घर की नौकरी – मंगला श्रीवास्तव  : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : सोमा एक सँयुक्त परिवार की सबसे बड़ी बहू थी। उसकी बहुत ही कम उम्र में ही शादी हो गई थी..!क्योंकि उस समय बहुत जल्दी ही शादी हो जाती थी ।।

इस कारण वह दसवीं से आगे पढ़ नही पाई थी । सास तो उसके आने के बाद अपने घर अपने दोनों छोटे बेटों की जिम्मेदारी से मानो मुक्त ही हो गई थी , सास  ससुर के गुजर जाने के बाद सोमा ने अपनी जिम्मेदारी का पूर्ण निर्वाह किया ।

 वह घर के हर काम में  बहुत कार्यकुशल थी । ऐसा कोई काम नही था घर का जो उसको नही आता हो खाना बनाने में माहिर और सिलाई कड़ाई बुनाई में भी परफेक्ट थी वह ।।

इतने बड़े घर के हर कमरे में उसके  ही हाथों से बने पर्दे ,कड़ाई करे हुए कवर कुशन बेड शीट ऐसी लगती थी मानों की मशीन के द्वारा बनाई गई हो ।

लेकिन कम पढ़ीलिखी…. सोमा को ससुराल में हर काम में परफेक्ट… होने के बाद भी वह सम्मान….नही मिल पाया जितना कि  दूसरी बहुओं को….!क्योंकि वह सब नएं जमाने की बहुत पढ़ी लिखी नौकरी पेशा थी ,परन्तु सोमा जो हर वक्त सबका ख्याल रखती… वक्त पर सभी को खाना… बना कर देती…वह उन सबके बीच उपेक्षित सी ही थी ।

,परंतु सरल स्वभाव की सोमा को  इस बात का कभी बुरा नही लगा,वह सोचती थी कि क्या हुआ अगर वह नौकरी नही करती है तो  पर वह अपने प्यारे परिवार और अपने घर को संभालती है  उसके कारण घर भी तो व्यवस्थित रहता है ….।

उंसके कारण घर में सभी को समय पर खाना मिलता है समय पर हर कार्य होता है । सभी को अपना अपना सामन भी व्यवस्थित अपनी जगह पर मिलता है।

वह सारी जिम्मेदारी इतनी खुशी से और लगन से निभाती थी की किसी को कोई परेशानी भी नही होती थी । घर में हालांकि नौकर भी थे उसकी मदद के लिए पर उन सबसे क्या काम करवाना है कैसे  करवाना है क्या नही करवाना है उनकी महीने पर क्या तनख्वाह देना है वह सब भी उसके ही हाथो में था ।

यहा तक कि घर के सारे बच्चें भी उसी को बहुत प्यार करते थे ,वह उनकी हर जरूरतों का ध्यान रखती थी चाहे वह खुद के हो या देवरों के ,उसके मन में कभी कोई दुराभाव नहीं आता था बच्चों की पसंद का खाना कुक होने के बाद भी वह खुद ही बनाती थीं।

उनके स्कूल के जाने से लेकर आने तक पढ़ाई से लेकर खाने पीने का भी पूरा ध्यान वही रखती थी ।

उसकी दोनों देवरानियों को तो यह तक पता नही था की उनके बच्चों को क्या अच्छा लगता है क्या बुरा, सोमा अपने परिवार को खुश देखकर यह सोचकर ही बहुत खुश  हो जाती थी।

लेकिन एक दिन उंसके स्वाभिमान को बहुत ठेस पहुँची…. जब उसके दोस्तों ने घर को व्यवस्थित देख उसकी तारीफ की तो रमन को अपने दोस्तों के बीच यह  कहकर की इनको और तो कुछ नही आता घर सम्भालने के अलावा…यह सुनकर वह बहुत दुखी हुई थी। पहली बार  उसको लगा की उसका काम पढ़ा लिखा होना और  बस घर का काम करना और घर संभालना रमन को खलता है।

अपने भाइयों की पढ़ी लिखी नौकरी पेशा पत्नियों को देखकर रमन के मन में कही ना कही हीनता की भावना आ गई थी ।

वह यह  सोच ही नहीं पाया था कि उसकी पत्नी के कारण ही आज

घर इतने सुचारू रूप से चल रहा है और व्यस्थित है…! 

