एक नई पहल – सीमा प्रियदर्शिनी सहाय  : Moral stories in hindi

“आ गए आप… क्या कहा लड़के वालों ने?”

“ उन लोगों ने सब ठीक है…!”ठंडी सांस लेते हुए प्रमोद बाबू ने कहा।

“ जरा एक कप चाय पिला दो।थोड़ी थकान उतार लूं।”

“अभी लाई।” यह कहकर उनकी पत्नी मानसी देवी चाय बनाने चली गई। 

चाय बनाते हुए उनकी आंखों से आंसू निकल आए। कितना मुश्किल काम है… बेटी का ब्याह करना।

पता नहीं कैसे पार लगेगा….!! अभी सोनी की शादी भी तय नहीं हुई है और लड़के वालों का मुंह दहेज के लिए फटा जा रहा है…!! उसके बाद प्रिया और लवी दोनों ही तैयार हो जाएंगी। कहां से हो पाएगा…? कैसे करें… लड़के वालों का मुंह बंद ही नहीं होता। 

अब पूरे समाज में हमारी जगहसाई  हो जाएगी अगर हम इस शादी से इनकार करेंगे तो…!!! क्या करें न करें समझ ही नहीं आ रहा है…!!!” 

वह उधेड़बुन में फंसी हुई चाय लेकर ड्राइंग रूम में आई, जहां प्रमोद जी शून्य भाव से बाहर सड़क की ओर देख रहे थे।

“लीजिए जी चाय पीजिए!” प्रमोद जी ने चाय का कप उठा लिया। चाय का सिप लेते हुए उन्होंने कहा

“मानसी, चाय बहुत अच्छी बनाती हो…!सारा सिर दर्द छूमंतर हो जाता है।” मानसी मुस्कुरा तो दी।

प्रमोद जी का दर्द तो छू मंतर हो गया मगर उनका दर्द कौन दूर करेगा!!

उन्होंने धीरे से पूछा 

“और लड़के वाले क्या बोल रहे थे?”

“ और क्या बोलेंगे… उनकी डिमांड कम नहीं हो रही… पता नहीं किस ग्रह में उस घर में रिश्ता पक्का करने गया था! अभी तो सगाई की तिथि ही मुश्किल से पक्की हुई है… और उसे पर उन लोगों का इतना नखरा…!!!

सगाई में इतनी खातिरदारी चाहिए जितना लोग बाराती में भी नहीं मांगते… अभी इतना मुंह फट रहा है तो फिर शादी में क्या करेंगे?”

“आपने क्या कहा? मानसी जी ने धीरे से पूछा… हां तो नहीं कर दिया?”

“न करने का भी तो प्रश्न ही नहीं था… अभी कुछ बोला नहीं हूं। एक-दो दिन का समय लिया हूं।”

“ मुझे वे लोग जंच नहीं रहे हैं…!”मानसी जी ने अपनी असमर्थता जताई।

“ लड़का बहुत अच्छा है, मानसी! हमारी बिटिया सुखी रहेगी। एक बार शादी हो जाए फिर सारे मुंह बंद हो जाते हैं।” 

मानसी जी कुछ बोलती उससे पहले ही उनकी दोनों बेटियां सोनी और प्रिया तैयार होकर ड्राइंग रूम में आईं।

सोनी ने अपनी मां से कहा 

“मां हम लोग कॉलेज जा रहे हैं।”

“ ठीक है बिटिया जाओ…! ठीक से जाना।” “हां मां प्रिया ने जवाब में कहा। 

जाते हुए सोनी रुक कर पीछे मुड़ी और मानसी जी से बोली 

“मां पापा आप दोनों से मुझे कुछ बात करनी है।”

“ क्या बोलो ?”प्रमोद जी ने कहा।

“अभी नहीं पापा, आप थक कर आए हैं। अभी आप आराम कीजिए। जब मैं कॉलेज से आऊंगी फिर बात करेंगे।!”

“ ठीक है बिटिया।”  प्रमोद जी ने कहा और चाय पीने लगे।

सोनी और प्रिया कॉलेज चली गई ।

“आखिर इसे क्या बात करना होगा?क्या कहना चाहती है सोनी…?”मानसी जी का दिल धड़क उठा।

“मुझे कैसे पता चलेगा? दिन भर अपनी बेटियों के साथ तुम रहती हो। मैं थोड़े ही रहता हूं…!”

“कहीं इसने सारी बात तो नहीं सुन ली…!या फिर कहीं अपनी मरजी से शादी तो नहीं कर रही है यह?”

