“भेद नजर का”(भाग 1) – डॉ अनुपमा श्रीवास्तवा

सीमा सुबह से तैयारियां कर रही थी। सबके लिए  नाश्ते बनाने के बाद उसे खुद के लिए तैयार होना था। काम इतना बढ़ गया था कि कम होने का नाम ही नहीं ले रहा था।

सासु माँ बार- बार किचन में आकर बोल रही थीं “-  बहू जल्दी करो,जल्दी से काम निपटा लो और तैयार हो जाओ लड़की वाले गाड़ी लेकर हमें लेने आ ही रहे होंगे।”

सबको लड़की देखने जाना था। सीमा जाना तो नहीं चाहती थी लेकिन देवर ने साफ कह दिया था कि वह भाभी की पसंद वाली लड़की से ही शादी करेगा।

दोनों बहनों ने अनेक लड़कियां देखी थीं पर उसने इंकार कर दिया था। उसे सीमा जैसी ही भोली – भाली और सुंदर  लड़की चाहिए थी। जिस लड़की को  सभी  देखने जा रहे थे  वह बड़ी ननद की दूर की रिश्तेदार की बेटी थी।  ननद के ससुराल वाले  बहुत ही धनी मानी थे ।उन लोगों ने ही लड़की देखने की जिद की थी  जिसे परिवार का कोई मना नहीं कर पाया था।

सीमा का देवर  इंजीनियर था तो लड़की भी काफी पढ़ी लिखी थी। शायद इसीलिए बड़ी ननद ने जोर देकर सबको तैयार किया था।

सीमा तैयार होकर कमरे से बाहर निकली तो बड़ी ननद ने टोका-”  सीमा यह क्या पहन लिया है तुमने आउटडेटेड साड़ी है यह l कोई और ढंग की हो तो पहन कर चलो। “

“लेकिन दीदी मेरे पास यही सबसे अच्छी साड़ी थी “-सीमा ने झेपते हुए कहा

बड़ी ननद ने मूंह बनाते हुए कहा-” ओह्ह मैंने भी क्या ही कह दिया तुम्हारे मैके वालों को जितना औकात  था उतना ही दिया  बेचारों ने!”

” एक काम करो मेरी साड़ी लेकर पहन लो वर्ना लड़की वाले कहीं यह न सोच ले कि हमारा ग्रेड उनसे कम है ।”

ननद की बात सीमा के दिल में चुभ गई लेकिन क्या बोलती बड़ी ननद को। उलट कर जबाव देना उसके संस्कार में नहीं था। मन मसोस कर उसने ननद की दी हुई साड़ी पहन ली।

छोटी ननद ने चुटकी लेते हुए कहा-” वाह! भाभी तो इस साड़ी में खूब खिल रही हैं। “

  बड़ी ननद  ने कहा-“हाँ -हाँ सिर्फ सुन्दर होने से नहीं होता है। भेष -भूसा भी सुंदरता बढ़ाने में मदद करता है।”

चलो सब जल्दी गाड़ी बाहर आकर खड़ी हो गईं है। इस तरह के ताने सीमा ने अनेकों बार सुना था पर कभी कोई प्रतिक्रिया नहीं देती थी।

अगला भाग 

“भेद नजर का”(भाग 2 ) – डॉ अनुपमा श्रीवास्तवा

स्वरचित एवं मौलिक

डॉ अनुपमा श्रीवास्तवा

मुजफ्फरपुर ,बिहार

 

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