बेंगलुरु में स्थित एक अत्यंत सुंदर इलाका बसवनगुडी । समृद्ध शहर। इस क्षेत्र में स्थित कई अस्पताल, सुप्रसिद्ध विद्यालय और कॉलेज, पार्क , व्यस्त बाजार, छोटी-छोटी झील, रेस्टोरेंट और बहुतकुछ है। यहां लग्जरी अपार्टमेंट्स और स्वतंत्र घरभी हैं।
ऐसे ही एक आलीशान घर की गैलरी में बैठी थी सुंदर शुभ्रा, वह अपने घर के सामने छोटेसे गार्डन में लगे सुंदर फूलों को निहार रही थी, तभी उसकी दीदी आभा का फोन आ गया। उसने दीदी और अपने जीजा जी आकाश से बातें क। उनसे बात करने के बाद वह कुछ समय पहले की बातों को याद करने लगी। उन यादों का पीछा करते-करते वह अपने मायके चिकमंगलूर पहुंच गई। जहां के हरी-भरी वनस्पतियों और बहुत हरियाली से घिरे सुंदर घर में अपनी दीदी आभा और मम्मी-पापा के साथ रहती थी। बेहद सुंदर स्थान प्रकृति के आशीर्वाद से भरा।
दोनों बहनों में लगभग 6 साल का अंतर।था। उनके पापा का कॉफी का व्यापार था। आभा ने अर्थशास्त्र में पीएचडी पूरी कर ली थी।
एक बार आभा किसी नजदीकी रिश्तेदार की शादी में अपने पापा के साथ गई। वहां आकाश अपने दोस्तों के साथ आया हुआ था। वहां आभा उसे इतनी अच्छी लगी कि उसने उसकी पूरी जानकारी निकाल कर अपने मम्मी पापा को उसके यहां रिश्ता लेकर भेज दिया।
उसके माता पिता को भी आभा और उसका परिवार बहुत अच्छा लगा। आकाश की खुद की एक विज्ञापन एजेंसी थी, कभी-कभी वह खुद भी मॉडलिंग कर लेता था। जाहिरसी बात है स्मार्ट होने के कारण आभा को भी आकाश बहुत अच्छा लगा और उससेभी बड़ी बाद उसका नेचर, बहुत ही मधुर और सभ्य। आभा के माता-पिता को भी आकाश बहुत पसंद आया और उसी शहर में होने के कारण उन्हेंतसल्ली थी। चट मंगनी और पट ब्याह हो गया।
शुभ्रा को भी हैंडसम और अपनेनाम के अनुरूप बड़ादिल रखने वाले आकाश जीजू बहुत अच्छे लगे। आभा बहुत ज्यादा खुश थी। उसके सास ससुर बहुत नेक और विनम्र लोग थे।
शुभ्रा अभी बीए में थी। उसकी परीक्षाएं कुछ ही समय बाद होने वालीथी लेकिन उसके पापा के ध्यान से यह बात उतर गई और उन्होंने शिमलाघूमने के लिए ट्रेन की टिकटबुक करवा दी। शुभ्रा ने जाने से इनकार कर दिया। शुभ्रा की मम्मी भी उसके पापा पर गुस्सा होने लगी कि आप एक बार पूछतो लेते।
अब क्या करते। फिर उन्हें आभा का ख्याल आया। उन्होंने आभा से बातकी। आभा ने कहा-“पापा, यह भीकोई पूछने वाली बात है, बेशक शुभ्रा हमारे यहां रह सकती है। उसे घर में अकेला कैसे छोड़ सकते हैं। शुभ्रा दीदी केयहां आ गई और मम्मी पापा घूमने चले गए।
एक-दो दिन बाद आभा के घर सुबह-सुबह सब चाय पी रहे थे और टीवी पर समाचार चल रहे थे। अचानक एक समाचार आया अधिक वर्षा होने के कारण भूस्खलनहुआ और मंदिर ढह गया कई लोग मलबे में दब गए। आभा और शुभ्रा यह समाचार देखकर परेशान हो गई क्योंकि वही तो मम्मी-पापा गए हुए हैं। उन्होंने फोन किया। मोबाइल स्विच ऑफ था। वहां बचाव कार्य शुरूहो चुका था। कुछ लोग घायल थे और कई शव निकल जा चुके थे। तभी उन्होंने मरने वालों की लिस्ट में अपने माता-पिता का नाम देखा। दोनों बहनों का रो-रो कर बुरा हाल था। आकाश और उसके माता-पिताभी बहुत दुखी थे।
वहां कोई नहीं जा सकता था क्योंकि भूस्खलन बार-बार होने के कारण वहां आने से सबको मना कर दियागया था। शवों को वहां से आने में काफी समय लग गया। तब तक सब लोग आभा के मायके वाले घर पहुंच गए थे। उनके अंतिम संस्कार के बाद आकाश और उसके माता-पिता वापस लौट गए। दोनों बहने अभी साथ थी। सब यहीसोच रहे थे कि आगे क्या करना चाहिए।
आभा ,शुभ्रा को अकेला नहीं छोड़सकती थी और अपने ससुराल वालों से यह बात कहने में उसे हिचकिचाहटहो रही थी कि मेरी बहन हमारे यहां आकर रहे।
