आज सोचता हूँ, कि पिताजी के प्रति मेरे मन में जो आक्रोश था,उसकी दिशा अगर माँ ने, समय पर न पलटी होती तो क्या मैं आज जिस मुकाम पर हूँ, उस पर पहुँच पाता….?कभी नहीं….हो सकता है, मैं अपराधी बन जाता, जैल की सलाखों के पीछे होता या हो सकता है कहीं मजदूरी कर रहा होता। मैंने बचपन से पिताजी को मॉं पर अत्याचार करते हुए देखा था, बुरी-बुरी गालियाँ देते। मॉं बहुत सीधी सरल थी,
गरीब घर की थी और ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं थी, पिताजी के अत्याचार को चुपचाप सहती रहती, दिन भर काम करती थी। जरा सी चूक हो जाती तो पिताजी भड़क जाते, और माँ को मारते थे। जब मैं बहुत छोटा था, उनके गुस्से को देख रोने लगता, सहम कर छुप जाता। पिताजी के जाने के बाद माँ की गोद में सिमट जाता, उसकी उंगलियाँ मेरे सिर को सहलाती और वे मुझे प्यार से अपने ऑंचल में समेट लेती।
छोटा था, पर माँ के दर्द को समझता था। उनके ऑंसू देखकर मुझे पीड़ा होती और अपने नन्हें हाथों से उन्हें पोछने की कोशिश करता। पिताजी के प्रति हमेशा मन में एक गुस्से की भावना होती, और सोचता कि वो ऐसा क्यों करते हैं? मैं आठवीं कक्षा में पहुँच गया था, और पिताजी के प्रति मेरा आक्रोश बड़ता जा रहा था। हर पल यही सोचता कि मैं पिताजी के अत्याचार से माँ को कैसे बचाऊँ?
कभी लगता कि पिताजी को इतना मारूं, कि उन्हें भी मालुम हो कि मारने पर कितना दर्द होता है। मेरी कच्ची उम्र थी, और कच्ची बुद्धि। भला बुरा कुछ समझ नहीं आ रहा था, बस माँ को अत्याचार से मुक्ति दिलाना चाहता था।
एक दिन पिताजी ने कुछ ज्यादा पी ली,और किसी बात पर माँ पर बरस रहै थे। गुस्से में उन्होंने, जैसे ही माँ को मारने के लिए हाथ उठाया, मुझसे देखते नहीं बना, और मैने उनका हाथ कसकर पकड़ लिया और उन्हें घूरने लगा। उस समय मेरी ऑंखों में खून उतर आया था। पिताजी इस अप्रत्याशित व्यवहार से अचकचा गए। ज्यादा पी रखी थी, लड़खड़ाते हुए वही पलंग पर गिर गए। माँ मेरा हाथ पकड़ कर उस कमरे से दूर ले गई,और मुझसे कहा- विनय !
