बुढ़ापे में एक कमरा भी अपना नहीं – प्रियंका सक्सेना : Moral stories in hindi

आज शांता सदन में खुशी का माहौल है।  रमाकांत जी और सुधा जी के बड़े बेटे राहुल की शादी है।  शांता सदन फूल-मालाओं और बिजली की लड़ियों से जगमगा रहा है।

रमाकांत जी बैंक में मैनेजर हैं। रिटायरमेंट में छह साल बाकी हैं। मध्यमवर्गीय परिवार है। रहने लायक अपना घर बना लिया है। जिसमें तीन बेडरूम और एक ड्राइंग कम डाइनिंग रूम है। पीछे किचन गार्डन और आगे छोटा सा लाॅन है। रमाकांत जी ने अपनी माॅ॑ शांता जी के नाम पर घर का नाम रखा था। उनके माता-पिता उनके साथ ही रहते थे। कुछ वर्ष पहले उनका परलोक गमन हो गया।

रमाकांत जी और सुधा जी के दो बेटे राहुल और समीर हैं। दोनों इसी शहर में प्राइवेट कंपनी में जॉब करते हैं। सुधा जी को बेटियां बहुत अच्छी लगती हैं। भगवान ने उन्हें बेटी नहीं दी तो उन्होंने सोच लिया था कि बहुओं में ही बेटी ‌तलाश लेंगी।

राहुल की शादी नलिनी से हो गई। शादी के बाद सुधा जी ने नलिनी को बहुत लाड़ प्यार से अपनाया। नलिनी भी घर में घुल-मिल गई। दो साल के अंतराल  में समीर का विवाह तनु से हो गया। तनु का भी सबने बांहे फैलाकर स्वागत किया।

समीर की शादी के चार साल बाद रमाकांत जी रिटायर हो गए। इस बीच में रमाकांत जी के घर में पोता पोती खेलने लगे। राहुल और नलिनी के चार वर्ष की बेटी और दो वर्ष का बेटा है। समीर और तनु के भी तीन वर्ष की बेटी है। घर बच्चों से आबाद हो गया। सुधा जी और रमाकांत जी बच्चों को पार्क घुमाने ले जाते। नलिनी और तनु भी आपस में ठीक प्रकार से रहती।

अब राहुल का बेटा बाबा दादी के साथ सोने लगा। उसकी स्टडी टेबल बाबा दादी के रूम में लगा दी गई। थोड़े समय बाद समीर की बेटी भी बाबा दादी के पास सोने लगी। बढ़ती उम्र के साथ दो बच्चों को अपने पास सुलाने से  रमाकांत जी को करवट से लेटना पड़ता। उन्हें तकलीफ़ रहने लगी। सुधा जी के भी घुटने दर्द करने लगे।

राहुल और समीर से उन लोगों ने जब इस बारे में बात की तो उन्होंने सुझाव दिया कि रमाकांत जी और सुधा जी ड्राइंग कम डाइनिंग रूम के डाइनिंग टेबल वाले हिस्से में सो जाएं। वहां पर्दा लगाकर पार्टीशन कर देंगे। बच्चे बढ़े हो रहें हैं। अब उन तीनों की  स्टडी टेबल लगेंगी। बच्चों को पढ़ने का रूम मिलेगा तो सही रहेगा।

रमाकांत जी और सुधा जी अपने घर में डाइनिंग रूम में रहने लगे। अब वे दिन में लेट नहीं पाते थे। ड्राइंग रूम और डाइनिंग रूम में पर्दे का ही पार्टीशन जो था। उन लोगों की तकलीफें वैसी ही रहीं।  कुछ समय बाद समीर के भी दूसरा बेटा हो गया। 

इस साल रमाकांत जी पैंसठ साल के होने वाले हैं। रमाकांत जी के दोनों बेटों और बहुओं ने कहना शुरू कर दिया कि यदि घर के ऊपर कमरे बनवा लें तो कुछ पोर्शन किराये पर उठा देंगे और उनके चारों बढ़ते बच्चों के लिए अलग रूम हों जाएंगेे।

रमाकांत जी ने अपनी नौकरी के समय बाज़ार में एक छोटा प्लॉट लिया था। जिसपर एक रूम बना था और एक अन्य रूम बनाने का प्रोविज़न था।

राहुल और समीर एक दिन सुबह ही मम्मी पापा के पास जाते हैं।

राहुल ने कहा,” पापा, आप तो जानते ही हैं आजकल महंगाई बहुत हो गई है।  हम सोच रहे हैं कि घर के ऊपर एक मंजिल और खींच लेते हैं, चार रूम बन जाएंगे। वन रूम सेट किराए पर चढ़ा देंगे। बाकी चारों बच्चों के लिए ऊपर नीचे मिलाकर अलग-अलग रूम हों जाएंगेे।”

