आशियाने की छाँव में (भाग 2 ) – डॉ.अनुपमा श्रीवास्तवा : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : नेहा तीसरी और सबसे छोटी बहू थी वह सब समझ रही थी कि जेठ जी के द्वारा ठूंठ की संज्ञा किसके लिए है। एक आकस्मिक घटना में काल ने उसके पति को निगल लिया था। वह दो छोटे -छोटे बच्चों के साथ नेहा को जिन्दगी के मरूस्थल में अकेले तपने के लिए छोड़ गये थे। वह तो पति के वियोग में खुद को ही हार जाती पर ससुर जी के वात्सल्य और बच्चों की मासूमियत ने उसे जीने का एक मौका दे दिया। ससुर जी के नेह के कारण नेहा अपने और बच्चों के लिए  कभी किसी चीज के लिए परेशान नहीं हुईं। उसके मांगने से पहले ही जरूरतों को पूरा करने के लिए वह तैयार रहते थे और यही कारण था कि नेहा और बच्चे परिवार में बाकियों के आंखों में कील की तरह चुभ रहे थे।



 

जेठ जी ने शाम के समय सबको बाहर बैठक में बुलाया और फरमान जारी किया कि अब सब अपनी अपनी गृहस्थी सम्भाल लें।अपना अपना खाना खर्चा खुद देखें। घर के दो- दो कमरे सबको हिस्से में मिलेंगे उसी में अपना -अपना सामान रखवा लें। नेहा को चुपचाप खड़ी देख जेठानी ने जेठ जी को कोई  इशारा किया। उसे कोई गलतफहमी ना हो इसके लिए जेठ जी ने उसे स्पेशली पास बुलाकर कहा-” नेहा देखो तुम तो जानती हो न कि घर में छह कमरे हैं  । है न! उसमें से दो- दो हम दोनों भाई ले लेंगे तो कितने बचे? नेहा ने सिर झुकाकर कहा  जी  भैया… दो।

नहीं नहीं दो नहीं एक ही बचे न !  बचे दो कमरे में यह एक कमरा है जो बैठक ही रहेगा। मेहमानों का आना जाना लगा रहता है।  मान लो कभी कोई बहन   आयेगी तो उसे हम कहां  बैठाएंगे बताओ । इसलिए तुम बाबूजी वाला कमरा ले लो। उसका दरवाज़ा भले ही बाहर की ओर खुलता है पर तुम तीनों माँ बच्चों के लिए ठीकठाक है। वैसे भी अब तुम्हें अलग से बेड रूम की जरूरत ही क्या है?

जेठ जी के मूंह से ऐसी बात सुनकर वह एकदम से सर्द हो गई। शर्म और क्षोभ से उसकी नजरें जमीन में धंस गईं। लगा जैसे  तपती रेत में खड़ी वह ठिठुर रही है। आज महाभारत का वह दृश्य जिवंत दिख रहा था जिसमे द्रौपदी शब्दों के वाण से निर्वस्त्र होकर अपना लाज समेटे कौरवों के बीच खड़ी थी ।  जेठ जी की  बातों को सुन कर टप -टप उसकी आंखों से आहत के आंसू गिरने लगे ।

बड़ी ननद को सुना नहीं गया  उसने भाई को आड़े हाथों लिया और बोली-” कैसी बाते कर रहे हो तुम भैया! बड़े भाई होकर इतने निष्ठुर न बनो!  तुम्हें जरा  भी इस बात का मलाल नहीं है कि छोटा भाई नहीं रहा इस दुनिया में। “

  जेठ जी ने कहा- “ओह दीदी तुम हमारे आपसी बंटवारे में दखल मत दो। सत्य कटु होता है कुछ देर के लिये बूरा लगेगा लेकिन मैं बाद के लिए कोई पेंच नहीं रखना चाहता। “

“तो क्या इसे एक ही कमरा दोगे और वह भी बाबूजी वाला” दीदी एक दम गुस्से में थीं।

“अरे भाई जरूरत होगी तो यह बैठक है न आप चिंता क्यों कर रहीं हैं दीदी। बाबूजी क्या कम पक्षधर थे जो आप भी परेशान हो रही हैं।”