उस दिन सोमा बहुत रोई और उसने रात को रमन से कहा कि वह  कुछ दिनों के लिये अपने मायके जाना चहाती है।

दूसरे दिन ही वह अपने मायके चली गई।

जाते हुए उसने रमन से कहा कि आपको शायद पता नही बाहर काम करने से ज्यादा घर संभालना कितना मुश्किल भरा व जिम्मेदारी का काम होता है, जो कि सभी को नही आता है ।

चाहे मैं और कुछ नही जानती हूँ पर घर को कैसे संभालते है वह अच्छी तरह जानती हूँ।

इधर उंसके जाने के एक दो दिन बाद  ही घर एकदम अस्त व्यस्त हो गया….समय पर कोई काम नही हो पाता था ।

खाना बनाने वाली बाई भी अपने हिसाब से कुछ भी बनाकर रख जाती….क्योंकि नौकरीपेशा

बहुएं कुछ बता ही नही पाती थी.. उनको कभी सोमा के रहते यह काम पड़ा ही नही था ।

बच्चें भी आपस में लड़ते रहते।       

सुबह स्कूल का और सभी लोगों का टिफिन भी जैसे तैसे बन पाता नाश्ता तो दूर की बात थी।

जो बच्चें सोमा के एक इशारे पर तैयार हो कर चुपचाप नाश्ता करते व दूध पी लेते थे और समय पर तैयार होकर स्कूल चले जाते थे वह अब ना ही समय पर उठ पाते थे न ही तैयार हो पाते थे ।

कई बार स्कूल की बस भी निकल जाती थी इस कारण ।

स्कूल से आने के बाद अक्सर सोमा सबके लिये उनकी पसन्द की डिश बनाकर रखती थी।

अब उनको जो भी खाना होता वह  ही नही बन पाता था  उनके ट्यूशन का समय भी वही साध कर रखती थी।

सारे बच्चें अब सोमा को ही याद करते रहते ।

छोटे छोटे काम के लिये जो कि सोमा के होते आसानी हो जाते थे,अब बमुश्किल हो पाते थे।

घर की हालत बिन नकेल घोड़े के समान हो गई थी घर इतना अस्त व्यस्त हो गया था की किसी को अपना सामन भी जगह पर नही मिलता था । सबको अब हर काम मुसीबत सा लगने लगा था।

उसकी दोनों देवरनिया रोज उसकी फ़ोन लगाकर बोलती भाभी आ जाओ कब आओगी बच्चें याद कर रहे हैं सबकी परीक्षा पास आने वाली है आपके बिन घर सूना सूना लगता है।

उधर सोमा ने सोच लिया था की जब तक उसकी अहमियत सबको खास तौर पर रमन को समझ नही आयेगी वह वापस घर नही लोटेगी।

धीरे धीरे सभी को एहसास हो चुका था कि वह सभी बिना सोमा के कितने अधूरे है…घर की हर खुशी की चाबी तो सोमा के पास ही थी।

सभी को एकसूत्र में बांध कर प्यार के धागे से उसने सबकों एकसूत्र में बांधा हुआ था। आज उसके कारण ही तो वह सब अपनी नौकरी को इतनी आसानी से कर पा रहे थे , क्यों कि उनके ऊपर घर की कोई जिम्मेदारी नही थी ।

रमन को भी आज अपनी पत्नी के उस गुण का एहसास हो गया था….की बाहर काम करने वाली

दूसरे भाइयों की पत्नी से ज्यादा तो उसकी पत्नी का काम बहुत बड़ा है…!उन सभी से ज्यादा तनख्वाह तो उसको मिलनी चाहिये इतने बड़े परिवार को संभाल कर रखने के लिए।

उसने तुंरन्त ही सोमा को फोन लगा कर कहा कि वह आ रहा है उसको लेने। उसका घर वह और सारा परिवार उंसके बिना अधूरे है।

मंगला श्रीवास्तव इंदौर

स्वरचित मौलिक लघुकथा।।

1 thought on “घर की नौकरी – मंगला श्रीवास्तव  : Moral Stories in Hindi”

  1. बहुत ही सशक्त और प्रभावकारी कहानी।

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