आत्म संतुष्टि – लतिका श्रीवास्तव

  “आज तो मम्मी आपको आटे का हलवा बना कर खिलाना ही पड़ेगा” बच्चे पीछे पड़ गए ,”आज आप बहुत खुश हैं”…. अवनि सच में आज बहुत ज्यादा प्रसन्न थी..होती भी क्यों ना सरकारी विद्यालय वो भी ट्राइबल गांव के विद्यालय ने जिले में मिसाल कायम कर दी थी…टॉप किया था उसके विद्यालय के एक आदिवासी बच्चे ने पूरे जिले में…पर अवनि की प्रसन्नता का असली कारण ये नही था.. असली कारण थे दो बच्चे अरुणऔर पायल जिन्होंने बोर्ड परीक्षा में 80 प्रतिशत से ज्यादा स्कोर किया था…

हलवा बनाते बनाते उसकी आंखों के सामने बच्चों की नोटबुक आ गई……..प्रत्येक सोमवार को वो सभी बच्चों की नॉटबुक्स अपनी प्राचार्य टेबल पर मंगवाती थी और रिचेक करती थी,अवनी को पता था गांव के सरकारी विद्यालय में शिक्षक और विद्यार्थी दोनों की शैक्षणिक गुणवत्ता बढ़ाते हुए अध्ययन अध्यापन के लिए प्रेरित करना बहुत चुनौती पूर्ण कार्य है।                           

हमेशा शहर के अत्याधुनिक सुविधाओं और उत्साही तत्पर विद्यार्थी एवम उनके जागरूक अभिभावकों  से पोषित विद्यालयों की जीवन शैली में रची बसी अवनी का प्रमोशन जब गांव के एक विद्यालय में प्राचार्य पद के लिए हुआ तो वो काफी निराश थी …पर मजबूरी थी प्रमोशन तो लेना ही था उसके करियर का सवाल था…ज्वाइन करते ही विद्यालय की सर्वांगीण बदहाली का चेहरा उसे और भी निराश कर गया…कंप्यूटर के युग में वहां लाइट तक नहीं थी….

विद्यार्थियों की कौन कहे स्टाफ के लिए यूरिनल तक नही था… अस्त व्यस्त सा माहौल ..अनिच्छुक विद्यार्थी और उदासीन अभिभावक……ऊपर से जिंदगी में पहली बार अब उसे अप डाउन भी करना पड़ रहा था।पर चुनौतियां तो व्यक्ति को आगे बढ़ने के नवीन अवसर प्रदान करती हैं  मजबूत बनाती हैं..अपने पापा की बात उसे हिम्मत दे रही थी ।


…….. प्राचार्य पद के पहले ही वर्ष सर्व प्रथम बिजली कनेक्शन की  उसकी सारी मेहनत संघर्ष  उन विद्यार्थियों की खुशी से दमकते चेहरो की चमक में घुल गई थी….फिर तो अवनी रुकी नहीं सभी के लिए यूरिनल  ,कंप्यूटर , लैब,लाइब्रेरी  स्मार्ट क्लासेस….सारी सुविधाएं जुटा कर इस गांव के विद्यालय को शहर के विद्यालय की बराबरी पर लाना और गांव के गरीब ,अनपढ़ अभिभावकों की अपने बच्चो को सुविधा संपन्न शहर के बड़े स्कूल जैसे स्कूल में ना पढ़ा पाने की अधूरी ख्वाहिश को साकार कर उन्हे हीन भावना से मुक्त करना ही मानो उसकी जिंदगी के उद्देश बन गए,

मेधा गांव या शहर की मोहताज नहीं होती ये वो समझ चुकी थी…शहर के बच्चों के पास सब कुछ है गांव के बच्चो के लिए करो तो कोई बात है यही मंत्र बन गया था उसका।               ….पर इस साल अचानक वो वाकया…..!नोट बुक चेक करते करते  दो नोट बुक्स ऐसी मिलीं जिनके सबसे पीछे के पेज पर लिखे वाक्य से उसके हाथ थम से गए…….”बस आज का दिन जिंदगी का अंतिम दिन है कोई हमे नही समझ पाया.”…अवनी अवाक रह गई!

जल्दी से नोट बुक्स पर नाम देखा तो एक में अरुण भरिया और एक में पायल लिखा था …उसने तत्काल स्टाफ वालो से इस बारे में पता किया तो कुछ भी नही पता चला सिवाय इसके कि दोनों सबसे रेगुलर विधार्थी हैं और पढ़ाई में अच्छे हैं लेकिन इस बार के टेस्ट्स में सभी विषयों में फेल है……

उसने तत्काल बिना देर किए दोनों को बुलवाया तो पता लगा दोनो ही छुट्टी लेकर जाने वाले थे … दोनों प्राचार्य कक्ष में बहुत डरते डरते आए,बहुत परेशान लगे वो दोनो उसे….बहुत ही प्यार और आहिस्ता से पूछ ताछ करने पर अवनि की अनुभवी नजरें दोनों के पारस्परिक किशोर वय के आकर्षण और सम्मोहन को भांप तो गईं पर इस सीमा तक कि वो दोनों आज एक साथ दुनिया से ही पलायन करने की ठान लिए थे,इसे कबूलवाने में उसे थोड़ा समय लगा…..उसने उन दोनों को बहुत प्यार से समझाया …

डांटा बिलकुल भी नहीं ..उनमें छिपी प्रतिभा और उसको निखारने के लिए प्रेरित किया “अभी पहले पढ़ाई पर ध्यान दो बढ़िया रिजल्ट लाओ फिर मैं तुम्हारे अभिभावकों से बात करूंगी” ऐसा आश्वासन भी अवनी ने दे दिया दोनो बच्चे रोने लगे काफी देर रोते रहे फिर जाने कैसे बाते उनकी समझ में आ गईं….. तब से उनकी पढ़ाई में निरंतर सुधार स्पष्ट दृष्टिगोचर होने लगा और आज रिजल्ट आने के बाद स्कूल में दोनो ने आके पैर छुए और माफी भी मांगी …

.मैडम जी आपके कारण दो जिंदगियां बच गई संवर गई….उनके अभिभावको का हाथ जोड़ कर अश्रुपूरित कथन अवनी को अंदर तक हिला गया …सच में अपने विद्यालय के बच्चों का भी अपने बच्चों जैसा ही ध्यान रख पाने की प्रेरणा समय पर देने और दो प्रतिभाशाली विद्यार्थियों का ह्रदय परिवर्तन कर सही राह पर ला पाने की अपनी मानवीय और प्रशासनिक कर्तव्य पूर्ति की आत्मिक संतुष्टि और प्रसन्नता के लिए उसने ईश्वर को दिल से कोटिश: धन्यवाद दिया…. और पूरी तरह से तैयार मीठे हलूवे को प्लेट में लगा के अपने बच्चों को बुलाने के लिए तत्पर हो गई…।

पूर्णत:मौलिक रचना सादर

लतिका श्रीवास्तव

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