रमाकांत जी कहते हैं,” बहुत बढ़िया ! हमारा भी रूम होगा फिर? हमारा नीचे वाला बैडरूम हमें मिल जायेगा।  तकलीफ भी होती है बेटा। दिन में मैं और तुम्हारी माँ लेट नहीं पाते हैं।  ड्राइंग रूम में किसी न किसी का आना जाना लगा ही रहता है। हमारी भी उम्र हो चली है, अच्छा किया तुम लोगों ने ऐसा सोचा।”

समीर कहता है,” पापा, वो नहीं हो पाएगा। आप लोगों के लिए यह काफ़ी तो है। फिर इस उम्र में इससे ज्यादा की आपको ज़रूरत नहीं है। आप लोग डाइनिंग रूम में जैसे रहते हैं वैसे रहिये।  हम लोग बच्चे सहित आठ लोग हैं और हमें कुल छह रूम की ज़रूरत है दो हम दोनों भाइयों के लिए बैडरूम हैं , एक नीचे का और तीन ऊपर का मिलाकर चारों बच्चों  को अलग-अलग रूम्स मिल जायेंगे और एक वन रूम सेट बनाकर किराये पर चढ़ा देंगे तो हमें बढ़ते हुए खर्चों में कुछ सहारा मिल जायेगा। “

सुधा जी को आज अपनी परवरिश पर बहुत अफ़सोस होता है।

रमाकांतजी कहते हैं,” जैसे तुम लोग चाहें वैसा करो। हमसे क्या पूछ रहे हो। हमें तो डाइनिंग में ही सोना है तब भी। कर लो जो करना है।”

अब तक नलिनी और तनु भी आ गईं थीं।

राहुल ने अपनी बात कही,” बात ये है पापा, हम लोगों के पास तो ऊपर का पोर्शन बनवाने के लिए रकम नहीं है। ऐसा करिए आपने जो प्लॉट बाज़ार में खरीदा था, उसे बेच दीजिए। अच्छी खासी कीमत है उसकी, हम उस को बेचने से मिली रकम से ऊपर का पोर्शन बनवा लेंगे।”

रमाकांत जी और सुधा जी ने कहा  कि वे सोचकर बताते हैं।

इसपर तनु और नलिनी दोनों बोल पड़ी ,” अब आप लोगों की उम्र हो रही है, मोह माया रखना ठीक नहीं है। समझदारी इसी में है ,हम जैसा कह रहें हैं, वैसा करिए।”

बेटों ने भी हाँ में हाँ मिलाई।

अगली सुबह रमाकांत जी कहीं चले गए। दो घंटे बाद लौटकर आए तो उन्होंने दोनों बेटों और बहुओं को इकट्ठे बुलाया।

सबके आने के बाद रमाकांत जी ने कहा,” हमने कल तुम लोगों की बातें सुनी और फैसला ले लिया है।”

समीर बोला,” यह अच्छा किया आपने। हम आज ही दलाल से उस प्लॉट बेचने की बात कर लेते हैं।”

सुधा जी ने बीच में ही कहा,” सुन तो लो हमने क्या फैसला लिया है।”

रमाकांत जी बोले,” हम तीन महीने बाद यहां से चले जाएंगे। “

राहुल ने पूछा,” कहां जाएंगे?”

रमाकांत जी ने बताया,” मैंने प्लॉट पर दूसरा कमरा और रसोई व वॉशरूम बनवाने की बात ठेकेदार से कर ली है। आज से काम शुरू हो रहा है। तीन महीने में तैयार हो जाएगा। एक रूम तो पहले से बना है। दो रूम सेट बन जाएगा हम वहां शिफ्ट कर जाएंगे।”

राहुल और समीर समेत नलिनी व तनु सबके मुंह बन गए।

नलिनी ने कहा,” ऐसा क्यों कर रहे हैं, आप? अकेले कैसे रहेंगे इस उम्र में ?”

