शुरु से ही सास ससुर की सेवा करने लगी।

नीलू की शादी के बाद  सास की तबीयत इतनी बिगड़ी कि वे जल्द ही भगवान को प्यारी हो गई।अब जहां न जेठ जेठानी साथ  रहते हो और पति भी पिता भक्त हो तो कहने ही क्या!

ऐसी ही ससुराल नीलू की थी। जो कि सासु बिना ससुराल थी। जहां उसे अकेले ही जिम्मेदारी निभानी पड़ रही थी।इस तरह वह  ससुराल में अकेली पड़ गई थी। यहां पर उसे किसी भी तरह का मोरल सपोर्ट भी नहीं मिल रहा था।एक तो

ससुर का तेज स्वभाव  था। और साथ ही पति का साथ भी नहीं  मिल रहा था। ससुर दीनदयाल जी के तेज स्वभाव के कारण से उसके दोनों जेठ -जेठानी सास- ससुर के साथ नहीं रहते थे।

उनकी हर बात  में टोंका टाकी लगी रहती।

वह सोच – सोच कर परेशान रहती  कि मैं क्या करूं!

दिन रात कितना भी करती, पर ससुर की आदत कमी निकालने की हो गई थी। वह सब काम समय पर करना चाहती, फिर  भी उनके हिसाब से उन्हें नीलू में कमी लगती!

खाना जब भी परोसती ,तब सब्जी के बारे में पूछते – ‌सब्जी कौन सी बनी हुई है। अगर उनके मन की न हो तो खाना नहीं खाते, और बड़बड़ाने लगते कि हमारा कोई ख्याल रखने वाला नहीं है।

फिर वे अपनी बेटियों को फोन करके बताते। उनसे कहते- ‘ देखो तुम्हारी  छोटी भाभी तो दो वक्त का खाना भी नहीं दे पा रही है।अब बताओ इसी तरह हमारी शुगर बढ़ जाती है।हम ऐसे में क्या करें!’

फिर जैसे तैसे  बड़ी ननद नीलू को समझा कर जाती है। तुम्हें केवल हमारे पिता जी का ख्याल रखना है। सब्जी वगैरह  पहले से भैया से मंगा  लिया करो ताकि बाबूजी को गुस्सा न आए। फिर नीलू ने अपने आपको उनके अनुरूप और  ढालने की कोशिश की।

कुछ समय बाद  बाद वह मां बनने वाली थी।तो हमेशा निगरानी करते कि बहू क्या खा रही हैं। यदि वह  दूध रोटी खाते हुए देखते तो कहते – देखो तो तुम मही के साथ रोटी खाए जा रही  हो। फिर‌ देखना मही तुम्हें कितना नुकसान करेगा।इस तरह बड़बड़ाने लगते!

तब वह बताती कि बाबूजी मही रोटी नहीं, हम दूध रोटी खा रहे हैं। तब तो और बड़बड़ाने लगते कि दूध रोटी खाई जा रही है।ये आजकल की बहू के चोचले है…

इस तरह सदा उस पर निगरानी करते रहते और किचन के काम में भी टोंका टाकी करते रहते।

अब तो और ज्यादा नीलू परेशान रहने लगी, जब वह टाइम देखते कि नाश्ते के टाइम में नाश्ता नहीं मिला। वह फोन करके अपनी लड़कियों से शिकायत करते।उन्होंने हद‌ तो तब कर दी लड़कियों के कहने पर सीढ़ी पर घंटी लगवा ली । ताकि उन्हें नीलू को आवाज न लगाना पड़े।घंटी बजते ही तुरंत ही अपने कमरे से नीचे आ जाए।

और घंटी लगते ही नीलू ने पूछा बाबूजी ये सब क्या है? तब उमेश के बाबूजी ने

कहा कि जब हम घंटी बजाए तो‌ तुम नीचे आए करना ,हम आवाज नहीं देंगे ,तुम जहां अपने महल पर चढ़ जाती हो तो चार बार बुलाना पड़ता है। इसलिए ये घंटी लगवाई है।

इतना सब होने के बाद भी वह अपने आप ही हताश सी हो गई।अब तो वह  अपने नन्हे बच्चे का ध्यान भी  नहीं रख पा रही थी।न ही आराम कर पा रही थी।उसके पति का उसे बिल्कुल भी सपोर्ट नहीं मिल रहा था।जब कभी सब्जी नहीं होती तो उसी बात पर भी नीलू को बड़बड़ाने लगते। कि तुम समय से प ले उमेश से मंगा क्यों लेती।

