कैसा हमसफ़र-मंजू ओमर : Moral Stories in Hindi

जैसे ही रीना अपने बड़ी बहन बीना के घर पहुंची (अमर ) रीना के जीजा जी रीना को पकड़कर जोर जोर से रोने लगे ।देखो रीना तुम्हारी दीदी हमें अकेला छोड़कर चली गई। हमसफ़र बनकर आई थी मेरे सफर में , सफर में मुझे अकेला छोड़ गई । गमगीन माहौल था इस तरह से जीजा जी को रोते देखकर रीना भी बहुत रोई । आखिर रीना की बड़ी और प्यारी बहन जो बहन के साथ उसकी बहुत अच्छी सहेली भी थी आज दुनिया से चली गई है । फिर अगले क्षण रीना सोचने लगी अच्छा ही तो हुआ कष्टों से मुक्ति मिल गई बीना दी को ।कितनी तकलीफ़ से वो गूजर रही थी इसका अहसास सामने वाला तो करता ही है लेकिन जिसपर बीतती है वो ज्यादा करता है।

                    रीना और बीना दो बहनें कम लेकिन सहेली ज्यादा थी । अपना हर खुशी और ग़म एक दूसरे से बांटा करती थी ।आज हमारा साथ छूट गया रीना के लिए बहुत दुखद घड़ी थी ।

               असल में सालभर पहले बुना दी को ब्रेस्ट कैंसर डायग्नोस हुआ था।दो जवान बच्चे थे एक बेटा और एक बेटी। जीजा जी पेशे से वकील थे । लेकिन जीजा जी नीयत के अच्छे नहीं थे ।बस किसी को कैसे चूना लगाया जाए और किससे कैसे पैसा ऐंठा जाए बस यही मंशा रहती थी।उनका पेशा भी कुछ इस तरह  का था। बीना दी जब भी मायके जाती मम्मी पापा और भाई को तबियत से चूना लगाते । महीने भर पड़े रहते और अपने घर का जरूरत का सारा सामान ससुराल से ही बटोर कर लाते।और आने जाने का टेन का टिकट भी । जीजा जी जब तक ससुराल में रहते बीना दी को खूब लाड प्यार दिखाते । रीना की तब शादी नहीं हुई थी तो सोचती थी जीजा जी कितना प्यार करते हैं बीना दी को जैलेश होती थी वो ।जब रीना की शादी हुई तो उसके पति देव इस तरह का दिखावा नहीं करते थे तो वो अपने पति है बोलती थी देखो जीजा जी दी को कितना प्यार करते हैं और एक तुम हो , अच्छा अच्छा ठीक है ऐसा कहकर रीना के पति टाल जाते।

                 रीना और बीना दी में बहुत ज्यादा उम का अंतर नहीं था ढाई तीन साल का ही अंतर था । बीना की शादी के दो साल बाद रीना की भी शादी हो गई । दोनों अपनी अपनी गृहस्थी और बच्चों में व्यस्त हो गई । इसलिए एक दुसरे के घर आना जाना कम ही हुआ दोनों के घरों में दूरी भी बहुत थी ।जब भी मिलती मायके में ही मिलती। वहां पर बीना दी और जीजा जी बहुत अच्छे से रहते थे तो रीना ने कभी ऐसा कुछ जानने की कोशिश नहीं की जो कुछ नहीं मालूम था और बीना दी ने भी नहीं बताया । हां बीना दी के घर कुछ पैसों की दिक्कत थी जीजा जी की प्रेक्टिस कोई खास नहीं चलती थी ।तो मायके से मदद की जाती थी हर तरीके से ।

                   फिर अभी सालभर पहले पता लगा कि दी को ब्रेस्ट कैंसर है । काफी दिनों तक तो छुपाती ही रही लेकिन जब काफी बढ़ गया तो समझ आया कि अब पता नहीं क्या होगा । बीना ने रीना से फोन पर बात की रीना आठ दस दिन को हमारे पास आ जाओ रहने । रीना बीना दी के मनुहार को मना न कर सकी क्योंकि कैंसर बीमारी ही ऐसी है कि इंसान का बचना मुश्किल दीखता है ।अब तो कुछ इलाज संभव हो गया है । रीना ने घर को नौकरों के भरोसे छोड़कर बीना दी के पास  चली गई।तब पता चला कि जीजा जी अच्छे हमसफ़र नहीं है रीना बोली लेकिन मम्मी के यहां तो वो सब दिखावा था कभी आपने कुछ बताया नहीं अब क्या बताती तुम्हें ऊपर से कुछ और है और अंदर कुछ और।