सुधा जी बोली,” यह घर इन्होंने बनवाया पर अब इसी घर में हमें डाइनिंग रूम में रहना पड़ रहा है। कहने को अपना एक कमरा नहीं है। दिन में लेट नहीं सकते क्योंकि ड्राइंग रूम और डाइनिंग रूम में पार्टीशन पर्दे का ही है। तुम लोग ऊपर चार कमरे बनाने को कह रहे हो पर उसमें भी तुम सब अपना अपना सोच रहे हो। तुम्हें किराया और बच्चों के लिए अलग-अलग रूम चाहिए। लेकिन माता-पिता के लिए बुढ़ापे में रूम की जरूरत नहीं दिखाई देती। हम जो घर बनवा रहें हैं उसमें रूम भले ही छोटे साइज के हों पर हम  अपने हिसाब से तो लेट बैठ सकेंगे। जब तक हाथ पैर चलेंगे काम कर लेंगे, यहां भी करती हैं तुम्हारी माँ।  जब नहीं होगा तब सहायक रख लेंगे,  मेरी पेंशन में आराम से गुजारा हो जायेगा। “

साफ़ लफ्जों में रमाकांत जी और सुधा जी ने अपनी बात बेटों और बहुओं को समझा दी।

तीन महीने तक रमाकांत जी सुबह प्लाट के लिए निकल जाते। दिन में खाना खाने आते। फिर वापस चलें जाते। इस तरह उन्होंने मेहनत कर छोटा-सा मकान बनवा लिया। उनके दोनों बेटे झांकने तक नहीं आए, काम तो वो दोनों क्या करवाते।

तीन महीने बाद रमाकांत जी और सुधा जी शिफ्ट हो गए। महीनों तक बेटों और बहुओं का मुंह सूजा रहा।

रमाकांत जी और सुधा जी ने अपनी समझदारी से अपना बुढ़ापा सम्भाल लिया। आराम से अपने घर में रहते हैं। दो-तीन महीने बाद बेटे बहुओं ने भी आना शुरू कर दिया।

रमाकांत जी के बेटों को अच्छी तरह पता चल गया कि जिस घर में वो खुद रहते हैं,  वो भी उनके पापा का ही है। अगर पापा चाहते तो दोनों को घर से निकाल सकते परंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया।

आज १० अक्तूबर को रमाकांत जी ने घर पर छोटी सी पार्टी रखी है। उन्होंने अपने कुछ मित्रों और अपने बेटों को सपरिवार शामिल किया है। रमाकांत जी आज पैंसठ साल के हो रहें हैं। सुधा जी ने कुछ घर पर तैयारी की। जो चीजें रमाकांत जी को उनके हाथ की बहुत पसंद हैं, उन्हें बना रहीं हैं। बाकी के लिए केटरिंग बुक कर दी है।

शाम को सूटेड बूटेड रमाकांत जी और उनके साथ बनारसी साड़ी में सुधा जी की जोड़ी देखते ही बनती है। पोता-पोती ने तो कह भी दिया,” हमारे एवरग्रीन बाबा-दादी की केमिस्ट्री अद्भुत है!”

दोनों ने मिलकर केक काटा और एक दूसरे को खिलाया। सभी परिजनों और मित्रों ने बर्थडे सांग गाया,” हैप्पी बर्थडे टू यू!” सबने आनंदपूर्वक मिलकर पार्टी में मजे किए।

लेखिका की कलम से

दोस्तों, कई बार देखा गया है कि बच्चे अपनी मनमानी पर उतर आते हैं। यहां तक कि ढंग से उठने बैठने की जगह भी माता-पिता को नहीं देते। उन्हें लगता है कि बुजुर्ग होते माता-पिता को किसी भी सुविधा की ज़रूरत नहीं है। जैसे वे रखें, माता-पिता को रहना पड़ेगा। भूल जाते हैं वे लोग कि यह वही माता पिता हैं जिन्होंने उनको अपने हिसाब से सुख सुविधा उपलब्ध कराने में कोई कसर नहीं छोड़ी। ऐसे में माता-पिता को ठोस कदम उठाने चाहिए।

रमाकांत जी ने भी जब पानी सिर से ऊपर चला गया तब एक निर्णय लिया जो भले ही उनके बेटों को पसंद नहीं आया। बेटे अपने स्वार्थ में अंधे होकर सिर्फ अपना और अपने बीवी-बच्चों के लिए सोच रहे थे। बेटे भूल गए कि वे जैसा उदाहरण अपनी संतानों के आगे पेश कर रहें हैं, उन्हें पलटकर वैसा ही उनसे मिल सकता है। 

रमाकांत जी और सुधा जी ने जो फैसला किया , आपके हिसाब से उचित है कि नहीं? बताइएगा ज़रूर, आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा। हाँ! यदि उनके पास दूसरा प्लॉट नहीं होता तब शायद उनका निर्णय अलग होता।  तब वे ठोस कदम उठाकर अपने लिए इसी घर में अपने बैडरूम को वापस लेते क्योंकि उम्र हो गई कहने के लिए सभी हैं परन्तु उम्र के साथ सहूलियत नहीं देने पर कुछ तो करना ही पड़ता उनको। 

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धन्यवाद।

प्रियंका सक्सेना

( मौलिक व स्वरचित)

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(कहानी -2 )

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