खेवनहार – डॉ संगीता अग्रवाल   : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : हाय अम्मा!रिया अभी तक घर नहीं आई,रात के नौ बज गए है,बड़ी बहू निशा ने सुधा देवी से कहा तो उनका माथा ठनका।

रोज रोज,रिया को काफी देर होने लगी थी,और आती भी दूसरों की गाड़ी में थी,क्या सचमुच रिया के कदम बहक रहे हैं?वो सोच में पड़ गई।

रात को सोते वक्त पति से बोली,”सुनिए जी!लगता है मुन्नू से बात करनी पड़ेगी अब,कहीं पानी सिर से ऊपर न निकल जाए?”

“मनीष को क्या परेशान करना,वो विदेश में पैसा कमाने गया है,अपनी पत्नी की ऐसी बातें सुनकर घबरा न जाए, वैसे मुझे यकीन नहीं आता कि रिया जैसी समझदार लड़की ऐसा कुछ करेगी?”

मनीष और रिया की नई शादी हुई थी कि मनीष को घर की जिम्मेदारियों के चलते पैसा कमाने के लिए विदेश जाना पड़ा।हालांकि उसके बड़े भैया और भाभी भी संग रहते थे लेकिन बड़े भैया की जॉब ज्यादा अच्छी नहीं थी इसलिए उनकी आमदनी अपनी पत्नी और बच्चों के लिए ही पूरी नहीं पड़ती थी,वो घर के और खर्चे क्या उठाते?

कोई और लड़का होता तो अपनी नई नवेली दुल्हन को अकेला न छोड़ता पर न तो मनीष का ही दिल था अम्मा पिताजी को सिर्फ भैया भाभी के हवाले छोड़ने का और न उसकी प्यारी रिया को।वो मनीष से ज्यादा ध्यान रखने लगी थी उनका।

मनीष ने उदास होते कहा,कैसे कहूं तुमसे कि तुम्हें अपने संग नहीं ले जा पाऊंगा?

तुम इतना लोड क्यों ले रहे हो मेरे हुजूर!वो मुस्कराते हुए बोली, मै मां बाप के प्यार के लिए बहुत तरसी हूं,उन्हें छोड़कर नहीं जाऊंगी फिर तुम जल्दी चक्कर लगाना बीच में।

वो तो लगाऊंगा ही,इतनी खूबसूरत बीबी को छोड़कर जा रहा हूं,रह नहीं पाऊंगा उसके बगैर।

दोनो हंसने लगे और मनीष चला गया।वो नियमित पैसे भेजता और अम्मा पापा,मनीष के साथ रिया की भी तारीफों के पुल बांधते रहते।

फायदा तो इस सबका  बड़ी बहू निशा,उसके पति दिनेश और बच्चों को भी मिल ही रहा था पर छोटे भाई की यूं तारीफ होते देखकर बड़ा भाई बहुत किलस्ता था।बची खुची कसर उसकी पत्नी उसके कान भरकर कर देती।

पहली करवाचौथ नजदीक आ रही थी और मनीष एक बार घर आना चाह रहा था,पत्नी से जुदाई उसे भी सहन नहीं हो रही थी,फिर जब वो उसके पेरेंट्स के लिए इतना सोचती है तो मनीष को उसके लिए भी सोचना चाहिए।

अचानक अगले ही दिन,मनीष के पिता को हार्ट अटैक आ गया,उनको हो करना पड़ा और डॉक्टर ने ढाई लाख रुपए का खर्च बता दिया।

मुसीबत कभी अकेली नहीं आती,रिया को पता चला कि मनीष की जॉब पर खतरा है और उसे अगले माह का वेतन भी नहीं मिलेगा।

फोन पर मनीष उससे बात करते रो पड़ा,अब क्या होगा,पिताजी के ऑपरेशन के पैसे कहां से आयेंगे?

आप फिक्र न करें, मैं कर लूंगी कोई इंतजाम..और रिया ने अपना स्त्री धन यानि जेवर बेचकर ऑपरेशन और घर का खर्च संभाल लिया।

मां पिताजी वैसे ही दुखी थे,उन्हें मनीष की जॉब का नहीं बताया।

पैसे आने कम हो गए थे मनीष से और इसका प्रभाव घर में दिखने लगा था।भैया भाभी ने ताने मारने शुरू कर दिए…सब नाटक है इन लोगों का अच्छे बनने का…कुछ दिन बाद बिलकुल पैसा नहीं देगा मनीष…हां भाई..क्यों दे,अब उसका परिवार भी बढ़ेगा,उसकी बीबी के हजार खर्चे हैं।

