वृद्धावस्था आज के जीवन की कड़वी हकीकत या बीमारी कुछ भी कह दीजिए ,आना सबको है ;पर मानना कोई नहीं चाहता!
रघुनंदन जी शहर के प्रसिद्ध वकील थे और शहर में उनका बड़ा नाम सम्मान था !उनके पांचों बच्चे हर समय कौशल्या जी को घेरे रहते थे! हर समय उनके आगे पीछे मंडराते रहते थे! कभी-कभी बच्चे कहते… जब मैं बड़ा हो जाऊंगा मां को अपने साथ ही रखूंगा !सभी बच्चे इन्हीं बातों पर लड़ते! कई बार कहते मां मुझे ज्यादा प्यार करती है!
और दोनों पति पत्नी उनकी बातों पर खुश होते रहते! धीरे-धीरे बच्चे भी बड़े होने लगे! पढ़ाई के लिए बाहर भी जाना पड़ा! और नौकरी के लिए बच्चे बाहर ही बस गए! बेटियां भी ससुराल चली गई! साल में एक या दो बार तीनों बेटे और दोनों बेटियां अपने परिवार सहित आते थे !कुछ समय बाद रघुनंदन जी अचानक चल बसे !जीवनसाथी का यू साथ छोड़ जाना कौशल्या जी के लिए किसी सदमे से कम नहीं था! फिर भी हंसते रोते जिंदगी चल रही थी!
अभी तक कौशल्या जी पूरे जोश से सारे घर का काम करती थी, किंतु अब शरीर में और मन् ने उनका साथ देना कम कर दिया था! बच्चे भी खास मौकों पर आते और दो-तीन दिन साथ रहकर चले जाते! एक दिन कौशल्या जी ने सभी बच्चों को अपने पास बुलाया, और बोला कि अब मुझसे यह घर नहींसंभलता! या तो तुम यही रह जाओ या मुझे अपने साथ ले जाओ! अब मुझसे इतने बड़े घर में अकेले नहीं रहा जाता! बेटियां तो ससुराल वाली थी और मां बेटों के होते हुए बेटियों के यहां जाना भी नहीं चाहती थी!
मां की इच्छा सुनकर तीनों बेटों के नीचे से जमीन खिसक गई! कोई भी मां को साथ नहीं रखना चाहता था! मां को साथ ले जाने से उनकी खुशहाल जिंदगी मैं तनाव आ जाता! तीनों बेटे चार चार महीने के हिसाब से मां को ले जाने के लिए बेमन से तैयार हो रहे थे! तीनो भाई आपस में विचार विमर्श कर रहे थे ….की मां को ले जाने से किस किसको क्या क्या परेशानियां आ सकती थी! सभी किसी तरह से इस मुसीबत से बचना चाहते थे!
तभी उनके बड़े जमाई सा जो बहुत कम बोलते थे; आज उनका आक्रोश उनकी बातें सुनकर फूट गया !कोई मां को नहीं ले जाना चाहता तो ठीक है, मत ले जाओ… मैं लेकर जाऊंगा मां को? मेरे साथ एकमा रहती है दूसरी भी खुशी से रह लेगी! धिक्कार है …तुम जैसी नालायक संतानों पर जिसकी खातिर मां ने अपनी हर खुशी तुम पर न्योछावर कर दी, तुम्हें ऊंचे पदों पर पहुंचा दिया? तुम सबसे एक मां की जिम्मेदारी नहीं ली जा रही? तुम्हें अपनी मां पर ही शर्म आ रही है? उनके त्याग को इतनी आसानी से कैसे भूल गए? आज अगर पापा जिंदा होते तो कभी ऐसा नहीं होता!
समाज सेवा के नाम पर तो सबसे आगे रहते हो! घर की मां तुम्हें नजर नहीं आती? बुढ़ापा तो सबका ही आना है; इतना सुनते ही सभी के सिर शर्म से झुक गए! और सभी को अपनी गलती का एहसास हो गया! और मां को सभी अपने साथ खुशी खुशी ले जाने की जिद करने लगे!
दोस्तों कभी-कभी सही समय पर आक्रोशदिखाना भी बहुत जरूरी होता है
हेमलता गुप्ता
स्वरचित
#आक्रोश