गुरु दक्षिणा – प्रियंका सक्सेना : Moral stories in hindi

अनु स्कूल से आई और घर में घुसते ही बैग स्टडी टेबल पर रख कर कपड़े बदलकर हाथ धोए।फिर शोर मचाती हुई सुधा के पास रसोईघर में पहुॅ॑ची।

“मम्मी, देखो गणित में मेरे पूरे नम्बर आए हैं।”

सुधा खुशी से बोली, ” वाह! अनु बहुत बढ़िया। अब शाम को बाहर खाने चलेंगे।”

अनु खुश होकर सुधा से लिपट गई। बोली, ” मेरी प्यारी मम्मी!”

तभी छत से उसे एक छोटी लड़की कपड़े लेकर उतरती नज़र आई।

अनु ने मम्मी की ओर सवालिया निगाहों से देखा।

माला बोली,” अनु, यह केसर है, कमला बाई की बेटी।”

कमला बाई उनकी सहायक है,जो बर्तन, झाड़ू-पोछा, डस्टिंग, कपड़े धोने का काम करती है। 

दरअसल अनु के पापा सुधीर जी का स्थानांतरण तीन महीने पहले यहां हुआ है।

अनु ने सुधा से कहा,” मम्मी, केसर तो छोटी है वो काम क्यों कर रही है?”

सुधा बोली,” बेटा, कमला का पति बाहर गया है तो घर पर अकेले छोड़ने से बेहतर कमला उसे अपने साथ ले आई। कुछ दिन रोज़ाना आएगी।”

फिर ठहरकर बोली,” कमला ने ही सूखे कपड़े लाने को बोला होगा।”

सुधा अनु  का खाना परोसने लगी।

अनु ने कमला बाई को आवाज़ लगाई,” आंटी सुनो।”

कमला बाई आंगन से दौड़ी चली आई।

कमला बोली,”अनु बेबी, आपने बुलाया?”

“हां, आंटी, केसर से काम नहीं करवाओ। वो अभी बहुत छोटी है। ” सौम्या ने साफ़ साफ़ अपने मन की बात कही

“बेबी, केसर खुद ही सूखे कपड़े उतार कर लाई। मैंने नहीं कहा उससे।”कमला ने बताया

अनु ने केसर को अपने पास बुलाया और पूछा,” केसर, तुम स्कूल जाती हो?”

केसर ने ना में सिर हिलाते हुए कहा, ” दीदी मैं स्कूल कभी नहीं गई हूॅऺ।”

“केसर तुम कितने साल की हो? तुम्हें लिखना पढ़ना आता है?” अनु ने सवाल पूछा

केसर के बोलने से पहले कमला बोली,” बेबी, केसर दस साल की है। उसे पढ़ना लिखना नहीं आता है।”

“आंटी, ये तो गलत है। आप इसे पढ़ाई-लिखाई की जगह काम करवा रही हैं।  अनु ने कहा

“बेबी, छुटपुट काम तो यह अपनी मर्जी से कर रही है ।” कमला ने बताया

इतने में सुधा खाना लेकर आई। कमला से कहा,” तुम और केसर भी खाना खा लो।”

“केसर, खाना खाकर मेरे से आकर मिलना।” अनु बोली

खाना खाने के बाद केसर अनु के रूम में आ गई।

केसर बोली ,” दीदी, आपने बुलाया?,”

अनु बोली, ” आओ केसर। तुम मुझसे पढ़ोगी?”

केसर चहककर बोली,”,दीदी , आप सच में मुझे पढ़ाएंगी?”

कमला भी कमरे में खड़ी अनु की बात सुन रही थी।

अनु बोली,” आंटी , आप शाम को जब काम करने आती हों, तब रोज़ाना केसर को भी साथ लाना। मैं आधा घंटा पढ़ाया करुंगी।”

कमला बोली,” बेबी, ये तो बहुत अच्छी बात है। परंतु आपकी पढ़ाई का हर्ज़ा तो नहीं होगा।”

अनु बोली,” आंटी, वो मैं मैनेज कर लूंगी।”