दिन भर उधेड़बुन में  ही मानसी जी खोई रहीं।

उनका अनुमान कहीं भी फिट नहीं बैठ रहा था।

कॉलेज से आने के बाद  शाम को सब लोग एक साथ ड्राइंग रूम में बैठे।

मानसी जी ने अपनी छोटी बेटी प्रिया को कहा

“ प्रिया आज तुम चाय बनाओ।”यह कह कर उन्होंने प्रिया को वहां से हटा दिया।

 फिर वह सोनी की ओर मुड़कर बोली

 “बताओ सोनी, दिन में तुम क्या बोलना चाह रही थी? अभी यहां कोई भी नहीं है।”

“ मां पापा मैं आप लोगों से कुछ कहना चाहती हूं। आप लोग प्लीज मेरी बात को ध्यान से सुनिएगा।

“मैं कोई अनपढ़, जाहिल लड़की तो हूं नहीं कि मेरी शादी के लिए आप लोग इतना परेशान हो रहे हैं। 

लड़के वाले आप लोगों को किस हद तक जलील कर रहे हैं वह मैं देख रही हूं।” 

सोनी के बात पूरी भी नहीं हुई थी कि मानसी जी ने उसे टोकते हुए कहा 

“यह तो इस समाज का नियम है बिटिया। लड़की की शादी को ऐसे ही  तपस्या थोड़े कहा जाता है। दान दहेज के बिना लड़की की शादी कहां होती है? तुम चिंता मत करो तुम्हारे पापा सब कुछ ठीक करेंगे।”

“ मगर मां मेरी बात सुन तो लो…!” सोनी अपनी मां से मनुहार करते हुए बोली। 

अभी कुछ और बात होती उससे पहले ही प्रमोद जी का मोबाइल बजने लगा।

लड़के वालों का फोन था।

प्रमोद जी उनसे जी…जी कर बातें कर रहे थे।

फोन रखने के बाद उन्होंने कहा

“ अब उन्हें मारुति की गाड़ी नहीं चाहिए उन्हें महिंद्रा की  ब्लैक एक्सयूवी 700चाहिए।स्टील का डिनरसेट उन्होंने रिजेक्ट कर दिया है।अब चांदी का डिनर सेट चाहिए। उसके साथ पूरे घर भर के लिए बनारसी साड़ी  चाहिए।

उसके अलावा बाराती के खातिरदारी और लड़की के साथ जो विदाई का सामान जाएगा वह तो जाएगा ही। मतलब…लगभग एक करोड़ का खर्चा…हो जाएगा।”

मानसी जी चिढ़ गई। उन्होंने कहा 

“जानते हैं जी, हम अपने समाज को खुद ही बर्बाद कर रहे हैं। हमें अपने अंदर एक नई सोच जागृत करनी चाहिए… इतनी हिम्मत देनी चाहिए कि हमारी बेटियां कुछ कर ले। समाज को बदलने की हिम्मत रखनी चाहिए।

प्रमोद जी कुछ नहीं बोले। वह उठकर अंदर चले गए। जब एक बेटी में 60-70 लाख का खर्च होगा तो बाकी सब में लेकर दो-तीन करोड रुपए और फिर बेटियों का आना-जाना उनके बच्चे त्योहार सभी के टोटल खर्च लेकर कहां से आएंगे इतने पैसे? एक कॉलेज के प्रोफेसर ही तो है वह कोई धन्ना सेठ तो नहीं!”

“पापा चाय!”प्रिया के बुलाने पर प्रमोद जी ड्राइंग रूम में आए। 

उन्होंने अपनी बड़ी बेटी सोनी से पूछा 

“बेटी तुम अपनी मां से क्या बोल रही थी…?”

सोनी ने डरते हुए अपने पिताजी से कहा “पापा मैं अभी शादी नहीं करना चाहती हूँ बल्कि जो शादी अपने तय किया है वहां तो मैं करने ही नहीं चाहती।

 इतने लालची लोगों का भरोसा नहीं। आज दहेज को लेकर मुंह खोल रहे हैं। कल दहेज को लेकर मुझे जलील करेंगे और फिर कहीं मुझे मार ना डालें। 

मैं  ये शादी नहीं करना चाहती और करूंगी तो अपनी मर्जी से जो मेरी उसूलों पर चले मेरे सिद्धांतों को माने। 

…वह थोड़ा ठहरी फिर उसने आगे कहा…”और  दूसरी बात बीएड में मेरे हाइएस्ट मार्क्स के आधार पर मेरा चयन  प्लस टू कॉलेज में मे हो गया है। 

यह देखिए पापा…!,सोनी ने अपने साथ के कागज अपने पिता को दिखाते हुए कहा।

“ क्या बात कर रही है बेटी… 20,000 की तनख्वाह…!” प्रमोद जी खुशी से किलक उठे।

“हाँ पापा, मैं नौकरी करना चाहती हूं।अपनी जिंदगी जीना चाहती हूं।यही बात मैं मां से बोल रही थी…!”

“बिल्कुल बेटा…!, तू शौक से नौकरी कर और बिल्कुल अपनी मर्जी से शादी करना। अब मैं यह शादी इस दहेज रुपी जंगली जानवरों को आज ही मना कर देता हूं।” प्रमोद जी ने फोन उठाया और लड़के वालों को फोन लगाकर कहा

“ शर्मा जी हम आपको इतना दहेज नहीं दे पाएंगे हम क्षमा प्रार्थी हैं। आप कहीं और अपने लड़के के लिए लड़की देखिए।”

एक नई सुबह के आने की खुशी…  पूरे परिवार के चेहरे पर एक सुख भरी मुस्कराहट आ गई थी।

प्रमोद जी ने एक नया पहल शुरू किया था,अपने बच्चियों को एक खुला आकाश देकर।

सोनी और प्रिया दोनों खुशी से मुस्कुरा दीं।

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सीमा प्रियदर्शिनी सहाय

# बेटियाँ जन्मोत्सव 6th

(कहानी नंबर-5)

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 मौलिक और अप्रकाशित

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