ज्योति बनी ज्वाला – विभा गुप्ता   

   ” बस सर, अब बहुत हो चुका…., आप अभी के अभी मेरे घर से निकलिये।” चीखते हुए ज्योति ने एक हाथ से अपने कंधे पर रखा अविनाश सर के हाथ को झटक दिया और दूसरे हाथ से उनका काॅलर पकड़कर उन्हें बाहर की तरफ़ धक्का दे दिया।

       ज्योति जब नौवीं कक्षा में थी तब वह अविनाश सर से गणित पढ़ती थी।उसके घर के पास ही सर एक कोचिंग सेंटर में गणित की क्लास लेते थें।उनके क्लासेज़ से ज्योति को बहुत फ़ायदा हुआ।अच्छे अंक देखकर उसके पिता ने सोचा कि दसवीं में तो बोर्ड है और ग्रुप में पढ़ने से उसपर फ़ोकस कम रहेगा।ज्योति को अलग से सर पढ़ाये तो अच्छा रहेगा।

       दसवीं कक्षा की पढ़ाई शुरु होते ही ज्योति के पिता ने अविनाश सर से बात की तो वो तुरंत तैयार हो गये और सप्ताह में तीन दिन वो ज्योति को उसके घर आकर पढ़ाने लगें।ज्योति जो भी डाउट्स पूछती, सर उसे बहुत धैर्य से समझाते।उनकी डेडिकेशन देकर उसके पिता बहुत खुश थें।ज्योति की माँ जब भी उन्हें चाय- नमकीन देने जातीं तो सर उन्हें बड़े आदर से नमस्कार कहते।

          दो महीने के बाद ज्योति के स्कूल में क्लास-टेस्ट हुआ जिसमें ज्योति को गणित में फुल मार्क्स मिले तब उसने अपने सर,अपने गुरु के चरण-स्पर्श किये।सर ने भी उसके कंधे पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया।

         अब उस दिन के बाद से अविनाश सर उसे पढ़ाते समय एक-दो बार उसके कंधे पर हाथ रखने लगे।जब ये बार- बार होने लगा तब उसे कुछ ठीक नहीं लगा और उसने थोड़ी दूरी बना ली।अविनाश सर के बारे में कुछ भी गलत सोचना उसे सही नहीं लग रहा था परन्तु कुछ गलत हो रहा है,इस बात का भी उसे एहसास हो रहा था।ज्योति के सतर्क हो जाने पर कुछ दिन ठीक रहा है, सर उसे पढ़ाते और चले जाते।लेकिन कुछ दिनों के बाद सर फिर से वही हरकत करने लगे,बेवजह कभी उसके हाथ पर अपना हाथ रख देते तो कभी कंधे को सहलाने का प्रयास करते।तब उसने सर को चेतावनी देते कहा कि अगर आपने अपनी बेहूदा हरकतें बंद नहीं की तो मैं सबको आपकी काली करतूत बता दूँगी और क्लास भी बंद कर दूँगी।




       ” साॅरी ज्योति, वो क्या है ना कि कभी-कभी ऐसा हो जाता है पर अब नहीं होगा” कहते हुए उनके चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान थी जिसे देखकर ज्योति अंदर ही अंदर घुटकर रह गई।उस दिन उसने तय कर लिया कि ये मंथ(माह) खत्म होते ही वह सर से पढ़ना बंद कर देगी और आगे की तैयारी स्वयं कर लेगी।पर आज तो अविनाश सर ने हद ही कर दी।एक सवाल का उत्तर बताने के बाद झट-से उसके कंधे पर हाथ रख दिया।वह जब तक उनका हाथ हटाती तब तक में उनका हाथ ज्योति की पीठ पर सरक गया और तब वह ज्योति से ज्वाला बन गई।चीखते हुए उनका हाथ झटका और काॅलर पकड़कर उन्हें बाहर कर दिया।

    बेटी की चीख सुनकर ज्योति की माँ वहाँ आईं और अंदर का दृश्य देखकर अचंभित हो गईं।ज्योति बोली,” माँ, मुझे इस हैवान से नहीं पढ़ना है।ये मेरे…”रोते हुए उसने सारी बात बताई तो अविनाश सर हकलाने लगे,” न..हीं ..मैड..म, ज्यो…।” तब ज्योति की माँ ने चटाक!, सर के गाल पर एक तमाचा जड़ दिया और उन्हें आउट!कहकर अपने घर का दरवाज़ा बंद कर लिया।

                         विभा गुप्ता                         स्वरचित 

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