कमला के जाने के बाद सुधा ने अनु से कहा,” बेटा बहुत अच्छा है कि तुमने केसर को पढ़ाने का सोचा है पर अपनी स्टडीज़ का भी ख्याल रखना।”

अनु ने अपनी मम्मी की चिंता दूर करते हुए कहा,” मम्मी आप निश्चिंत रहिए, मैं आठवीं कक्षा में हूॅ॑। सब कर लूंगी। फिर आप ही तो कहती हो कि अगर देश का हर शिक्षित व्यक्ति एक अशिक्षित को पढ़ना-लिखना सिखाए तो साक्षरता बढ़ जाएगी। केसर छोटी है और वो पढ़ना चाहती है।”

सुधा हां में हां मिलाते हुए बोली,” बिल्कुल सही कहा बेटा। एक लड़की अगर शिक्षित होती है तो समझो पूरा एक परिवार साक्षर हो जाता है।”

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उसी दिन से अनु केसर को पढ़ाने लगी। शुरु में बहुत परेशानी आई। केसर को कुछ भी पढ़ना लिखना नहीं आता था। शुरुआत हिन्दी वर्णमाला से कराकर मात्रा बताकर, धीरे धीरे शब्दों को बोलना सिखाया। फिर लिखना सिखाया। केसर का दिमाग तेज था तो वह तीन महीने में छोटे छोटे वाक्य भी लिखने लगी।

अब अनु ने उसे गिनती सिखाना शुरू किया, पहले उंगली पर सिखाया। १० तक की गिनती के बाद नम्बर लिखने सिखाए। तीन महीने में इतना सीखा केसर ने।

अब अनु ने उसे अंग्रेजी पढ़ाना शुरू किया। यहां अंग्रेजी के अक्षर सिखाने में अनु के पसीने छूट गए। हिम्मत न हारते हुए उसने धैर्यपूर्वक केसर को अंग्रेजी वर्णमाला बोलनी और लिखनी सिखाई। छह महीने में केसर अंग्रेजी के शब्द लिखने और बोलने लगी। आगे के चार महीने में केसर हिन्दी के वाक्य लिखने , पढ़ने लगी। १०० तक की गिनती सीख गई। अंग्रेजी के छोटे वाक्य लिखने और पढ़ने लगी। उसको कुछ पुस्तकें भी दीं ताकि घर में भी अभ्यास कर सके।

एक साल में केसर को अनु ने इतना सिखाकर पढ़ने और लिखने के योग्य बना दिया।

दूसरे साल में उसी गति से अंग्रेजी, हिन्दी के साथ गणित के जोड़, घटा, गुणा, भाग के सवाल करना सिखाया। केसर का पढ़ने में इतना मन लगने लगा कि वह घर जाकर भी पढ़ती रहती, गणित के सवाल हल करती।

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तीसरे वर्ष में मम्मी पापा से कहकर एक सरकारी स्कूल में केसर का दाखिला पांचवी कक्षा में करा दिया। आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग में होने के कारण केसर की फीस माफ हो गई।

जब भी केसर को पढ़ाई में कोई परेशानी आती वह अपनी अनु दीदी से पूछा करती।

कमला और उसके पति ने भी अनु और उसके मम्मी पापा का बहुत आभार माना कि जिनकी बदौलत केसर ने पढ़ाई शुरू की और आगे बढ़ती जा रही है। उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी उसको पढ़ाने में।

अनु और सुधा केसर की किताबें दिला दिया करते।

अच्छे नम्बरों से दसवीं और बारहवीं पास कर केसर ने बी.एस.सी. किया।

अनु अब पढ़ कर इंजीनियर  बन गई है। उसने केसर को सिविल सर्विसेज के लिए प्रेरित किया।

केसर ने पूरे मनोयोग से पढ़ाई और तैयारी की। केसर दिन रात पूरी तरह किताबों में ही डूबी रहती।

केसर ने सिविल सर्विसेज की लिखित परीक्षा पास की। मौखिक परीक्षा अर्थात् साक्षात्कार उसने अपनी मातृभाषा हिंदी में ही दिया।

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केसर ने माॅ॑ और अपने पिता के साथ अनु के घर की घंटी बजाई।

