पैसा बोलता है – शुभ्रा बैनर्जी

बेचारी वो कभी नहीं थीं,मां बेचारी नहीं होतीं,शक्ति होतीं हैं परिवार की।सरला दो बेटों और एक बेटी की मां थी।पति उस शहर में सरकारी नौकरी करते थे,और सरला स्वयं एक शिक्षिका थीं।पति ने अपनी नौकरी रहते ही बेटी और एक बेटे की शादी कर दी थी। रिटायरमेंट के बाद छोटे बेटे की शादी करने का विचार किया था उन्होंने,पर कोशिश महामारी में उनकी असमय मृत्यु हो गई।लड़की वालों को पति के वादे के अनुसार, सरला जी ने साल‌ भर बाद का मुहूर्त पर विवाह का प्रस्ताव दिया।

वैसे तो सरला जी के पति ने अपनी सीमित आय से सभी बच्चों को अच्छे से पढ़ाया था,अपने पुश्तैनी गांव में एक छोटा सा घर और जमीन थी।सरला जी ने भी अपनी कमाई से ज़रूरत पड़ने पर खर्च किया था।सरला जी के पति की मृत्यु के पश्चात दोनों बेटों और बेटी को बराबर की राशि दे दी थी,सरला जी ने।बेटों के बच्चों के भविष्य के लिए भी कुछ पैसे डिपोजिट कर दिए थे।

दोनों बेटे शहर में अलग -अलग रहते थे,खुश थे।बेटी अपनी ससुराल में खुश थी।सरला जी गांव वाले घर में‌ रहना चाहतीं थीं,पर बेटों का मन नहीं था।बड़े बेटे के घर रह रहीं सरला‌ जी ने एक दिन अपने बेटे-बहू की बातचीत सुनी तो उनका माथा ठनका।बेटा कह रहा था बहू से”तुम समझ नहीं रही,अभी अपने पास हैं ,तो किस को क्या ले-दे रहीं हैं‌,पता चल जाता है।गांव में रहेंगी तो लुटा देंगी सारा पैसा गांव वालों के लिए ही।जैसे ही कोई मजबूरी बताएगा अपनी,मां झट से मदद करने निकल‌ पड़ेगी।मैं उन्हें जानता हूं।तुम भी थोड़ा नाटक कर ही सकती है ताकि वे यहां से कहीं ना जाए।”




सरला जी को हंसी आ गई।उनके पास था भी क्या इतना, कि वो किसी की मदद करेंगी।ख़ैर यदि इन्हें लगता है तो लगने देना ही उचित होगा कि मेरे पास अभी भी बहुत पैसा है।सुबह एक बड़े से बक्से को पोंछती हुई सरला‌ जी ने कनखियों से देखा अपने बेटे -बहू की जिज्ञासु आंखों को।छोटे बेटे के पास रहने की इच्छा जताई उन्होंने कुछ दिन,तो बहू बोली”हां,हां!जरूर जाइये मां जी।इस उम्र में इतना बड़ा बक्सा‌ कहां ढोतीं फिरेंगीं?इसे यहीं पड़े रहने दीजिए।””अरे नहीं बेटा!इसमें मेरी ज़िंदगी भर की कमाई है।”सरला‌ जी ज़िद करके अपने बक्से को लेकर छोटे बेटे के पास आ गईं।छोटी बहू नौकरी करती थी,समझदार और‌ सुशील‌ थी।पूरा ध्यान रखती थी उसका।एक दिन छोटे बेटे को फोन पर कहते सुना”हां ,बोल‌ तो रहा हूं मैं,उन्हीं के साथ है वह बक्सा।एक मिनट भी ओझल‌ नहीं होने देती आंखों के सामने से।एक तेरी भाभी है ,कितनी बार कहा‌ कायदा करके पता लगाने को कि क्या है उसमें,तो वो मुझे ही ज्ञान देने लगती है।कैसे बेटे हो?अपनी मां की‌ संपत्ति पर नजर रखते हो।मैं तो उसकी‌ मॉरल वैल्यू की क्लास अटेंड कर -कर के थक गया।अब तू ही कुछ उपाय कर नहीं तो बड़े भैया और उनके बेटे को ही सब कुछ दे देंगी।”ओह!तो नकुल वसुधा (बेटी)से बात कर रहा था।उसे भी हिस्सा चाहिए मेरी जायदाद से।पिता के हिस्से से इन लोगों का पेट नहीं भरा।सरला‌ जी ने ईश्वर का धन्यवाद दिया कि छोटी बहू अलग है इस स्वार्थी दुनिया से।शाम को रमा(बहू) के आते ही उन्होंने बाजार चलने की बात कही नकुल के आने से पहले,तो रमा बोली “मां,इन्हें आने दीजिए ना कार से चली‌चलिएगा।अभी ऑटो में जाना पड़ेगा”।




“मुझे तुम्हारे साथ ही जाना था बेटा”कहकर सरला जी तैयार हो गईं।बहू के साथ एक रेस्टोरेंट में बैठकर कॉफी पीने का मन था उनका।रमा भी आश्चर्यचकित थी,मां जी को इस रूप में देखकर।इतना बोल्ड लुक‌ कभी नहीं देखा था उसने सास का।सरला‌ जी ने बिना घुमाए-फिराए बात शुरू की”रमा,तुम्हें मेरे परिवार में आए बहुत कम समय हुआ पर तुम्हारे विवेक और‌ बुद्धि की मैं कायल हूं।क्या मैं तुमसे अपने निजी जीवन पर सलाह लें सकती हूं?””क्यों नहीं,मां जरूर”रमा सास का स्वयं के प्रति विश्वास देखकर खुश हो रही थी।”देखो रमा,मेरे पास जो बक्सा है, बच्चों को लगता है  कि उसमें बहुत सारा धन है,पर तुमसे झूठ नहीं बोलूंगी,ज्यादा पैसे नहीं हैं उसमें।मेरे पी एफ की कुछ बचाई हुई रकम और मेरे प्रमाणपत्र,कविता कहानियों के प्रशस्ति पत्र,कुछ पसंदीदा किताबें और कुछ डायरियां हैं उसमें।”

