काश मेरा हमसफ़र भी ऐसा होता।-सुषमा यादव : Moral Stories in Hindi

आज काजल के घर उसका बर्थडे

मनाने उसकी कई सहेलियां अपने पति और बच्चों के साथ आईं थीं।

काजल की एक बहुत ही खास दोस्त रोली भी आई हुई थी अपने पति और बेटे के साथ।

सब कोई हंस बोल रहे थे आपस में और बच्चे मिलकर एक तरफ खेल रहे थे।

इतने में रोली ने देखा कि काजल का पति विहान उठ कर किचन में गया और सबके लिए जूस,फल स्नैक्स वगैरह ले आया। काजल आराम से बैठी बातें कर रही थी।

विहान ही सारी व्यवस्था कर रहे थे। उन्होंने पूरे घर को बहुत ही खूबसूरती से सजाया था। 

काजल और विहान एक दूसरे को देख कर मंद मंद मुस्कुरा रहे थे।

दोनों के चेहरे खिले हुए थे। क्यों ना हो? विहान जैसा खूबसूरत और मददगार हमसफ़र जो काजल को मिला था। 

कुछ देर बाद विहान काजल का हाथ थामे टेबल की तरफ बढ़ा जहां बड़ा सा केक सजा हुआ रखा था। सबने मिलकर बर्थडे गीत गाया,काजल ने फूंक मारकर मोमबत्ती बुझा दी पर विहान के कहने पर एक मोमबत्ती कोने में रखी हुई जलने दी।वह सगुन मानता है इसे। काजल ने केक काटा और विहान को प्यार से खिलाने जैसे ही आगे बढ़ी विहान ने उसके मुंह में केक ठूंस दिया।

विहान ने काजल की ऊंगली में डायमंड की अंगूठी तोहफे के रूप में पहनाई और काजल को गले लगा कर हैप्पी बर्थडे कहा।

इतने में रोली ने देखा कि काजल के बेटे ने डायपर में लैट्रिन कर दिया विहान तुरंत उसे गोद में उठा कर वाशरूम की तरफ भागा।

वहां से आकर सबके लिए टेबल पर खाना सजा दिया, सबसे आग्रह करके खाना खिलाया। उसके बाद सब जूठे बर्तन और बचा खाना उठा कर ले गया।

उसकी मदद उसके दोस्त भी करने लगे। पर काजल आराम से बातें करते हुए सबके बीच बैठी रही। जैसे वह भी एक मेहमान हो।

रोली सब कुछ देखती रही और बीच-बीच में अपने पति की तरफ भी चुपके से निहारती रही,,देखो, तुम भी इनसे कुछ सीखो। पर उसका पति निर्विकार भाव से बैठा रहा। 

सबने कहा कि काजल तुम तो बहुत भाग्यशाली हो जो तुम्हें ऐसा पति मिला। 

काजल ने गर्व भरी मुस्कान से कहा, हां तुम लोग सही कह रहे हो। विहान बहुत ही नेक और दरियादिल हमसफ़र साबित हुए हैं। ये मेरा शुरू से ही बहुत ख्याल रखते हैं। आज का खाना भी इन्होंने ही बनाया है। मेरे हर काम में मेरा सहयोग करते हैं। 

बच्चों को संभालना उन्हें नहलाना धुलाना, तैयार करके स्कूल भेजना और आकर अपने काम में लग जाना। हम दोनों का होमवर्क रहता है, इसलिए हम अपने आफिस सप्ताह में एक दो बार बारी बारी से जातें हैं उस दिन विहान घर और कपड़ों की साफ-सफाई से लेकर बच्चों तक की जिम्मेदारी उठाते हैं। मेरे लिए शाम का खाना भी बना कर रखते हैं। यहां तो मेड मिलती नहीं इसलिए हम सब को ही स्वयं सब काम मिलजुल कर करना पड़ता है ना। मेरे बनाए खाने की खूब तारीफ करते हैं चाहे जैसा बना हो।

मेरे बिना कहीं जाते ही नहीं।जरा सी तबियत खराब हो गई तो परेशान हो जाते हैं, मेरी उस समय खूब सेवा होती है।

मैं जब मीटिंग में व्यस्त रहतीं हूं तो मेरे लिए गरम गरम कॉफी बना कर लातें हैं। मुझे भरपूर समय देते हैं। हम सब प्रति शनिवार रविवार को सुबह से बाहर चले जाते हैं,सब कोई वीकेंड को खूब एंज्वॉय करतें हैं।

सबने कहा, वाह यह तो बहुत बढ़िया है। पति हों तो विहान जैसे। 

रोली जब वापस घर आई तो उसका मूड़ बिगड़ा हुआ था। वह बहुत उदास थी। वह भी तो नौकरी करती है, उसके घर भी तो मेड नहीं है फिर क्यों नहीं रवि मेरे काम में मुझे मदद नहीं करते,?क्यों नहीं मेरी तकलीफ समझते,? क्यों नहीं बच्चों को थोड़ी देर संभालते ? क्या मैं इंसान नहीं हूं ? मेरे भी कुछ अरमान हैं। कुछ सपने हैं, मैं भी चाहती हूं रवि मेरे पास कुछ पल बैठें मुझसे बातें करें, मुझे प्यार करें।मेरा भी जन्म दिन, शादी की वर्षगांठ मनाएं, मुझे भी कभी कोई उपहार लाकर दें पर नहीं वो तो इन सबको एक ढकोसला और बेफिजूल की बात कहते हैं। 

रात को एक कोने में सिमटी आंसूओं से तकिया भिगो रही रोली ने अपने आप से कहा,,काश मेरा हमसफ़र भी ऐसा होता।जो मुझे समझता।

ऊपर देखता हुआ विचार मग्न रवि पलट कर रोली को खींच कर गले लगाते हुए बोला, विहान ने आज मेरी आंखें खोल दी है,मत रोओ रोली, मैं अब तुम्हारे हर काम में भरपूर सहयोग करूंगा।

तुम्हारी जिंदगी का सच्चा हमसफ़र बन कर दिखाऊंगा।

मुझे माफ़ कर दो, मैं तुम्हारी भावनाओं से खिलवाड़ करता रहा अबतक। अब तुम्हें मुझसे कोई शिकायत नहीं होगी।

सुबह हुई तो घर का नजारा बदला हुआ था,सच में रोली का हमसफर अपना रात का किया वादा पूरी तरह निभा रहा था।

 

सुषमा यादव प्रतापगढ़

स्वरचित मौलिक अप्रकाशित

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