रोज रोज की किल्लत से तंग आकर,रिया ने मनीष से पूछा,क्या वो एक जॉब कर ले?उसके चचेरे भाई की कंपनी में अच्छा ऑफर मिल रहा है।

अरे नहीं यार!मनीष बोला,तुम किन चक्करों में पड़ रही हो,मेरी जॉब ही हो जायेगी कुछ समय में,फिर कोई जरूरत नहीं पड़ेगी और घर में किसीको ये मंजूर नहीं होगा,पिताजी भी औरतों की नौकरी पसंद नहीं करते।

लेकिन अब मजबूरी है,फिर उन्हें ये कहना कि मै एक कोर्स कर रही हूं जिससे बाद में घर से ही बिजनेस कर सकती हूं। रिया ने सुझाव दिया और मनीष चुप रहा।

वो ही हुआ जिसका डर था।बड़ी भाभी निशा, सास ससुर के कान भरने लगी,देवर जी की अनुपस्थिति का भरपूर फायदा उठा रही हैं बहुरानी आपकी अम्मा…,पहले पहल,उन्होंने झिड़क दिया उसे पर आंखों देखते मक्खी निगली भी न जा सकी,रिया रोज देर से आती और किसी की गाड़ी में कभी कभी।

आखिरकार ,उन्होंने मनीष को फोन कर बुला ही लिया कि अपनी पत्नी की करतूत देखो।

उस दिन,रिया देर से घर ने आई तो पहले भाभी निशा बोली,आ गई गुलछर्रे उड़ा कर यारों के संग…

भाभी !!वो तेजी से बोली,आप मुझ पर कीचड नहीं उछाल सकतीं।

क्यों??तुम घर की इज्जत सरे बाजार उछाल सकती हो और मै …

प्लीज भाभी…आप मेरे चरित्र पर लांछन लगा रही हैं,एक स्त्री होकर दूसरी का दर्द नहीं समझ रहीं।

हां…तुम्हारा पति संग नहीं है तुम्हारे तो जरूरत ऐसे पूरी करोगी?भाभी बोली।

रिया उनकी तरफ दौड़ी,वो आपा खोने लगी थी,उसे दुख था उसके सास ससुर भी उसका पक्ष नहीं ले रहे थे।

तभी उसके जेठ बोले…हमारे घर की बेटी बहु ऐसी नहीं होती, मनीष ने आंखें मूंद ली तुम्हारी तरफ से पर मैंने नहीं…समझी!!

तभी मनीष वहां आ पहुंचा…तो ये व्यवहार हो रहा है मेरे पीछे मेरी पत्नी से?

अरे!तुम कब आए? सब चौंकते हुए बोले,लेकिन बड़े भाई ने कहा…संभाल!अपनी बीबी को ,अब इसकी रखवाली हमसे नहीं होती।

रखवाली तो ये आप सबकी कर रही है भैया…जानते भी हैं इसने क्या किया है?और आपसे क्या कहूं,अम्मा पिताजी ने भी इसे गलत समझा??

क्या पहेलियां बुझा रहे हो  देवर जी!साफ साफ कहो…निशा बोली।

भाभी !घर में मुसीबत पड़ी थी पिताजी की बीमारी के रूप में..रुपए की जरूरत थी,बताइए!आपने और भैया ने क्या किया?कितने खर्चों में कटौती करी?क्या ऑपरेशन करा पाते आप?

मजाक उड़ा रहा है हमारी गरीबी का?जरा कमाता क्या ज्यादा है,दिमाग खराब हो गया तेरा…लेकिन अपनी घर की इज्जत को घर की जीनत बना कर रखता हूं मै तेरी तरह…

बासस्स भैया…ये रिया खेवनहार है इस घर का…जानना चाहते हैं,जब पिताजी का ऑपरेशन था,मेरी जॉब जा चुकी थी,पर ये  उस मुसीबत में जरा न घबराई,ये यहां जॉब कर रही है…इसीके चाचा के लड़के की कंपनी में…सिर्फ घर के खर्चे पूरे करने के लिए।

लेकिन ये बात पहले बता देते…भाभी हल्की आवाज में बोली।

तो आप लोग उसे जॉब करने देते?मनीष ने कहा और सबने आंख नीचे कर ली।

मां और पिताजी भी शर्मिंदा थे अपनी सोच पर…हम किसी भी बात पर जजमेंटल हो जाते हैं और बहुत जल्दी निर्णय ले बैठते हैं जो गलत होता है।

आपको ये कहानी कैसी लगी,जरूर बताइए।

संगीता अग्रवाल

वैशाली,गाजियाबाद

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