यह क्या कर रहा था? मैं जानती हूँ ,तेरे आक्रोश क़ो जो अपने पिताजी के प्रति तेरे मन मे है। मैं यह भी जानती हूँ कि तेरा यह आक्रोश मेरे साथ किये जाने वाले उनके व्यवहार के कारण है। तू मुझे उनके अत्याचार से मुक्त करना चाहता है, पर क्या तू इस तरह मुझे सुखी कर पाएगा। बेटा!तू जानता है, मुझमें इतनी शक्ति नहीं है, और तू भी अपने पैरों पर खड़ा नहीं हुआ है, अगर तेरे पापा ने घर से निकाल दिया तो दर-दर की ठोकरें खाऐंगे।
फिर अपना सारा आक्रोश निकालते रहना ईंट, पत्थरों पर तू सातवीं पास है, नौकरी तो मिलने से रही। अगर तू चाहता है कि तेरी माँ खुश रहै,तो तू अपने इस आक्रोश को, इस जुनून में बदल दे कि तुझे पढ़ लिख कर बढ़ा आदमी बनना है। एक माँ हमेशा बच्चों की तरक्की में खुश होती है। तुझे जब-जब तेरे पिताजी पर गुस्सा आए, तू दुगने उत्साह के साथ पढाई में जुट जाना। तू देखना अपने दुःख के दिन कैसे सुख में बदल जाऐंगे।’ मैं नि:शब्द खड़ा माँ की बात सुनता रहा।
मैंने माँ के कहै अनुसार अपना सारा ध्यान पढ़ाई पर लगाया, ८वीं बोर्ड की परीक्षा में मेरा प्राविण्य सूचि में तीसरा नंबर आया, और आगे पढ़ाई के लिए मुझे स्कालरशिप मिलने लगी। ज्यादा पीने के कारण पिताजी की तबियत बिगड़ने लगी थी, कमजोर हो गए थे और माँ को मारना -पीटना बिल्कुल कम हो गया था। गालियाँ देते थे, मगर उससे वे अपनी ही जिबान बिगाड़ते थे, माँ तो उसकी अभ्यस्त हो गई थी। १२ वीं की परीक्षा में, मैं प्राविण्य सूचि मे प्रथम आया।
फिर मैंने बी. काम किया,और बैंक की परीक्षा उत्तीर्ण की। मेरी बैंक में नौकरी लग गई। अब मैं आत्मनिर्भर बन गया हूँ, मेरे अन्दर एक आत्मविश्वास जाग गया है। माँ हर पल प्रसन्न रहती है। आज मै उनकी सारी आवश्यकता पूरी कर सकता हूँ। उन्हें रंग बिरंगी साड़ियों को पहनने का शोक है, तो मैं उनकी पसंद की साड़ियां लाता हूँ। आज यह सोचकर ही कांप जाता हूँ, कि अगर मैंने अपने उस चरम आक्रोश को गलत दिशा में प्रयोग किया होता, तो माँ का जीवन बदरंग हो जाता। पिताजी जैसे भी हैं, उनका सुहाग है।
आज तो वे बहुत कमजोर हो गए हैं, बिमार रहने लगे हैं उन्हें उनकी करनी का फल ईश्वर दे रहा है। मैं चाहकर भी न उनके प्रति अपने फर्ज से मुंह मोड़ सकता हूँ,और न मेरे मन में उनके प्रति कोमल भावनाऐं आती है। जीवन चल रहा है। अब घर की बागडोर मेरे हाथ में है। मेरी शादी हो गई है, मीरा अभी मायके गई है,अकेले बैठे-बैठे मेरे मन में ये विचार आ रहे हैं, और मैं उनमें खोता जा रहा हूँ।
मेरा ध्यान तब टूटा जब माँ पानी का लौटा रखने मेरे कमरे में आई, ये उनकी रोज की आदत है। वे जानती है कि मुझे रात को प्यास लगती है, पानी पास में नही होता है तो मैं उठने का आलसी, प्यासा ही सो जाता हूँ। माँ के चेहरे पर मुस्कान थी, बोली ‘क्या बात है? मीरा की याद आ रही है।अभी तक जाग रहै हो।’ नहीं माँ ऐसी कोई बात नहीं है, बस पानी पीकर सोता हूँ।’ माँ ने मेरे सिर पर हाथ रखा और मैं मीठी नींद में सो गया।
(मेरी कहानी आपको कैसी लगी,मैंने इस कहानी में यही बताने का प्रयास किया है,कि आक्रोश में उठाया एक गलत कदम जिन्दगी को बर्बाद कर सकता है, अगर समय पर आक्रोश को सही दिशा मिल जाए तो जिन्दगी खुशनुमा बन जाती है। कृपया अपनी प्रतिक्रिया और सुझाव प्रदान कर मुझे अनुग्रहित करे।)
प्रेषक
पुष्पा जोशी
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित
#आक्रोश