आशियाने की छाँव में (भाग 1) – डॉ.अनुपमा श्रीवास्तवा : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : अथर्व और अनन्या दोनों भाई बहन अपना अपना सामान लिए पूरे घर में दौड़ रहे थे। दोनों कभी इस कमरे में जाते कभी उस कमरे में। कभी बाहर वाले कमरे में सामान रख वहीं बैठ जाते। उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि वो कौन से कमरे को अपना कमरा बताए।

अपने सामान के ऊपर बैठी अनन्या बोल पड़ी -” अथर्व यहां के सारे कमरे अच्छे हैं समझ में नहीं आता है कि मैं कौन सा कमरा लूँ। “

“हाँ दीदी तुम ठीक कह रही हो मुझे तो पूरा घर ही पसंद है। क्या मस्त घर खरीदा है मम्मा ने हमारे लिए। “

“हाँ अथर्व अब हम लोग मम्मा के साथ खूब मजे से रहेंगे मम्मा को अब जमीन पर नहीं सोना पड़ेगा।”

दीदी, और मुझे जितना देर मन करेगा मैं सोता रहूंगा। है न!  अब मुझे कोई नहीं उठायेगा सुबह सुबह।

  बहन की ओर देखते हुए अथर्व उठ कर खड़ा हो गया और बड़ी मम्मी का नकल करते हुए बोला-” ऐ  जल्दी उठो यहां से …  समझ में नहीं आता है तुमको यह गेस्ट रूम है सुबह- सुबह कोई भी आ सकता है। चलो उठो बाहर जाकर बैठो……।

बचे सामान के साथ दरवाजे के बाहर सीढियों पर खड़ी नेहा बच्चों की बातों को सुनकर ठिठक गई और अपने आसुओं को भरसक रोकने  का प्रयास करने लगी । कुछ पल के लिए वह निढाल सी वही पर बैठ गई अपने  बीते अतीत के साथ।

 

ससुर जी की तेरहवीं बीत चुकी थी। सारे अपने पराये जा चुके थे। जो बच गए थे उनमें तीनों में दो भाई और दोनों बहनें थीं। बहनों की इच्छा थी कि जैसे पहले सब परिवार संग -संग थे वैसे ही अब भी रहें। बहनें तो यही चाहती हैं कि उनका मायका हमेशा आबाद रहे। लेकिन भाभियों के साथ -साथ भाइयों को यह मंजूर नहीं था। उनका कहना था कि बाबूजी थे तो बरगद  की  तरह अपनी छाया में  परिवार को समेटकर रखे हुए थे। जो फले -फुले थे उनका भी चल रहा था और जो ठूंठ थे उनका भी जीवन आराम से कट रहा था, यानि उसकी पूरी जिम्मेदारी बाबूजी पर थी। अपना सारा पेंशन वह परिवार पर लुटाते थे।

पर इस महंगाई के जमाने में सबको साथ लेकर चलना किसी एक के बस की बात नहीं है इसलिए वे बंटवारा चाहते हैं। इस बंटवारे की तरफदारी सबसे ज्यादा दोनों बहुएं कर रही थीं ।

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आशियाने की छाँव में (भाग 2 ) – डॉ.अनुपमा श्रीवास्तवा : Moral stories in hindi

  #कभी_धूप_कभी_छाँव 

स्वरचित एंव मौलिक

डॉ.अनुपमा श्रीवास्तवा

मुजफ्फरपुर,बिहार 

 

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