इसी तरह कोई भी चीज की कमी होती तो बहू को कहते-” तुम्हें तो एक इंसान का ख्याल रखना भी भारी पड़ रहा है ,सोचो पहले कैसे भरें पूरे परिवार होते थे।” 

तब वह बोली -“बाबूजी एक पर सब निर्भर नहीं होते थे ,सब एक दूसरे की मदद कराते थे।”

इतना सुनते ही वो और बड़बड़ाने लगे । तुम्हें तुम्हारे मां बाप यही सिखाया है कि बड़ों से बहस करो।तब उसने सोचा कि बहस करना ही बेकार है वह चुप हो गई।

एक दिन की बात है जब ससुर ने कहा ऐसा करो बहू तुम हमें एक समय हरी सब्जी बना दिया करना।तब वो बोली- हां बाबूजी बना दिया करुंगी।

अब क्या था एक दिन उन्होंने पालक बनाने बोल दिया, यहां उसके बेटे को दस्त भी हो रहे थे।तो पालक नहीं बना पाई। क्योंकि पालक बनाने में ज्यादा समय लग जाता।तो उसने लौकी बना ली। उसने सोचा खाना के बाद तोड़ रख‌ लूंगी।बाद में दूसरी टाइम बना लूंगी।अब जैसे ही एक बजे तो उसके ससुर ने इंसुलिन लगा लिया। क्योंकि शुगर थी तो रोज खाने के पांच मिनट लगाते थे।अब तो पांच मिनट के अंदर खाना परोसना था।तो उसने फटाफट से लौकी की सब्जी ,मूंग की दाल और रोटी परोस दी। 

अब बाबूजी को लगा बहू पर हमारी बात का असर ही नहीं हो रहा है।तो बड़बड़ाने लगे तो देखो तो पालक आई है तब पर भी पालक न बन पाई।कल लौकी बनी, कम से कम आज तो न बनाए ।ये नहीं है कि ढंग का खाना समय पर बना दे दें।

तब नीलू ने बाबूजी पालक बनाने में ज्यादा देर लगती इसलिए लौकी बना ली । मुन्ने को दस्त लग रहे थे तो उसी में देर हो गई।

तब वो कहते बस तुम्हें करना न पड़े।तो बहाना तैयार रख लो।

तब नीलू ने कहा-” बाबूजी मैं क्या नहीं करती, रोज सुबह से शाम तक आपके हिसाब से सब काम संभालती हूं। और मुन्ने का भी ध्यान रखना होता।मेरी मदद के लिए कोई नहीं है।कि मुन्ने को संभाल ले।

रोज समय से हर खाने का ध्यान मैं ही रखती हूं। यहां तक कि मुझे आराम करने का मौका भी नहीं मिलता सुबह आठ बजे नाश्ता के बाद अपने छह महीने के मुन्ने की मालिश के बाद उसको सुलाकर पूरा खाना बनाना फिर कपड़े,शाम की चाय और नाश्ता के फिर आठ बजे तक आपका खाना बनाना , सब तो देखती हूं।आपको शुगर है तो रात के लिए बेड के पास फाफड़ा, खस्ता, यहां तक भी नमकीन भी रखती हूं। उसके बाद भी आप कह रहे हैं कि मैं आप के कुछ नहीं करती हूं। आप के कारण ही दलिया भी बनाती हूं जबकि ये नहीं खाते हैं। उसके बाद भी आप मुझे सुना रहे हैं।

तब वो कहते ये तो तुम्हारा फर्ज है।बहू तुम्हें तो करना ही होगा।तब वो कहती -नहीं बाबूजी बहुत हुआ आपका कहना कि मैं कुछ करती ही नहीं वो अपने पति को बताती है, तब पति कहते- तुम्हें यहां रहना है तो सब करना ही होगा।वो मेरे पिताजी है, उनका जो मन है वो बनाओ।

उसे लगा कि मैं मैंने क्या -क्या नहीं सोचा था। मेरे भी कितने अरमान थे।बस यहां पर दिन रात काम के बाद भी वही हाल …पर ये नहीं सोचा सास बिना ससुराल होगा में मेरा ये हाल हो जाएगा।अब पति और ससुर के आगे उसकी एक न चलती।अब वह दिन रात परेशान रहने लगी। 

