“महापुरुष”(भाग 2) – डॉ अनुपमा श्रीवास्तवा : Short Stories in Hindi

Short Stories in Hindi : तभी बुआ किचन में  चली आईं और मूंह बनाते हुए बोलीं-” तुम मुन्ना को बोल रही हो पानी लगाने के लिए… हमारे खानदान में ऐसा नहीं होता! यह सब औरत का काम है समझी। “ खुशी एकदम से गंभीर हो गई और बोली-” जी बुआ जी मैं लगा दूंगी पानी … Read more

आशियाने की छाँव में (भाग 1) – डॉ.अनुपमा श्रीवास्तवा : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : अथर्व और अनन्या दोनों भाई बहन अपना अपना सामान लिए पूरे घर में दौड़ रहे थे। दोनों कभी इस कमरे में जाते कभी उस कमरे में। कभी बाहर वाले कमरे में सामान रख वहीं बैठ जाते। उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि वो कौन से कमरे को अपना … Read more

“प्रतिरोध” ( भाग 2)- डॉ .अनुपमा श्रीवास्तवा : Moral stories in hindi

बुआ बनारसी साड़ी पहनकर माथे पर आँचल डाले बाहर निकली। ये बनारसी साड़ी की भी एक कथा है । बुआ जब विदा होकर ससुराल आई थी तब मैके वाले ने अपने हैसियत से ढेरों साड़ियां दी थीं पर उसमें बनारसी साड़ी नहीं थीं। दुल्हन को साधारण चुनरी में देख बुआ के सास ससुर भड़क गए। … Read more

“प्रतिरोध” ( भाग 1)- डॉ .अनुपमा श्रीवास्तवा : Moral stories in hindi

मानसी बुआ आज बहुत खुश थीं। चंदेरी साड़ी और बालों में गजरा लगाए वह पूरे हवेली में चक्कर लगा रही थीं। खुश होने का कारण भी था उनके बेटे की शादी जो तय हो गई थी। सगुन का दिन आज के लिए ही निकल आया था। लड़की वाले पंहुचने वाले थे।  इतने सालों के बाद … Read more

“भेद नजर का”(भाग 2 ) – डॉ अनुपमा श्रीवास्तवा

शहर के एक महंगे होटल में लड़की देखने की व्यवस्था लड़की वाले ने की थी। लड़की तो समान्य थी। नयन नक्स भी उतने तीखे नहीं थे   लेकिन उनके  खातिर दारी और तैयारियों के चकाचौंध में सभी ने लड़की पसंद कर लिया। लड़की के पिता ने बिन मांगे ही बिदाई में उपहारों की ढेर लगा … Read more

“भेद नजर का”(भाग 1) – डॉ अनुपमा श्रीवास्तवा

सीमा सुबह से तैयारियां कर रही थी। सबके लिए  नाश्ते बनाने के बाद उसे खुद के लिए तैयार होना था। काम इतना बढ़ गया था कि कम होने का नाम ही नहीं ले रहा था। सासु माँ बार- बार किचन में आकर बोल रही थीं “-  बहू जल्दी करो,जल्दी से काम निपटा लो और तैयार … Read more

गिरवी आत्मसम्मान की (भाग 2)  – डॉ. अनुपमा श्रीवास्तवा 

अनुज के पिता ने साफ शब्दों में इंकार कर दिया था। उनका कहना था कि रिश्ता हमेशा बराबर वालों में की जाती है और उनका तो कोई मेल ही नहीं है। कहां राजा भोज और कहां …..। उसपर अनुज ने भी मना कर दिया। उसका कहना था कि उसकी सैलरी हजारों में है, जबकि दीप्ती … Read more

गिरवी आत्मसम्मान की (भाग 1)  – डॉ. अनुपमा श्रीवास्तवा 

तुमको क्या लगा कि तुम्हारे साथ रहता हूँ तो मेरा कोई अस्तित्व ही नहीं है। यह सोचना तुम्हारा भूल भ्रम है। मैंने परिस्थिति वश निर्णय लिया था तुम्हारे साथ रहने का समझी।” “हिम्मत कैसे हुई तुम्हारी जुबान को ऐसी घटिया शब्द निकालने की ।” शादी के बाद  पहली बार अनुज को इस तरह आग बबूला … Read more

ढलती साँझ (भाग – 2 ) – डॉ .अनुपमा श्रीवास्तवा

उन्हें क्या पता था कि दोनों की जिंदगी  रेल की पटरी बन जायेगी और अकेले -अकेले मंजिल तक अपना सफर तय  करेगी । अक्सर छोटा भाई  माँ  को लेकर आता था और एक दिन  बाद  बाबूजी  को लेकर चला जाता था अगले तीन महीने के लिए। उसके बाद तीन महीने तक फोन ही उनके बीच … Read more

ढलती साँझ (भाग – 1 ) – डॉ .अनुपमा श्रीवास्तवा

आज बाबूजी कुछ ज्यादा ही सुबह उठ गये थे। बाहर वाले कमरे से लगातार खट-पट की आवाज आ रही थी। पता नहीं  इतनी सुबह -सुबह उठकर बाबूजी कमरे में क्या कर रहे हैं,देखती हूं जाकर। सुधा उठकर जाने लगी तो अजय ने टोका -“कहां जा रही हो? सो जाओ आराम से नींद हराम करने की … Read more

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