13वीं की क्रिया पर सब आ गए थे। क्रिया पूरी होने के बाद आभा की सास ने खुद कहा-“आभा ,चलो उठो बेटा , जल्दी शुभ्रा का सामान पैक करो। यह अब हमारे साथ रहेगी।”
इतना सुनते ही आभा की आंखों में आंसू आ गए और वह अपनी सासू मां के गले लग गई।
सासू मां न कहा-“पगली है, यह भी कोई इतना सोच ने वालीबात है, शुभ्रा अपनी बच्ची है इसे अकेला कैसे छोड़ सकते हैं।”
आकाश-“आभा, जिस बात को कहने के लिए तुम इतना सोच रही थी। उसे बातको हमने बहुत पहले ही तय कर लिया था। शुभ्रा हमारे यहां रहकर पढ़ाई करेगी ।”
शुभ्रा वहां रहकर पढ़ने लगी। समय बीतता गया, शुभ्रा ने बीए करने के बाद b.ed भी कर लिया था। इतने वर्षोंमें शुभ्रा ने कभीभी आकाश को अपनी मर्यादा लाघंते नहीं देखा था। वह हमेशा शुभ्रा से एक बड़े भाई की तरह बात करता था या फिर एक पिता की तरह उसका साथ देता था। शुभ्रा को अपने जीजा जी पर बहुत गर्व था।
एक दिन आकाश ने आभा से कहा -“आभा , अब तोशुभ्रा की पढ़ाई पूरी हो चुकी है। मेरी नजर में एक बहुत अच्छालड़का है पीयूष, बसवनगुडी में रहता है। बचपन में एक दुर्घटना में उसने अपने पिता को खो दिया था। उसकी मां ने बहुत मेहनत और जतन करके उसे पढ़ाया लिखाया और अब उसका खुद का रेस्टोरेंट भी है और एक सुंदर घर भी। तुम कहो तो शुभ्रा के लिए बात करूं।”
आभा ने कहा-“ठीक है करके देखिए।”
पीयूष से पूछने पर उसने हां की। तब पीयूष और शुभ्रा को एक दूसरे से मिल वाया। दोनों ने एकदूसरे को पसंद कर लिया। सब कुछ तय हो गया। पीयूष की माता जी को भी शुभ्राबहुत पसंद आई।
अब शुभ्रा और आभा ने आपस मेंसलाह करके यह सोचा कि आकाश और उसके माता-पिता ने हमारे लिए इतना कुछकिया है अब उनके ऊपर शादी के खर्चका बोझ डालना उचित नहीं। इसीलिए उन्होंने आकाश से कहा-“आप हमारी बात को समझिएगा, नाराज मत होइएगा, आप हमारा मायके वाला घर बेचकर शुभ्रा की शादी कर दीजिए, वैसे भी वह घर ऐसे ही खाली पड़ाहै।”
आकाश समझ रहा था कि दोनों बहनों का मन बिल्कुल साफ है। फ़िर भी नकली गुस्सा दिखाते हुए कहा-“तुम लोग तो मेरा अपमान कर रही हो, क्या मैं इस लायक भी नहीं, क्या शुभ्रा मेरी बहन या बेटी जैसी नहीं। मैं तुम्हें इस बात के लिए कभी माफ नहीं करूंगा।”
शुभ्राने उसके नकली गुस्से को सच मान लिया और रोने लगी। आकाश से माफीमांगने लगी। आकाश की आंखों में भी आंसू आ गए और वह बोला-“पगलीहै बिल्कुल, मैं तोमजाक कर रहा था। मैं जानता हूं तुम मेरे ऊपर बोझ नहीं डालना चाहती हो। पर सच मानो, शुभ्रा की शादी करवाने की मुझे बहुत खुशी है। यह कोई बोझ नहीं। मैं तुम दोनों के लिए वो घर बचाकर रखना चाहता हूं ताकि तुम दोनों कभी-कभी अपने-अपने घर से वहां जा कर रह सको। थोड़े दिन मिल कर रहना, हंसी-खुशी मायके वाले घर में कुछ दिन साथ बिताना। मम्मी-पापा की आत्मा कोभी खुशी मिलेगी, और फिर वापस अपने अपने घर।”
शुभ्रा और आभा को आकाश की बात माननी पड़ी। शुभ्रा और पीयूष का विवाह सुखपूर्वक संपन्न हुआ। शुभ्रा ससुराल में बहुत खुश थी और आज एक वर्ष पूरा हो जाने पर, जब दीदीजीजा जी फोन आया तोसारी यादे ताजा हो गई और रिश्तो की मर्यादा समझने वाले अपने जीजा जी पर एक बार फिर गर्वहो उठा।
तभी पीयूष का फोन आया।”शुभ्रा जल्दी से तैयारी करलो, मैं, मां और तुम तीनों चल रहे हैं तुम्हारे दीदी जीजाजी के पास। लेकिन उन्हें फोन करके बताना नहीं, यह उनके लिए सरप्राइज होगा।”
शुभ्रा-“पीयूष, थैंक यू पीयूष, उनसे पहले तो तुमने मुझे सरप्राइज दे दिया, ऐसे अचानक प्रोग्राम बनाकर। मैं अभी जाकर मम्मी जी से कहती हूं।”शुभ्रा बहुत-बहुत खुश थी।
स्वरचित, अप्रकाशित गीता वाधवानी दिल्ली