उसने सोचा जेठ जेठानी से बात करुं तो कुछ तो बाबूजी और मेरे पति को समझाएंगे।कभी उसे लगता मेरे लिए लोग‌ उंगली उठाएंगे।दिन रात वहीं माहौल में उसने सोच लिया कि मेरा कोई अस्तित्व नहीं है क्या ? उसने एक दिन गुस्से में कह दिया कि मैं अब और नहीं रह सकती जो करना वो कर कर‌ लो। उसने दूध पीते बच्चे को लिया घर से निकल पड़ी। उसने अपने जेठ जेठानी के घर का रिक्शा लिया और उनके घर पहुंच गई। उन्हें बताया कि किस तरह बाबूजी परेशान कर रहे हैं।

  अब तो ससुर और पति का बुरा हाल था। उन्होंने सब जगह फोन‌ करने चालू कर दिए।नीलू के मायके में भी फोन‌ हो गया।

फिर जेठ जेठानी ने जो कि अलग रहते थे । उन्होंने घर में फोन लगाकर बताया कि नीलू हमारे पास आई है।और उन्हें अपने यहां छोटे भाई और बाबूजी को बुलाया। और समझाया कि बाबूजी आप मेरे साथ भी नहीं निभा पाए ,न ही नीलू के साथ निभा पा रहे हैं।  ध्यान रहे कि नीलू कहीं पूरी तरह घर छोड़कर कर न चली जाए।आज तो हमारे पास आई खैर••••• उसे परिवार की इज्जत का ख्याल था ,अगर मायके चली जाती तो क्या होता…..

बाबू जी अब तो आप अति मत कीजिए। कहीं आप और आपका आज्ञाकारी कहीं अकेले न पड़ जाए। आपकी तो उम्र हो गई।कम से कम अपने छोटे बेटे की गृहस्थी के बारे में सोचिए!

तब उसके दीनदयाल जी ने कहा- ठीक है बेटा … काम वाली बाई रख लेंगे ताकि नीलू पर काम का बोझ न पड़े। और दिनेश ने छोटे भाई को भी कहा -देखो छोटे अपनी पत्नी का भी साथ दो ,देखो वो इतनी हताश हो गई।उसे यहां आना पड़ गया।अगर उसका तुम साथ देते तो वह दुखी होकर यहां नहीं आती । पिता का ध्यान रखना ठीक है। क्या तुम बाबूजी को नहीं जानते ,उनकी यही अति के चलते हम लोग घर से अलग हुए थे।

तब बाबूजी कहते -सही कह रहे हो दिनेश …मेरी वजह से आज नीलू को यहां आना पड़ गया। मैं वादा तो नहीं करता कि अपनी दिनचर्या बदल लूंगा।पर टोका-टाकी अब न करुंगा।

तब उमेश दिनेश से कहता बाबूजी तो है ही ऐसे उन्हें अपने आगे कुछ दिखाई और सुनाई नहीं देता।अब उन्हें किसके सहारे अकेला छोड़ दूं।अब तो अम्मा भी नहीं है। इतना सुनते ही दिनेश ने सलाह दी देखो उमेश अब तुम अपनी पत्नी को समझो और उसका साथ दो।तब उमेश ने कहा -ठीक है भैया मैं उसका ख्याल रखूंगा ताकि नीलू परेशान न हों।

इस तरह नीलू के ससुर और उसके पति को उनकी गलती का अहसास हुआ।व खुश रहने लगी।

काम के लिए झाड़ू-पोछा वाली रखी गई। और कपड़े के लिए धोबिन लगवाई गई।

धीरे-धीरे ही सही बाबूजी की टोंका टाकी कम होने लगी। पति भी छोटे से बेटे को संभालने लगा।

पहले नीलू को रोते हुए बच्चे को छोड़ कर ससुर की सेवा में लगना पड़ता था।

इस तरह उसके जीवन में सुधार होने लगा।

दोस्तों- जहां पति कहे में न हो और  ख्याल न रखें तो ससुराल भी अच्छा नहीं लगता।वह जेल जैसा लगने लगता है। खासकर सास बिना ससुराल हो तो ऐसी स्थिति का सामना नीलू जैसी लड़कियों को करना पड़ता है।ननदों को भी अपनी भाभी की जगह रहकर सोचना चाहिए। तभी भाभी के दिल में जगह बना सकती है।ससुर को पिता बनकर बहू को स्वीकार करना चाहिए ।टोंका टाकी और दकियानूसी सोच को छोड़कर समय के अनुसार बदलना चाहिए। ताकि खुद भी खुश‌ रहे ।और लड़का बहू भी खुशहाल जीवन जीएं।

यह कहानी मौलिक रचना है। यथार्थ के निकट है।

स्वरचित मौलिक रचना 

अमिता कुचया

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