“मां यही तो आपकी जमा पूंजी है,सारी ज़िंदगी की।उस बक्से में आपका आत्मविश्वास और आत्मसम्मान दोनों है।आप कभी किसी को ना तो दिखाना और ना ही देना।मुझसे क्या चाहती हैं आप बताइये बस।”रमा की बातें सुनकर सरला जी के मन में बच्चों के प्रति उभरा‌आक्रोश कुछ कम हुआ।

“देख बेटा,कुछ ऐसा उपाय बता कि मेरे आत्मसम्मान और आत्मविश्वास की बलि‌ ना‌ चढ़े।”मां की बात सुनकर रमा‌ ने जुगत निकाली और कहा”मां,यह केवल आपको पता‌ है ना,कि उसमें क्या है?”नहीं -नहीं एक और जन को भी पता‌ है-सरला‌ जी‌ ने मुस्कुराते हुए कहा‌ मेरी छोटी बहू रमा‌को” रमा ने कहा” मेरी पहचान के एक वकील अंकल हैं।मैं उनसे एक वसीयत बनवा लेती हूं।पुराने कागज पर बनवाऊंगी ताकि पुरानी लगे।उस पर लिखा होगा कि गांव‌ वाली जमीन और मकान में किसी बच्चे को तब तक हिस्सा नहीं मिलेगा जब तक कि उनके बच्चे बीस साल के ना हो जाएं।आपके बक्से को भी पंद्रह साल के बाद ही खोल पाएगा‌ कोई।यह भी लिखवा‌ दूंगी कि उस जमीन पर पापा जी ने गुप्त धन छिपाकर गाढ़ा हुआ‌ है।बीस साल पहले अगर किसी ने उस धन को खोजने की कोशिश में घर या जमीन को नुक्सान पहुंचाने की कोशिश की‌ तो उसे हवालात जाना पड़ेगा।गर्मियों में जो बच्चे अपने परिवार के साथ आकर‌ गांव में अपने घर में रहकर खेती -बाड़ी में सहायता करेंगे,उन्हें अनाज में दस -दस प्रतिशत हिस्सा मिलेगा।जो अपनी मां को हर महीने दस हजार रूपए भेजेगा बिना हीलहुज्जत के वही,मां का बक्सा ले पाएगा‌ पंद्रह सालों के बाद।दामाद को भी आकर खेती -बाड़ी में मदद करनी होगी तभी बेटी को हिस्सा मिलेगा।”




रमा की वसीयत वाली सलाह ने सरला‌ जी को खुश तो कर दिया पर कुछ सोचकर वह बोलीं”बेटा यह झूठ मुझसे ना‌ लिखवाया जाएगा, ना ही‌ सुनाया‌ जाएगा।झूठ के बल पर अपने बच्चों से पैसे लेना मुझे कभी मंजूर नहीं होगा।”

रमा ने समझाते हुए कहा”मां,मैं जानती हूं यह आपके लिए इतना सहज नहीं।मैंने अपने माता-पिता को अपने बेटे-बहू के आगे हांथ पसारते देखा है।ममता की मिसाल बनी मेरी मां ने अपना सब कुछ भाई -भाभी और उनके बच्चे को दे दिया था और दोनों पैसों के लिए मोहताज हो गए थे।मैं नौकरी इसलिए करती हूं।मेरी‌तनख्वाह का आधा‌ हिस्सा मैं अपने मम्मी-पापा को देतीं हूं और आधा आपके बेटे को।मां,आज की दुनिया बहुत स्वार्थी हैं।खून के रिश्ते भी भूलने‌ लगे हैं लोग लालच के मारे।यहां सिर्फ पैसों की‌ कदर है।अगर आपके पास पैसे हैं तो,हर कोई आपके पास है,यदि नहीं तो कोई भी आपके साथ नहीं।अपने मन में अपनी संतान के प्रति माता-पिता आक्रोश भी नहीं रख पाते,ना ही बद्दुआ दे सकतें हैं उन्हें।एक‌ झूठ से यदि बच्चों का भविष्य और आपका‌ वर्तमान सुरक्षित हो,तो उसमें‌ क्या बुराई है?”””

रमा का अपने माता-पिता के प्रति कर्तव्य बोध देखकर सरला‌ जी‌ ने‌ उसे भर-भर कर आशीर्वाद दिया।कितनी सटीक बात कही है इस लड़की ने,पैसा‌ है‌ तो सब कुछ है।पैसों से ही सम्मान,समाज और‌ स्वाभिमान शेष बचता‌है।पैसा‌नहीं तो कुछ भी‌नहीं।अपने मन में बच्चों के प्रति‌ आक्रोश को वह जितनी बार फूंकेगी,एक‌ नई अपमान की‌ चिंगारी उतनी बार ही‌ सुलगेगी।ना तो वह‌ खुद‌ खुश रह पाएगी ना ही‌ बच्चों को रख पाएगी वह खुश।इस आक्रोश को समझदारी से नई दिशा दिखा दी रमा ने। वाकई आजकल पैसा‌ ही बोलता है।

शुभ्रा बैनर्जी

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