गिरवी आत्मसम्मान की (भाग 2)  – डॉ. अनुपमा श्रीवास्तवा 

अनुज के पिता ने साफ शब्दों में इंकार कर दिया था। उनका कहना था कि रिश्ता हमेशा बराबर वालों में की जाती है और उनका तो कोई मेल ही नहीं है। कहां राजा भोज और कहां …..।

उसपर अनुज ने भी मना कर दिया। उसका कहना था कि उसकी सैलरी हजारों में है, जबकि दीप्ती करोड़ों की इकलौती वारिस है । उससे अच्छे बहुत मिल जायेंगे दीप्ती को शादी के लिए। इंकार  सुनकर बेटी ने खाना- पीना ,हंसना- बोलना सब कुछ छोड़ दिया था। आखिर में दीप्ती के पिता अनुज के दरवाजे पर धरना देकर बैठ गए। तीन दिन तक वहीं बैठे रहे। ना तो अनुज तैयार हो रहा था और न उसके पिता शादी के लिए हाँ कर रहे थे। अजीब  धर्म संकट की स्थिति थी। 

बात बिगड़ते देख अनुज की माँ बीच में खड़ी हो गई। उन्होंने अपने बेटे और पति के तरफ से दीप्ती के पिता को  दीप्ती के साथ अनुज  की शादी के लिए हाँ कर दिया । माँ की बातों को अनुज टाल नहीं पाया और पिता भी चुप हो गए। उनकी चुप्पी ने शादी करने के लिए स्वीकृति दे दी।

धूम धाम से अनुज और दीप्ती की शादी हुई थी। खुशी -खुशी दीप्ती बिदा होकर अनुज के घर बहू बनकर आ गई। कुछ दिन तक सब ठीक रहा उसके बाद अपने आलिशान घर में एशो -आराम से रहने वाली दीप्ती को अनुज के काम चलाऊ घर में घुटन होने लगी। अब तक अनुज पर दीप्ती का प्यार हावी होने लगा था। प्रायः दीप्ती अपने प्यार का झूठा कसम खिलाकर उससे अपने मन की बात मानने के लिये विवश करने लगी। वह जो भी कहती सही नहीं होने के बावजूद भी अनुज मान लेता था। ऐसे ही करते -करते एक दिन अनुज अपने घर को छोड़ दीप्ती के साथ ससुराल में आकर रहने के लिए तैयार हो गया।


समय बीतता गया। अनुज की बहनों की शादी हो गई। अनुज ने पिता की मदद तो की, पर अपने घर  रहने नहीं आया ।वह आने का जब भी प्रयास करता दीप्ती कोई न कोई बहाना बनाकर टाल जाती। अनुज के माता-पिता भी बेटे पर दबाव डालने की कोशिश नहीं करते थे उन्हें तो औलाद की खुशी ही चाहिए थी और क्या।

समय अपने गति से चल रहा था कि  एक दिन अनुज के पिता को भयंकर हार्ट अटैक हुआ और वह काल के गाल में समा गए। बेचारी माँ दिल में दर्द और आखों में आंसू के साथ अकेली हो गईं।  माँ की आंसुओं ने बेटे के दिल को पिघला दिया अनुज माँ को अकेली कैसे छोड़ सकता था सो अब वह माँ के साथ ही रहने लगा।

 कुछ दिन बाद दीप्ती वापस अपने पिता के घर जाने की जिद करने लगी। पहले तो अनुज ने जाने से साफ मना किया पर माँ के समझाने पर वह एक शर्त के साथ तैयार हो गया।

दीप्ती  मन ही मन बहुत खुश थी इस बार भी अनुज ने उसकी इच्छा को सम्मान दिया था। वह अपना और  अनुज  के सामानों को पैक कर रही थी। तभी अनुज अपने हाथ में दो एयर बैग लेकर कमरे में घुसा ।

दीप्ती बोल पड़ी-“”यह क्या है अनुज?”


“अरे !भाई  दिख नहीं रहा है क्या बैग है “

“लेकिन किसलिए? मेरे पास तो ऑल रेडी पहले से है इसका क्या करूंगी!”

“यह तुम्हारे लिए नहीं, माँ के लिए है इसमें उनका सारा समान पैक कर देना ।”

“लेकिन क्यूं?”

“क्योंकि माँ भी हमारे साथ जायेंगी।”

“उन्होंने कहा है क्या?”

“वो क्यूं कहेंगी मैं जहां रहूंगा माँ मेरे साथ ही रहेंगीं न!”

“अनुज बुरा नहीं मानना तुम्हें मेरे पिता जी के स्टेटस को भूलना नहीं चाहिए। उन्होंने सिर्फ तुम्हें अपने घर में रखने का परमिशन दिया है ना कि पूरे खानदान को।” 

अनुज की भृकुटी तन गई वह कुछ बोलने वाला था कि दीप्ती बोल पड़ी-” सिर्फ तुम्हारे प्यार की वजह से मैं इस गलिज जैसे घर और यहां के लोगों के साथ निभा लेती हूं समझे!”

माँ को मेरे घर लेकर जाओगे….. सब लोग क्या सोचेंगे , कहेंगे पहले बेटा कम था जो अब माँ भी गुजारा करने आ गई। 

दीप्ती की बात सुनते ही अनुज आपे से बाहर हो गया। चिल्लाकर बोला-” मेरी माँ के लिए तुम्हारे दिल में इतनी घटिया सोच है ।”जिनकी जिद की वजह से मैंने तुमसे शादी के लिए हामी भरी थी। उनके लिये यही सम्मान है।


” कान खोल कर सुन लो मैंने  तुमसे शादी  सिर्फ अपने माँ बाप की इच्छाओं का मान रखने के लिए किया था। अपना आत्मसम्मान गिरवी नहीं रखा था तुम्हारे पास ।”

भले ही हमारी हैसियत तुम्हारे पिता से कम है लेकिन हमारा आत्मसम्मान बहुत ही कीमती है जिसे भूलकर भी कुचलने की कोशिश मत करना। उठाओ अपना सामान और जितना जल्दी हो सके मुझे अपने बोझ से मुक्त करो। मैं तुम्हारे लिए अपने “आत्मसम्मान” को गिरवी नहीं  रख सकता। 

#आत्मसम्मान  

स्वरचित एवं मौलिक 

डॉ. अनुपमा श्रीवास्तवा 

मुजफ्फरपुर,बिहार

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