जेठानी भौ टेढ़ी कर बोली -” बहुत ज्यादा दिक्कत होगी तो ले लेगी नया फ्लैट। कुछ दिन बाद हसबैंड की जगह नौकरी तो होने ही वाली है । नया मकान में  ऐशो आराम रहेगी जाकर।”

नेहा मूक की तरह सबकी कड़वी बातों को चुपचाप घोंटती रही। कुछ भी नहीं बोली।

बंटवारे के बाद से नेहा ने बाबूजी के कमरे को अपना पूजा रूम बना दिया । खुद वह उसी कमरे में नीचे फर्श पर सोती थी और दोनों बच्चों को  बाहर बैठक में सुला दिया करती थी । किसी को कोई दिक्कत ना हो इसके लिए  वह सुबह होते ही बच्चों को उठाकर कमरा साफ सुथरा कर देती थी। कुछ दिन तक तो सबने बर्दाश्त किया लेकिन धीरे-धीरे बच्चों को परेशान करना शुरू कर दिया। देर रात तक सोने नहीं देना, मेहमानों के आने का बहाना बनाकर सुबह होने के पहले ही बच्चों को कमरे से बाहर निकालवा देना।

बेचारे बच्चे ऊंघते हुए सीढियों पर बैठे रहते थे। कभी किसी को दया आ गई तो उनके ऊपर चादर डाल दिया। नेहा अपने बच्चों को ऐसी अवस्था में देखती थी तो उसका कलेजा फट जाता था। पर क्या करती कुछ भी बोलती तो वह भी सहारा छीन जाता। उसके साथ तो खुद उपरवाले ने ही क्रूरता की थी और से क्या शिकायत !

यह भी सच है कि बुरे वक्त की ज्यादा उम्र नहीं होती। नेहा को पति के जगह पर नौकरी मिल गई ।धीरे-धीरे वह  अपना और बच्चों की जरूरत खुद ही पूरी करने लगी। बच्चे भी अब बड़े होने लगे थे और दुनियादारी समझने लगे थे। उन्हें भी अपने ही घर में गैरों जैसा व्यवहार खलने लगा था। वे हमेशा कहते थे माँ  हमारा घर कब  होगा? हमें आपके साथ सोना है। नेहा  बच्चों को दिलासा देते हुए कहती  बेटा  कुछ दिन और पापा  ने  पैसा जमा किया है न वो जल्दी ही पूरे हो जाएंगे तब हम एक नया घर खरीदेंगे।



 

नेहा को पति के इंश्योरेंस के पैसे तथा ऑफिस के सहयोग से कुछ लोन मिल गया। नेहा ने एक दो बेड रूम के फ्लैट के लिए अप्लाई कर दिया। नेहा को आज फ्लैट की चाभी भी मिल गई। बिना कोई तामझाम के नेहा ने नए फ्लैट में शिफ्ट होने का मन बना लिया। उसकी खुशी में परिवार के लोग सम्मिलित नहीं थे ।

नेहा ने गिली आँखों से ससुर जी के तस्वीर को प्रणाम किया और अपना सामान समेटकर हमेशा के लिए उस एहसान की छाँव से  निकल पड़ी।

पिछे से किसी ने उसे जोर झकझोरा। नेहा…यहां क्यों बैठी हो दरवाजे पर?

वहां दोनों  बड़ी ननदें  खड़ी थीं।

दीदी आप!

“हाँ  उठो अंदर चलो  हमें भी दिखाओ अपने नये आशियाने को। “

नेहा की आंखों से आंसुओं की धारा बह चली। दोनों ननदें एक साथ दोनों तरफ से नेहा की बांहों को थामते हुए बोलीं -“नहीं नेहा, बिल्कुल नहीं यह खुशी का पल है यहां आंसुओं के लिए कोई जगह नहीं है।”

  #कभी_धूप_कभी_छाँव 

स्वरचित एंव मौलिक

डॉ.अनुपमा श्रीवास्तवा

मुजफ्फरपुर,बिहार 

 

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