सुख-दुःख के रंग अपनो के संग – स्नेह ज्योति : Moral stories in hindi

भोर होते ही दरवाज़े की घंटी बजने लगी । दरवाज़ा खोलने में देर होने पर बार बार बजने लगी । तभी प्रतिभा उठी…..रुक जाओ भाई कौन है जो इतनी सुबह-सुबह शोर मचा रहा है । दरवाज़ा खोलते ही अपने बेटे को सामने देख प्रतिभा ख़ुशी से फूली नही समा रही थी । विप्लव तुम आ गए कह उसे गले लगा लिया । बाहर इतना शोर सुन दास बाबू भी उठकर आ गए ।

बाबा आप कैसे है ?

हम तो ठीक है ! तुम बताओ फ़ुरसत मिल गयी आने की …. ज़रूर कुछ काम होगा वरना हम तो तुम्हें बुलाते बुलाते थक गए । विप्लव बाबा से नजरे चुराता हुआ……दरसल मेरे ऑफ़िस का काम था । तो मैंने सोचा तीन-चार दिन आपके पास ही रह जाता हूँ ।

विप्लव की बात सुन दास बाबू मन ही मन कहने लगे देखा मैंने तो कहा ही था हमसे मिलना तो बस एक बहाना है । तभी प्रतिभा चाय नाश्ता लेकर आती है और विप्लव को अपने हाथों से नाश्ता कराती है । माँ आपके हाथों में आज भी वोही स्वाद है । बैंगलुरु मैं आपके खाने को बहुत मिस करता हूँ ।

दास बाबू बोले क्यों बहू खाना नही देती ?? नही बाबा वो बनाती है पर माँ के हाथ का स्वाद कहाँ ….. उनकी बातों को बीच में रोकते हुए प्रतिभा ने पूछा बेटा बहू की डिलीवरी डेट कब की है । बस माँ तीन महीने बाद है आप लोग पहले ही आ जाना । मैं तो आ नहीं सकता क्योंकि मेरा वहाँ मन नहीं लगता बोल दास बाबू उठ कर चले गए । बेटा तुम चिंता मत करो मैं तो आ जाऊँगी ।

ऐसे ही वक्त गुजरता चला गया और मिष्ठी की प्रेगनेंसी का वक्त पूरा हो गया । विप्लव अपनी माँ के साथ मिष्ठी को हॉस्पिटल लेकर जाता है । थोड़ी देर में नर्स बाहर आकर विप्लव को बताती है कि बेटा हुआ है । यें सुन सब बहुत खुश होते है ।तीन दिन बाद विप्लव मिष्ठी और बच्चे को ले घर आ गया । घर आकर जब प्रतिभा ने मिष्ठी को बच्चे को दूध पिलाने के लिए बोला तो उसने साफ मना कर दिया । मैं ये सब नही करूँगी । ये सुन प्रतिभा को बहुत बड़ा झटका लगा एक माँ अपने बच्चे के लिए ऐसा कैसें कह सकती है । फिर प्रतिभा ने सोचा कि शायद बहू अभी अपने आपको कमजोर महसूस कर रही है। कई बार यें सब अपनाने में समय लगता है । यह सोच वो चुप रही और बच्चे को ऊपर का दूध पिलाने लगी । एक हफ़्ता हो गया लेकिन मिष्ठी ने बच्चे को गोद में भी नही लिया बल्कि उसके रोने पर वो ग़ुस्सा करने लगी । ये सब बातें प्रतिभा ने जब अपने बेटे को बताई तो उसे भी बहुत आश्चर्य हुआ ।

अगले दिन वो उसे डॉक्टर के पास लेकर गए तो डॉक्टर ने उसके कुछ टेस्ट किए और बताया की उन्हें डिप्रेशन की बीमारी हो गयी है ।

आप क्या कह रही है डॉक्टर ! माना वो गर्भावस्था के समय थोड़ी मूडी हो गई थी । लेकिन डिप्रेशन कैसे हो सकता है?? डॉक्टर विप्लव को समझाते है “कि एक महिला को गर्भावस्था के दौरान शारीरिक और मानसिक पीड़ा से गुजरना पड़ता है । हार्मोन में बदलाव भी इसका एक कारण है । गर्भावस्था के दौरान जब वह अवसाद का अनुभव करती है तो उसे प्रीनेटल डिप्रेशन हो जाता है “। कई बार बच्चों को जन्म देने के बाद भी उनका मानसिक संतुलन ठीक नहीं होता । मैं इनको दवाइयाँ देती हूँ आप बस इनकी ख़ुशी का ख़्याल रखे । धीरें-धीरें सब ठीक हो जाएगा ।

