तुम्हारी माँ- डॉ अनुपमा श्रीवास्तवा

मैके से विदा होकर ससुराल आने के बाद सिमी बहू होने की सारी रस्में निभाते- निभाते चूर हो गई थी। वैसे भी ल़डकियों को शादी में सप्ताह दिन पहले से ही अनेकों रस्म-रिवाज भूखे प्यासे निभाने पड़ते हैं ।सो थकान के कारण वह बैठे बैठे ऊँघ रही थी। सिमी को सबने मिलकर उसे अपने कमरे … Read more

आक्रोश का लावा  – रंजू अग्रवाल ‘राजेश्वरी’

अगला नाम है …..रंजीता  गर्ग   माइक पर रंजीता  के नाम की घोषणा होते  ही पूरा हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा ।मंच पर जाने से पहले रंजीता  ने आंख बंद कर अपने इष्ट देव को प्रणाम किया ,फिर बड़ी दीदी के पैर छुए ।रंजीता  को आज  उसकी पुस्तक ‘आपबीती’ के लिए सम्मानित किया जा … Read more

पैसा बोलता है – शुभ्रा बैनर्जी

बेचारी वो कभी नहीं थीं,मां बेचारी नहीं होतीं,शक्ति होतीं हैं परिवार की।सरला दो बेटों और एक बेटी की मां थी।पति उस शहर में सरकारी नौकरी करते थे,और सरला स्वयं एक शिक्षिका थीं।पति ने अपनी नौकरी रहते ही बेटी और एक बेटे की शादी कर दी थी। रिटायरमेंट के बाद छोटे बेटे की शादी करने का … Read more

वक्त का इंसाफ – वीणा सिंह

सुमी का फोन सुबह सुबह देख कर मुस्कुरा उठी.. बचपन की सहेली..सुमी ने एक सांस में हीं कह डाला जान तुझे याद है मेरी छोटी बहन सेजल.. एचडीएफसी बैंक में पीओ बनकर तुम्हारे शहर में तीन महीने पहले हीं गई है.. उसके पति दूसरे शहर में जॉब करते हैं इसलिए शनिवार और रविवार को रहते … Read more

ज्योति बनी ज्वाला – विभा गुप्ता   

   ” बस सर, अब बहुत हो चुका…., आप अभी के अभी मेरे घर से निकलिये।” चीखते हुए ज्योति ने एक हाथ से अपने कंधे पर रखा अविनाश सर के हाथ को झटक दिया और दूसरे हाथ से उनका काॅलर पकड़कर उन्हें बाहर की तरफ़ धक्का दे दिया।        ज्योति जब नौवीं कक्षा में थी तब वह … Read more

आक्रोश – डाॅ संजु झा

वर्षों से  अन्तःस्थल में जज्ब किया हुआ दीनू का आक्रोश आज चरमसीमा पर था।दीनू वर्षों से श्यामचन्द के यहाँ मजदूरी करता आया है।जब वह छोटा था तो अपने पिता रामू के साथ श्यामचन्द के यहाँ आया करता था।पिता दिनभर उनके यहाँ मजदूरी करता और वह उनके घर के छोटे-मोटे काम कर दिया करता था।उसके एवज … Read more

क्या पुरुष बांझ नही हो सकता!! – अंजना ठाकुर

अरे इस बांझ को कौन ने बुला लिया आज मेरी बहू की सतमासे की पूजा है खुद के तो बच्चे हुए नही अब मेरी बहू को नजर लगाएगी जा चली जा यहां से कांति आंखे निकालती हुई कुसुम को खा जाने वाली नजरों से देख रही थी कुसुम कांति की बड़ी बहू है जिसकी शादी … Read more

 आक्रोश की दिशा बदल गई – पुष्पा जोशी

आज सोचता हूँ, कि पिताजी के प्रति मेरे मन में जो आक्रोश था,उसकी दिशा अगर माँ ने, समय पर न पलटी होती तो क्या मैं आज जिस मुकाम पर हूँ, उस पर पहुँच पाता….?कभी नहीं….हो सकता है, मैं अपराधी बन जाता, जैल की सलाखों के पीछे होता या हो सकता है कहीं मजदूरी कर रहा … Read more

 बुढ़ापा –  हेमलता गुप्ता

वृद्धावस्था आज के जीवन की कड़वी हकीकत या बीमारी कुछ भी कह दीजिए ,आना सबको है ;पर मानना कोई नहीं चाहता! रघुनंदन जी शहर के प्रसिद्ध वकील थे और शहर में उनका बड़ा नाम सम्मान था !उनके पांचों बच्चे हर समय कौशल्या जी को घेरे रहते थे! हर समय उनके आगे पीछे मंडराते रहते थे! … Read more

सास-बहू का किस्सा – विभा गुप्ता

” क्या मिसेज़ गुप्ता, मैंने घर में कथा करवाई थी,आप आई क्यों नहीं?”        दरवाज़ा खोलते ही शिकायती लहज़े में मिसेज़ शर्मा पूछ बैठी तो मैंने पूछा,” आप बताइये, पूजा और कथा,सब बढ़िया से हो गया ना?”       ” हाँ जी, सब अच्छे- से हुआ।जानती हैं, रीतेश,पोते को लेकर आया था।पूरे तीन महीनों के बाद मैंने बंटी … Read more

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