सास-बहू का किस्सा – विभा गुप्ता

” क्या मिसेज़ गुप्ता, मैंने घर में कथा करवाई थी,आप आई क्यों नहीं?”

       दरवाज़ा खोलते ही शिकायती लहज़े में मिसेज़ शर्मा पूछ बैठी तो मैंने पूछा,” आप बताइये, पूजा और कथा,सब बढ़िया से हो गया ना?”

      ” हाँ जी, सब अच्छे- से हुआ।जानती हैं, रीतेश,पोते को लेकर आया था।पूरे तीन महीनों के बाद मैंने बंटी को अपनी गोद में लिया था।पूरी तैयारी तो बहू ने ही की थी।हम पति-पत्नी तो बस बैठे ही थें।बहू ने ही पंडित जी को…..।” चहकते हुए वे बीते कल का पूरा वृतांत सुना रहीं थीं और मेरे पति मुझे देखकर मुस्कुराते हुए अपने हाथ की अंगुलियों से मुझे पाँच का इशारा किया।जवाब में मैंने भी मुस्कुराते हुए अपनी गर्दन हिलाते हुए सहमति दे दी।

      चार साल पहले मैं जब शहर में नई-नई आई थी तब मिसेज़़ शर्मा ने मेरी बहुत मदद की थी।उम्र में वो मुझसे काफ़ी बड़ी थीं,उनका बड़ा बेटा अपने परिवार के साथ मुंबई में सेटेल था और छोटा बेटा उन्हीं के पास था।छोटे के शादी उन्होंने खूब धूमधाम से की थी।रिसेप्शन में मिस्टर शर्मा ने अपने ऑफ़िस के सभी स्टाफ़ को आमंत्रित किया था।साल भर बाद मिठाई का डिब्बा लेकर बहू की खुशखबरी सुनाने आई थीं तो कह रही थीं कि मिसेज़ गुप्ता, बहू की गोद भराई में आपको भी मेरी मदद करनी होगी।मैंने हँसते हुए कहा था,” हाँ-हाँ, क्यों नहीं, आखिर हम पड़ोसी हैं और आपकी बहू मेरी बहू है।”

       पोते के जन्मोत्सव पर तो उन्होंने खूब ठुमके लगाये थें।फिर तो वो अपने पोते को नहलाने-धुलाने और उसके साथ खेलने में व्यस्त हो गईं।

       तीन-साढ़े तीन महीने पहले की बात है।सुबह-सुबह ही वे गुस्से-से दनदनाती हुई मेरे पास आईं।मैंने बैठने के लिए कुरसी आगे की तो कहने लगीं, ” मैं आपको कह देती हूँ मिसेज़ गुप्ता, अब उसकी शक्ल कभी नहीं देखूँगी।”

       मैं कुछ समझ नहीं पाई,उन्हें पानी पिलाकर शांत किया और फिर पूछा कि बात क्या है? आराम से बताइये, शायद कुछ समाधान हो सके।वो बिफ़र गईं, ” समाधान कैसा? कई दिनों से मैं छोटी के नखरे उठा रही हूँ, अब कल उसका बाप आकर मेरे ही घर में घुसकर मुझे अनाप-शनाप बक गया।पुलिस-कोर्ट की धमकी दे गया।अरे, बेटी-दामाद के झगड़े में मुझे क्यों घसीट रहे हो।बेटे ने कहा कि माँ, रीना अलग रहना चाहती है।मैंने भी कह दिया, जा मर।अब तो उसकी…।”




      ” लेकिन मिसेज़ श…।” मैं कह ही रही थी कि पीछे खड़े मेरे पति ने मुझे चुप रहने का इशारा किया।मिसेज़ शर्मा अपना मन हलका करके चली गईं।मैंने तुनक कर इनसे कहा,” ये क्या बात हुई, हम कुछ बोलें भी ना।तुरन्त चुप रहने को कह दिया, क्योंऽऽ?”

        हँसकर पतिदेव बोले, ” देवी जी, ये सास-बहू के किस्से हैं।इनके बीच में दखलअंदाज़ी करना बेवकूफ़ी है।सास-बहू तो रोज झगड़ती हैं और साथ बैठकर रोज चाय भी पीती हैं।तुम तो बस इनकी बात सुन लिया करो,उनका मन हल्का हो जायेगा।देख लेना,दो-चार दिनों बाद फिर आकर बहू की बड़ाई करेंगी।”

      पर मुझे तो यकीन ही नहीं हुआ।इतना झगड़ा होने के बाद सुलह! असंभव।उन्होंने कहा,” लगी शर्त पाँच सौ रुपये की।” मैं तो काॅन्फ़िडेन्ट थी,कह दिया, ” लगी..।”

    आखिर पतिदेव की बात ही सच साबित हुई।लेकिन मुझे अपनी हार का ज़रा भी अफ़सोस नहीं हुआ।परिवार की खुशियाँ लौट आयें, सब मिलजुल कर रहें,हम तो यही चाहते हैं।पोते को देखने और बहू का साथ मिलने की खुशी मिसेज़ शर्मा के चेहरे से स्पष्ट झलक रही थी।

        मैंने पर्स से पाँच सौ रुपये का एक नोट निकाल कर पतिदेव के हाथ में रख दिया।उन्होंने मुस्कुराते हुए मुझे नोट वापस किया और बोले,” ये तुम्हारे चुप रहने का इनाम है।”🙂

                      विभा गुप्ता                        स्वरचित 🖋

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