अनु ने दरवाजा खोला और केसर ने उसके और सुधा के पैर छूकर आशीर्वाद लिया।

केसर की आंखों में खुशी के आंसू आ गए।

भावुक होकर बोली,” दीदी, आपके आशीर्वाद से मैं पास हो गई हूॅ॑। पहले दस में मेरा नाम आया है। आपने मुझे अनपढ़ को पढ़ाया और आगे पढ़ने के लिए प्रेरित किया। आप ही मेरी गुरु, पथ प्रदर्शक और प्रेरणा हों। आंटी जी ने मेरे लिए कितना कुछ  किया है। “

अनु ने केसर को गले लगा लिया और बोली,”केसर, सब तुम्हारी मेहनत और लगन का नतीज़ा है। आज मैं बहुत खुश हूॅ॑।”

भरे गले से केसर बोली,”दीदी, जब मैं समझ नहीं पाती थी तब आपने मुझे बिना क्रोध करे धैर्यपूर्वक समझाया। आप भी तब बच्ची थीं। आपने मेरा साथ कभी नहीं छोड़ा। मुझे आप मिली, यह मेरे जीवन का टर्निंग प्वाइंट बना। आप को गुरु दक्षिणा देने की मेरी कोई हैसियत नहीं है, छोटे मुंह बड़ी बात है। परंतु मैं आपको गुरु दक्षिणा देना चाहती हूॅ॑।”

अनु सुनकर बहुत भावुक हो गई और वह बोली,” केसर, तुमने अपनी मेहनत, लगन और परिश्रम से यह मुकाम हासिल किया है। अगर तुम मुझे कुछ देना ही चाहती हो तो मुझे तुमसे गुरु दक्षिणा में जो चाहिए वो दोगी?”

केसर ने अनु का हाथ पकड़कर कहा,” दीदी, आप आदेश दीजिए।”

अनु ने ठहरकर कहा,” केसर, मुझसे वादा करो कि अपने जीवन में तुम एक बच्चे या बच्ची को साक्षर करोगी। उसे अपने पैरों पर खड़ा होने में मदद करोगी। यही तुम्हारी गुरु दक्षिणा होगी।”

केसर ने अनु के पैर छूकर कहा,” दीदी मैं ऐसा जरूर करूंगी। मैं अच्छी तरह जानती हूॅ॑ कि एक बच्चे को साक्षर करने से कितना भला होता है।”

सुधा बोली, ” आओ, मेरी अफसर मैडम केसर। चाय नाश्ता भी कर लो अब।”

केसर हाथ जोड़कर बोली,” आंटी जी आपने ‌और अंकल जी ने मेरे लिए जो भी किया उसका ऋण मैं कभी चुका नहीं सकती ।”

कमला और उसके पति ने अपने साथ लाई मिठाई से सबका मुंह मीठा कराया और कोटि कोटि धन्यवाद दिया।

आज अनु बहुत खुश हैं। उसका सपना सार्थक हो गया। उसने केसर को पढ़ाकर एक बच्ची को निरक्षरता से आज़ादी दिलाई। इसके साथ ही पढ़ाई की श्रंखला आगे से आगे बढ़ती जाएगी ऐसा उसे पूर्ण विश्वास है!

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लेखिका की कलम से

दोस्तों, मुझे आशा है मेरी यह कहानी आपको अच्छी लगी होगी। ऐसा ही कुछ प्रयास इस कहानी की लेखिका ने अपने बचपन में किया था। आपको मेरी यह कहानी पसंद आई है तो कृपया लाइक, शेयर और कमेंट करें। 

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धन्यवाद।

प्रियंका सक्सेना

( मौलिक व स्वरचित)

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(कहानी -1)

4 thoughts on “गुरु दक्षिणा – प्रियंका सक्सेना : Moral stories in hindi”

  1. बहुत ही प्रेरणादायक कहानी। अगर कुछ लोग भी समाज में बिना किसी पूर्वाग्रह के ऐसा कर सकें तो कितनी केसरों की जिंदगियां बदल जाएंगी।बहुत ही सुन्दर।

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  2. यह कहानी आदर्श कहानी है आप ऐसी ही आदर्श कहानियॉ सदैव लिखा करे वाग्देवी जी की कृपा रहै

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