                 बीना दी की बीमारी काफी बढ़ चुकी थी और जीजाजी सर्जरी कराने को तैयार नहीं है कहते मेरे पास पैसा नहीं है।

             रीना के वहां रहते समय बीच में दीवाली आ गई तो जीजा जी रीना से कहने लगे आज तुम्हें सरप्राइज देना है चलो मेरे साथ और वो रीना को अपने साथ ले गए एक कार के शोरूम में और नई कार खरीदी । रीना से बोलने लगे कार खरीदना तो मेरा सपना था । रीना आश्चर्य चकित हो गई ।अरे जीजा जी आप तो कह रहे थे कि आपके पास पैसा नहीं है अरे, मैंने थोड़ा दोस्तों से लिया है और थोड़ा लोन लिया है लेकिन वो दी का आपरेशन ,,,, अरे नहीं तुम तो जानती हो कैंसर  वैंसर ठीक नहीं होता बस पैसा बर्बाद करना होता है रीना ने सिर पकड़ लिया ये सोच है इनकी ।और मम्मी के यहां जो दिखावा करते हैं वो सब क्या था मात्र दिखावा।

                  बीना दी बोली देखा मेरे इलाज को पैसा नहीं है और घर में नई कार आ गई। वहां रहते हुए मुझे उनकी सच्चाई पता लगी । दीदी कहती मैं कमरे में अकेले पड़ी रहती हूं तुम्हारे जीजाजी देखने तक नहीं आते ।जब कोर्ट से आते हैं तो या तो दूसरे कमरे में बैठे रहते हैं या दोस्तों के पास चले जाते हैं ।मैं तरस जाती हूं कि कोई मेरा हाल पूछते ।

             बेटा ट्यूशन पढ़ाता है तो वहां चला जाता है और बेटी पढ़ाई कर रही है तो कालेज ।जो कुछ देखभाल करती है बेटी ही करती है । कैसे हमसफ़र है ये । बेटी भी कहती पापा मम्मी का ध्यान नहीं रखते। मम्मी का आपरेशन नहीं करवाया और कार खरीद ली ।

               बीना दी आज बहुत तकलीफ़ में थी उनको लेकर आज हासपिटल गये तो डाक्टर ने कहा दिया अब कुछ नहीं हो सकता ।अब कैंसर शरीर के की हिस्सों में फ़ैल चुका है । आंसुओं से भरी बीना दी की आंखें आज भी आंखों के सामने आ जाती है।

                आज दस दिन बाद मैं रीना अपने घर वापस आ गई । आते समय बीना दी बहुत रो रही थी अब तो हम मिल नहीं पाएंगे रीना हमारे बच्चों का ध्यान रखना ।बस ऐसे ही बेमन से रीना वापस आ गई ।और रीना के आने के डेढ़ महीने बाद बीना दी की मौत हो गई।

             बीना दी के बाद जीजा जी जब भी अकेले मिले बस ऐसे ही रोते रहे तुम्हारी दीदी अकेला छोड़ गई , पता है तुम्हें जीवन साथी के बिना जिंदगी कैसी कटती है । बच्चे भी ध्यान नहीं देते। आखिर बच्चों ने भी तो मां को तड़पते देखा है । कुछ तो नफ़रत होगी ही न पिता से।

              रीना तो बोल देती है जीजा जी जब तक बीना दी थी तो आपने कदर नहीं की अब क्यों रोते हैं । हमसफ़र तो एक दूसरे के सुख-दुख के साथी होते हैं । आपने बीना दी का ध्यान नहीं रखा इसी लिए वो हमसबको छोड़ कर इस दुनिया से चली गई।

               सच आज बीना दी की कमी बहुत खलती है । काश ॽ उनका समय पर इलाज हो जाता तो शायद हम सबके बीच होती । काश ॽ काश ॽ ।हम चाहते कुछ और है और होता कुछ और है ।सब ईश्वर की मर्जी होती है ।अब जीजाजी को बीना दी की कमी पल पल खलती है ।हर समय पार्टियों और दोस्तों के बीच घूमने वाला इंसान बिना हमसफ़र के तन्हा और बेचारा हो जाता है ।

धन्यवाद 

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

26 अप्रैल 

#हमसफर

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