प्रतिभा और विप्लव दोनों परेशान अपने घर वापस आ गए । दिल्ली से दास बाबू प्रतिभा को वापस बुलाने लगे । बच्चा उन दोनों की ज़िम्मेदारी है तुम कब तक उसका ध्यान रखोगी वापस आ जाओं । बहू अब पहले से ठीक है और वो बच्चे के साथ जितना रहेगी उतना ही उसका लगाव बढ़ेगा । दास बाबू के आगे प्रतिभा की एक ना चली और मन में हज़ारो सवाल हज़ारों शंकाए लिए वो वापस आ गयी ।

एक दिन जब मिष्ठी अपने ऑफ़िस का काम कर रही थी तो बच्चे के रोने की आवाज़ उसके कानो को चीरने लगी और वो ग़ुस्से में बच्चे को मारने चली तभी आया ने रोक दिया । बस फिर उस आया को काम से निकाल दिया गया । जब मिष्ठी थोड़ी ठीक होती तो भी वो बच्चे को बस थोड़ी देर ही खिलाती । यह सब देख विप्लव भी बहुत परेशान रहने लगा । ऐसा लगने लगा कि ज़िंदगी बहुत बेरंग और बेज़ार हो गयी है ।

उधर दिल्ली में भी प्रतिभा का मन उचाट रहने लगा । दास बाबू की वजह से वो बेटे के पास ज़्यादा रह नही सकती । इसी चक्कर में प्रतिभा का एक पैर दिल्ली तो एक पैर बंगलुरु में रहता । बहू की हालत देख प्रतिभा ने फ़ैसला लिया कि जब बच्चे को ऊपर का ही दूध पिला कर पालना है तो मैं इसे अपने साथ अपने घर लेकर चली जाती हूँ । बार-बार आना मेरे लिए भी मुश्किल है । विप्लव के पास और कोई चारा नही था उसे अपनी माँ की बात माननी पड़ी । लेकिन प्रतिभा को बस एक बात का डर था कि दास बाबू वैसे ही अपने बेटे से चिढ़ते है और इसे देख पता नहीं कैसा बर्ताव करेंगे ।

प्रतिभा जब बच्चे को लेकर घर आयी तो दास बाबू ने प्रतिभा को कुछ नहीं कहा और बच्चे को अपनी गोद में उठा उसे गले लगा लिया । बच्चे को अपने हाथों में ले उन्होंने प्रतिभा को शुक्रिया कहा और कहने लगे कि तुम बहुत बहादुर हो । जो तुमनें इस उम्र में इस बच्चे को पालने का फ़ैसला किया है ।अब से इस बच्चे को हम वैसे ही पालेंगे जैसे विप्लव को पाला था । ये सुन प्रतिभा बहुत खुश हुई और ऐसा लगा कि रिश्तों के जो रंग कहीं खो गए थे वो अब नए रूप में वापस आ गए है । विप्लव और मिष्ठी भी कभी-कभी घर आते । लेकिन मिष्ठी का अपने बच्चे के साथ लगाव ना बन पाया । ये बात जानते हुए भी परिवार ने मिष्ठी का साथ नहीं छोड़ा ।सब उसे समझ्ने की कोशिश करते । शायद एक बेहतर साथ और विश्वास से एक दिन मिष्ठी भी नए रंगो को क़बूल कर ले ।

दोस्तों गर्भावस्था के दौरान कई बार महिलाओं को इस बीमारी का सामना करना पड़ता है । लेकिन कुछ लोग महिला को ही पागल बोल उससे सब रिश्ते तोड़ आगे बढ़ जाते है । हमें ऐसी महिलाओं का साथ देना चाहिए नाकि उन्हें दोष देना चाहिए । जहां तक हो इस बारे में बात करे और खुल कर प्रचार करे ।

#वाक्य प्रतियोगिता

# बेरंग से रिश्तों में रंग भरने का समय आ गया है

स्वरचित रचना

स्नेह ज्योति

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